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________________ दण्ड का तारतम्य ७६७ कलियुग में मृत्यु-दण्ड एवं अन्य शारीरिक दण्ड आवश्यक हो गया है, यहाँ तक कि कुछ लोग मृत्यु-दण्ड से भी भय नहीं खाते । प्रत्येक दण्ड-विधि के विषय में कुछ कहना आवश्यक है। बड़े-बड़े गम्भीर अपराधों में भी मृत्यु-दण्ड का भरसक त्याग किया जाता था (कामन्दकीय नीतिशास्त्र (१४११६, शुक्र ४।१।६३), किन्तु राज्य उलट देने के मामले में ऐसा नहीं होता था। महापातकों में ब्राह्मणों के अतिरिक्त सभी को मृत्यु-दण्ड मिलता था (विष्णुधर्मसूत्र ५॥१) । किन्तु मनु (६२३६) के अनुसार प्रायश्चित्त न करने पर ही ऐसा किया जाना चाहिए । तीक्ष्ण हथियार से मार डालन पर ही मृत्यु-दण्ड देना चाहिए, ऐसा कौटिल्य (४।११) ने कहा है । वृद्ध-हारीत (७।१६०) ने आग लगाने वाले, विष देने वाले, हत्यारे, डकैतों, दुराचारियों, शठों, महापातकियों के लिए मृत्यु-दण्ड की व्यवस्था दी है । कई प्रकार से मृत्यु-दण्ड दिया जाता थाः विष देकर, हाथी के पैर से कुचलवा कर, तीक्ष्ण हथियार (तलवार) से, जलाकर या डुबाकर । रात्रि में सेंघ लगाकर चोरी करने पर पहले चोर के हाथ काटकर शूली पर चढ़ा दिया जाता था (मनु ६।२७६) । यही बात याज्ञ० (२।२७३) ने उनके लिए कही है जो किसी दूसरे को बन्दी बनाते हैं, घोड़ा या हाथी चुराते हैं या बलपूर्वक किसी को मार डालते हैं। हारीत (७।२०३) ने ब्रह्म-हत्या करने, स्त्री, बच्चों या गाय को मारने पर शूली देने की बात कही है। मराठों के काल तक हाथी के पांवों तले कुचलकर मार डालने की प्रथा प्रचलित थी। दण्डविवे के अनुसार शुद्ध मृत्यु-दण्ड दो प्रकार का थाः अविचित्र (जब अपराधी का सिर काट लिया जाता था) तथा चित्र या विचित्र (जब अपराधी जला दिया जाता था या उसे शूली पर चढ़ा दिया जाता था); वह मृत्यु-दण्ड, जिसमें हाथ या पर या अंगभंग करके तब मारा जाता था, मिश्र कहलाता था। मनु ने शुद्ध मृत्यु-दण्ड उन लोगों के लिए प्रयुक्त माना है जो चोरों की जीविका चलाकर उनकी सहायता करते थे या उन्हें सेंध लगाने के यन्त्र देते थे या उन्हें छिपाकर रखते थे (६।२७१) । यदि हीन जाति का कोई व्यक्ति ऊंची जाति की स्त्री के साथ उसकी सहमति से या असहमति से व्यभिचार करता है या किसी युवती को ले भागता है तो उसे मृत्यु-दण्ड मिलता था (मनु ८१३६६, याज्ञ० २।२८६-२८८२६४) । वसिष्ठ (२१।१-५) ने उस शूद्र, वैश्य या क्षत्रिय के लिए, जो ब्राह्मण स्त्री के साथ व्यभिचार करता है, भयानक मृत्यु-दण्ड की व्यवस्था दी है; उन्हें क्रमशः वीरण घास, लाल दर्भ घास एवं सरकंडे के पन्नों से ढककर जला डालना चाहिए। इसी प्रकार उन्होंने शद्र को क्षत्रिय या वैश्य स्त्री के साथ व्यभिचार करन क्षत्रिय या वैश्य स्त्री के साथ व्यभिचार करने तथा वैश्य को क्षत्रिय स्त्री के साथ व्यभिचार करने पर जलाकर मार डालने की व्यवस्था दी है । सहमति वाली स्त्री को वसिष्ठ (२१।१-३) ने माथा मुड़वा और सिर में धुत लगवा कर, गधे पर नंगा करके बैठाने एवं घुमाकर मृत्यु-यात्रा के लिए भेज देने की व्यवस्था दी है। गौतम (२३।१४) एवं मनु (८।३७१) ने अपने से छोटी जाति के व्यक्ति से व्यभिचार करने पर उस स्त्री को, जिसे रूप का गर्व है या जो माता-पिता के धन पर गर्व करती है, कुत्तों से कटवा कर मार डालने को कहा है । शंख ने हीन जाति के पुरुष को इसी प्रकार मार डालने को कहा है तथा इस प्रकार की स्त्रियों को जलाकर मार डालने की व्यवस्था दी है। वृद्ध-हरीत (७/१६२) ने व्यभिचारिणी या गर्भपात-कारिणी स्त्री को पति द्वारा नाक-कान या अधर कटवा कर निकाल देने को कहा है; श्लोक २२०-२२१ में आया है कि व्यभिचारिणी नारी को कटाग्नि (सरपत की अग्नि) में जला डालना चाहिए। आगे चलकर ये भयानक दण्ड कुछ हलके कर दिये गये । मनु (६२७६) ने जलाशय, झील या बाँध तोड़ देने (जिससे कि वे सूख जाय) वाले को डुबाकर मृत्यु-दण्ड देने को कहा है और किसी स्त्री ने अपना बच्चा मार डाला हो, या किसी पुरुष को मार डाला हो, या बाँध या जलाशय तोड़ दिया हो, उसे गरदन में पत्थर बाँध कर डुबा देने को कहा है (यदि वह गर्भवती न हो तो) । यही बात याज्ञ० (२।२७८) ने भी कही है। जो स्त्री विष से किसी को मार डालने या आग लगाने की अपराधिनी है, या जिसने पति, गुरुजनों एवं अपने बच्चे को मार डाला है, (यदि वह उस सयय गर्भवती नहीं है तो) याज्ञ० (२।२७६ = मत्स्यपुराण २२७।२००) के अनुसार उसे नाक, अधर, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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