SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दण्ड का परिमाण ७६६ नारद ( साहस १० ) ने ऐसा उस ब्राह्मण के लिए लिखा है जो जाति के कारण मृत्यु दण्ड नहीं पाता तथा शंख-लिखित ने ( अपरार्क पृ० ८०७ ) उसके लिए, जो राजपुरुषों, ब्राह्मणों एवं गुरुजनों की अवमानना करता है । और देखिये मेगस्थनीज (फैगमेण्ट्स २७, पृ० ७२) । आजीवन बन्दीगृह सेवन का दण्ड किसी की आँखें निकाल लेने ( विष्णु० ५।७१ ) या तीन बार से अधिक वही अपराध करने ( शुक्र ४।१।६८) पर मिलता था । विष्णुधर्मसूत्र ( ५।१०५ ) ने उस स्त्री को, जो जान-बूझकर ऋतुमती की अवस्था में उच्च वर्णवालों को छूती है, कोड़ा लगाने को कहा है। यह दण्ड दासों, आश्रितों, स्त्रियों, अल्पवयस्कों, पागलों, बढ़ों, दरिद्रों तथा रोगियों को भी अपराध करने पर दिया जाता था । देश - निष्कासन का दण्ड मृत्यु दण्ड पाने वाले ब्राह्मणों को दिया जाता था ( गौतम १२ ।४४ ; मनु ६ । २४ एवं ८३८० विष्णुधर्मसूत्र ५।३ एवं ८ बौधायनधर्मसूत्र १।१०।१६ ; याज्ञ० २।२७० ) । देश - निष्कासन के साथ कभी-कभी दाग भी लगा दिया जाता था। देश - निष्कासन घूस लेने पर ( याज्ञ० २।२३६), ब्राह्मणों द्वारा कूट साध्य (झूठी गवाही देने पर (याज्ञ० २२८१), व्यापारियों के धन का गवन करने तथा किसी संघ या ग्राम के स्वीकृत नियमों का उल्लंघन करने पर (याज्ञ० २।१८७, मनु ८।२१६, वि० ध० सू० ५।१६७ - १६८), गलत पासा फेंकने पर (याज्ञ० २।२०२, नारद, द्यूतसमाह्वय ६ ), ब्राह्मण द्वारा गम्भीर अपराध किये जाने पर ( शान्तिपर्व १४ । ११६ ) किया जाता था । शुक्र (४।१।६८ - १०८) में इसकी लम्बी सूची है। सम्पूर्ण सम्पत्ति की जब्ती निम्न अपराधों में होती थी; ब्राह्मणों के अतिरिक्त (जब वे अनजाने ऐसा करते थे ) अन्य लोगों द्वारा महापातक करने पर (मनु ६ । २४२), कूट साक्ष्य देने पर एवं सभ्यों द्वारा घूस लेने पर ( वि० ध० सू० ५।१७६-१८० ) । नारद ( प्रकीर्णक, १०-११ ) ने व्यवस्था दी है कि सम्पूर्ण सम्पत्ति की जब्ती पर अपराधियों के यन्त्र यथा सैनिकों के हथियार, शिल्पकारों के औज़ार, नर्तकियों के आभूषण, संगीतज्ञों के वाद्ययन्त्र आदि नहीं छीनने चाहिए । यही बात शंख-लिखित ( व्यवहाररत्नाकर पृ० ६५६ ) में भी दी हुई है। दण्ड की वृद्धि एक से अधिक बार अपराध करने पर होती थी । वि० ध० सू० (३।६३) ने लिखा है कि दूसरी बार अपराधी को नहीं छोड़ना चाहिए ( पहली बार झिड़की देकर छोड़ा भी जा सकता था ) | कौटिल्य ( ४।१०), मनु ( ६।२७७), याज्ञ० (२।२७४), वि० ध० सू० (५।१३६) में जो आया है वह एक समान ही है । कौटिल्य का कहना है कि यदि अपराधी ने किसी पवित्र स्थान में पहली बार चोरी की है या वह जेबकतरा है या उसने छत तोड़कर चोरी की है तो उसकी तर्जनी एवं अंगूठा काट लेना चाहिए या उस पर ५४ पण दण्ड लगाना चाहिए; दूसरी बार ऐसा करने पर सब अँगुलियाँ काट ली जायँ या १०० पण दण्ड दिया जाय; तीसरी बार का दण्ड है दाहिना हाथ काट लिया जाना या ४०० पण अर्थ दण्ड लगाना तथा चौथी बार मृत्यु - दण्ड, जिस रूप में राजा उचित समझे । देखिये व्यभिचार के लिए ऐसा ही आपस्तम्बधर्मसूत्र में | यदि कोई व्यक्ति किसी को मारने या घायल करने की दुरभिसंधि करे तो किसी एक व्यक्ति द्वारा किये जानेवाले अपराध का दूना दण्ड लगता है ( कौटिल्य ३६, याज्ञ० २।२२१ एवं वि० ध० सू० ५।७३ ) । कौटिल्य ( ४१४ ) ने जादू-टोने द्वारा धर्मविरुद्ध प्रेम-स्थापन के मामले का पता चलाने के लिए गुप्तचरों के प्रयोग की व्यवस्था दी है। उनका कहना है कि ऐसा जादू-टोना करने वाले को देश- निष्कासन का दण्ड देना चाहिए और यही व्यवहार उनके साथ भी होना चाहिए जो इस क्रिया द्वारा अन्य लोगों को क्लेश या चोट पहुँचाते हैं । पेशवाओं के काल में भी डाइनों, भूत-प्रेत करने वालों को मृत्यु दण्ड, सम्पत्ति की जब्ती, अंगुली काट लेने के दण्ड दिये जाते थे (सेलेक्शंस फाम पेशवाज़ रेकर्डस, जिल्द ४३, पृष्ठ २५-२६ एवं पेशवाज़ डायरी, जिल्द २, पृ० ७ ) । इंग्लैंड में भी १८ वीं शताब्दी के आरम्भ तक ( डाइनों के रूप में) दुष्ट प्रकृति वाली स्त्रियों को मृत्यु दण्ड दिया जाता रहा है । मनु (६। = मत्स्यपुराण २२७।१८३ ) ने मन्त्र -बल से मारने वालों, जादू एवं भूत-प्रेत करने वालों पर केवल २०० पण २५ २६० = Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy