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________________ ७६८ धर्मशास्त्र का इतिहास कान काटकर बैलों के सींगों में बांधकर लहू-लुहान करते हुए मार डालना चाहिए।१० याज्ञ० (२।२८२) ने खड़ी खेती, घरों, जंगलों, गाँव,चरागाहों को जला डालने तथा सम भूमि को तोड़ डालने वालों या राजपत्नी-दूषकों को फूस में रखकर जला डालने को कहा है। नारद (पारुष्य,३१) के मत से जो राजा पर, भले ही उसी का दोष हो, हथियार से चोट करता है, उसे काटकर आग में भून डालना चाहिए । मनु (८।२७२), नारद (पारुष्य, २४), विष्णुधर्मसूत्र (५।२४) ने व्यवस्था दी है कि यदि कोई शूद्र ब्राह्मणों को धर्म की शिक्षा देने की अहंमन्यता प्रदर्शित करे तो उसके मुंह एवं कानों में खौलता हुआ तेल डाल देना चाहिए। चोरों, जेबकतरों एवं गाँठ-कतरो के विषय में हाथों, पाँवों या अँगुलियों को काटकर दण्ड देने की व्यवस्था थी (मनु ६।२७६-२७७; नारद-परिशिष्ट ३२; याज्ञ० २।२७४) । जब कोई शूद्र गम्भीर आरोप लगाकर ब्राह्मण या क्षत्रिय की अवमानना करता था (आपस्तम्बधर्मसूत्र २।१०।२७।१४; मनु ८।२७० एवं नारद-पारुष्य २२) या जब वह द्विजों के साथ वेद का उच्चारण करता था (गौतम १२१४) या जब वह राजा को गाली देता था (नारद-पारुष्य ३०) या जब राजा को न पसन्द आने वाली बात बार-बार कहता था या राजा की गुप्त नीति का भेद खोल देता था, तब उसकी जीभ काट ली जाती थी (याज्ञ० २।३०२) । जब कोई शुद्र उच्च जाति की स्त्री के पास मैथुन के लिए पहुंचता था (गौतम १२.२) या कोई व्यक्ति पर-नारी से बलात्कार करता था (व-हारीत ७।२०१) तो उसकी जननेन्द्रिय काट ली जाती थी। इसी प्रकार उसके साथ भी किया जाता था जो माता, मौसी, चाची, बहिन, मित्र या शिष्य की स्त्री, बेटी, पतोहू, गुरु-स्त्री, शरणार्थी स्त्री, रानी, संन्यासिनी, दाई (शिशुपालिनी) या किसी भी पतिव्रता नारी या किसी उच्च वर्ण की नारी के साथ बलात्कार करता था (नारद, स्त्रीपुंसयोग ७३-७५) । यदि कोई बनावटी सोना या वर्जित मांस (यथा--कुत्ते का मांस) बेचता था तो उसके कान, नाक, हाथ काट लिये जाते थे (याज्ञ० २३२६७) । दागने के बारे में देखिए गौतम (१२१४४), बौधायनधर्मसूत्र (१।१०-१६), नारद (साहस १०), मनु (६।२३७ - मत्स्यपुराण २२७।१६), विष्णुधर्मसूत्र (५॥३-७) । दण्डविवेक (पृ० ६७) के मत से जब प्रायश्चित नहीं किया जाता था या जान-बूझकर अपराध किया जाता था तो दाग लगाया जाता था। इस विषय में और देखिए याज्ञ० (२।२०२; २।२६४) एवं दक्ष (७।३३), राजतरंगिणी (६।१०८-११२) । दण्डनीतिप्रकरण में केशव पंडित ने (पृ. ६) मन्द पण्डित की वैजयन्ती का उद्धरण देते हुए बताया है कि ब्राह्मणों के लिए भिलावे के रस से तथा अन्य लोगों के लिए लोह-शलाका को लाल करके दाग लगाया जाता था। मनु (७।३७०) ने सिर मुंडन उस स्त्री के लिए उचित माना है जो किसी कुमारी को अपवित्र कर देती है। १०. यह एक सामान्य नियम था कि किसी भी प्रकार स्त्रियों को नही मारना चाहिए । हमने इस विषय में इस ग्रंथ के द्वितीय भाग में पढ़ लिया है । किन्तु इस विषय में स्त्रियों के कुछ अपराध अपवाद थे और उनके विषय में भी वसिष्ठ (२१।१०) एवं याज्ञ० (१।७२) ने मृदु विकल्प दिया है, यथा--त्याग, जब स्त्री किसी नीच जाति के पुरुष के संसर्ग से गर्भवती हो जाय या पति को मार डाले या गर्भपात करे । मिताक्षरा (याज्ञ० ३।२८६) के मत से स्त्री को मत्यु-दण्ड देने के कारण राजा को प्रायश्चित्त करना पड़ता था। अठारहवीं शताब्दी में पेशवा के प्रसिद्ध न्यायाधीश रामशास्त्री ने ब्रह्म-हत्या को अपराधिनी एक स्त्री को तीर्थ-यात्रा एवं नासिक के पास त्र्यम्बकेश्वर पर्वत को परिक्रमा करने के प्रायश्चित्त को न्यायालय-आज्ञा दी थी। इण्डियन क्रिमिनल प्रोसीजरकोड (परिच्छेद ३८२) में भी आया है--यदि मृत्यु-दण्ड को अपराधिनी गर्भवती है तो हाईकोर्ट समय को स्थागित कर सकता है और यदि वह उचित सकझे तो, मृत्यु-दण्ड के बजाय आजन्म कारावास दण्ड दे सकता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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