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________________ निक्षेप (धरोहर) के नियम ७८७ प्रकार की धरोहर किसी दूसरे को तब दी जाती है जब कि कोई अपना घर छोड़कर कहीं जाता है या राजा से डरता है या अपने सम्बन्धियों को वंचित करना चाहता है।२६ मनु (८।१७६, नारद ५।२) का कहना है कि धरोहर कुलीन, चरित्नवान्, धार्मिक सत्यवादी, दोर्घकुटुम्बी, धनी एवं ऋजु व्यक्ति के पास रखनी चाहिए । जो धरोहर को अपने यहाँ रखता है वह सामान्यतः कुछ पाता नहीं, अतः स्मृतियों में उसे पुण्यभागी माना गया है और उसे सोने आदि धातुओं के दान का फल मिलता है। किन्तु जो व्यक्ति धरोहर का दुरुपयोग करता है या प्रमाद या अनवधानता के कारण उसे खो बैठता है वह पापी कहा गया है । धरोहर रखने वाले को अपनी सम्पत्ति के समान ही उसकी रक्षा करनी होती है। यदि वह देवसयोग से, राजा के कारण या चोरी के कारण नष्ट हो जाय तो उसे रखने वाला देनदार : नष्ट हो जाय तो उसे रखने वाला देनदार नहीं होता (मनु ८। ; याज्ञ० २१६६; नारद श६एवं १२; बृहस्पति एवं कात्यायन ५६३--स्मृतिचन्द्रिका २, पृ० १७६ एवं व्यवहारप्रकाश पृ० २८३) । नारद (५५६) एवं बृहस्पति के मत से धरोहर (निक्षेप, उपनिधि या न्यास) साक्षियों के समक्ष भी रखी जा सकती है, यद्यपि यह कोई नियम नहीं है, और उसे उसी दशा में लौटा दिया जाता है। किन्तु यदि कोई विवाद उत्पन्न हो जाय तो साक्षियों के अभाव में दिव्य ग्रहण किया जा सकता है।२७ धरोहर सील (मुहर) या मुद्रांक के साथ ही लौटानी चाहिए (याज्ञ० २१६५) । औरदेखिए मनु, ८।१८५), बृहस्पति (स्मृतिचन्द्रिका २, पृ० १८१, पराशरमाधवीय ३, पृ० २८१) । यदि धरोहर देनेवाला मर जाय तो धरोहर रखनेवाले (महाजन) को उसे उसके अन्य सम्बन्धियों को बिना माँगे दे देना चाहिए (मनु ८।१८६ = नारद ५।१०)। कभी-कभी धरोहर रखनेवाला उसका दुरुपयोग या स्वयं उपयोग कर सकता है या प्रमाद या असावधानता के कारण उसे खो सकता है। ऐसी स्थिति में उसे पूरापूरा लौटाना पड़ता है। किन्तु कात्यायन (५६०) ने कुछ अन्तर बताया है। यदि उसका उपभोग हो जाय तो मूल तथा ब्याज के साथ लौटाना चाहिए, यदि असावधानी के कारण नष्ट हो जाय तो उसका मूल्य देना चाहिए ब्याज नहीं, किन्तु यदि अज्ञान के कारण नष्ट हो जाय तो मूल्य से कुछ कम (एक चौथाई कम) देना चाहिए । देखिए नारद (५८), बृहस्पति (पराशरमाधवीय ३, पृ० २८३) । यदि धरोहर देनेवाला जान-बूझकर किसी असावधान व्यक्ति को महाजन चुनता है, तो धरोहर रखने वाला (महाजन) देनदार नहीं है (कात्यायन ५६६) । यदि धरोहर को तुरत माँगा जाय और महाजन उसे लौटा न सके, या बह किसी कारण नष्ट हो जाय तो उसे उसका मूल्य देना पड़ता है और ऐसा न करने पर उसे अर्थ-दण्ड भी देना पड़ सकता है (याज्ञ० २१६६, नारद ५१७) । और देखिए याज्ञ० (२०६७) एवं नारद (१८)। कात्यायन (५०६) का कथन है कि यदि कोई धरोहर, ब्याजावशेष, क्रय-धन (क्रय कर लेने पर सामग्री का मूल्य), विक्रय-धन (बेच देने पर भी सामान न देना) मांगने पर न दे तो उस पर पाँच प्रतिशत ब्याज लगना आरम्भ हो जाता है , और देखिए इस विषय में मनु (८।१६१), नारद (५।१३) एवं कात्यायन (७०१)। याज्ञवल्क्य (२०६७), नारद (५।१४). बृहस्पति आदि ने निक्षेप-सम्बन्धी इन नियमों को अन्य प्रकार की अमानतों के लिए भी लागू किया है यथा--याचितक (किसी उत्सव के अवसर पर मांगी गयी वस्तु, यथा--आभूषण २६. स्थानत्यागाद्वाजभयाद् दायादानां च वञ्चनात् । स्वद्रव्यमयतेन्यस्य हस्ते निक्षेपमाह तम् ॥ बृहस्पति (स्मृतिचन्द्रिका २, पृ० १७८); राजचौरारातिभयाद् वायादानां च वञ्चनात् । स्थाप्यतेऽन्यगृहे द्रव्यं न्यासः स परिकीर्तितः ।। बृहस्पति (व्यवहारप्रकाश पृ० २७६)। २७, रहो दत्त निधौ यत्र विसंवादः प्रजायते । विभावकं तत्र दिव्यमुभयोरपि च स्मृतम् ॥ बृहस्पति (अपराक पृ० ६६४ एव व्यवहारप्रकाश पृ० २८४) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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