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________________ ७४४ धर्मशास्त्र का इतिहास प्रकार की विधियों में कोई एक कार्य में लायी जा सकती है; चोदना प्रतिकालम् (बार-बार रुपया चुकाने के लिए तकाज़ा करना), युक्तिलेश (तर्क देना) एवं शपथ (विशिष्ट शपथें एवं दिव्य प्रमाण)। कात्यायन (२३३) ने भी ऐसा कहा है। नारद (४।२३८) के अनुसार युक्ति ये हैं; ऋणदाता को ऋणी के प्रति युक्तियाँ देनी चाहिए ; स्वयं स्मरण करके तथा ऋणी को समय, स्थान एवं दोनों के सम्बन्ध का स्मरण दिलाकर। युक्ति का अर्थ कई प्रकार से लगाया गया है। न्यायसंगत तर्क (कात्यायन २१४)आदि । बृहस्पति ने अनुमान को इस सिलसिले में तीन प्रकार का माना है, किन्तु ये सब साक्षियों की तुलना में हीन हैं। व्यास (स्मृतिचन्द्रिका २, पृ०६५) का कथन है कि अनुमान तो हेतु एवं तक ही है। व्यवहारप्रकाश (पृ० १६७) का कहना है कि दीर्घकालीन भोग एवं बार-बार ऋणदाता द्वारा प्रेरित करने से आगम (स्वत्वाधिकार)का अथवा ऋण लेने का अनुमान होता है और इसे युक्ति के अन्तर्गत मानना चाहिए (कात्यायन)। "गोबलीवर्द" की कहावत की भाँति कुछ विशिष्ट परिस्थितियों से उत्पन्न अनुमानों के अर्थ में ही युक्ति को लेना चाहिए। 'गो-बलीवदं' की उक्ति का अर्थ 'स्तेय' के अध्याय में किया जायगा । अतः युक्ति का अर्थ है परिस्थितिजन्य प्रमाण, जो न्याय-कार्य से उत्पन्न किसी तथ्य के विषय में अनुमान करने से होता है । आपस्तम्बधर्मसूत्र (२।११।२६६) का मत है कि सन्देह की स्थिति में न्यायाधीश को लिंगों (संकेतों अर्थात अन मान) एवं देवोंया दिव्यों(आडियल) से निर्णय करना चाहिए। वसिष्ठ (१६।३६) का अन्य ऋषियों के कथनों के आधार पर मत है कि वह व्यक्ति, जो अस्त्र-शस्न से सुसज्जित है या घायल है या चोरी के सामान के साथ पकड़ा गया है, चोर है या अपराधी है। यही बात दूसरे ढंग से मनु (६२७० = मत्स्यपुराण २२७११६६) ने भी कही है। शंख-लिखित का कथन है कि जो व्यक्ति किसी स्त्री के बालों के साथ खेलता पकड़ा जाय तो वह व्याभिचारी (परस्त्रीगामी) समझा जाता है, जो किसी घर के पास हाथ में लुकाठी के साथ पकड़ा जाय तो उसे आग लगाने वाला समझा जाना चाहिए, जो व्यक्ति मारे गये व्यक्ति के पास हथियार के साथ पाया जाय तो उसे हत्यारा समझना चाहिए तथा उसे जो चोरी के सामान के साथ पकड़ा जाय चोर समझना चाहिए। कौटिल्य (४।१२) एवं याज्ञ०(२।२८३) ने इसी प्रकार कहा है कि पुरुष एवं स्त्री का व्यभिचार निम्न बातों से प्रमाणित हो जाता है; हाथ में बाल हों, अधरों पर नाखन एवं दाँत के चिन्ह हों, स्त्री या दोनों की स्वीकारोक्ति हो।१६नारद (४११७२१७५) ने कहा है कि निम्न छ: प्रकार के विवाद लिंगों अथवा परिस्थितियों से प्रमाणित हो सकते हैं, यथा--आग लगाना, हाथ में लकाठी हो; हत्या, हत्या-स्थान पर हथियार-बन्द व्यक्ति हो: बलात्कार.परस्त्री के बालों के साथ खेल हुआ व्यक्ति हो; जलाशय खोल देना या बांध तोड़ना, हाथ में कदाल हो: वक्ष काटना, हाथ में कल्हाडी हो: आक्रम हाथ में रक्तरंजित तलवार या गदा हो। किन्तु नारद (४११७६) ने सचेत किया है कि ऐसे विवादों में निर्णय पर पहचने के लिए बड़ी सावधानी की आवश्यकता होती है, क्योंकि कभी-कभी कुछ व्यक्ति अन्य व्यक्ति को विद्वेष के कारण फंसाने के लिए अपने शरीर पर घाव या चोट के चिह्न उत्पन्न कर लेते हैं। कात्यायन (३३७-३३८)ने व्यवस्था दी कि यदि मकदमेबाज अपने विरोधी के खिलाफ घस देने की बात सिद्ध कर देता है, हस्ताक्षर मिटा दिया गया है जिससे लेखप्रमाण शुद्ध न सिद्ध हो सके), विरोधी ने साक्षियों एवं सभ्यों को घूस देने का लोभ दिया है, अपने धन को विरोधी ने छिपा लिया है (जिससे हारने पर उसका धन सुरक्षित रह जाय) आदि-आदि यदि सिद्ध हो जाये तो वादी का प्रतिवेदन मान लिया जा सकता है, भले ही प्रतिवादी इसके विपक्ष में अपने को निर्दोष सिद्ध करने का यत्न करे। न्यायाधीश बहुधा घोषित करते हैं--"साक्षी-गण झूठ बोल सकते हैं, किन्तु परिस्थितियाँ नहीं।" किन्तु यह कहावत अधिकतर भयानक सिद्ध होती है। परिस्थितियों से उत्पन्न प्रमाणों से ऐसे निर्णय हो जाते हैं जो अधिकतर भ्रामक १६. केशाकेशिकं संग्रहणम् । उपलिंगनाद्वा शरीरोपभोगानां तज्जातेभ्यः स्त्रीवचनाद्वा॥ कौटिल्य (४॥१२)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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