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________________ साक्ष्य का सत्यासत्य परिस्थिति ७४३ २६८-६; गौतम १३।७ एवं २३) । मनु (८।११८) का कहना है कि यदि साक्षी-गण लोभ, भ्रामक विचार, भय, मित्रता, काम-पिपासा, क्रोध, अज्ञान एवं अल्पवयस्कता के वशीभूत होकर असत्य साक्ष्य देते हैं तो उन्हें दण्डित होना पड़ता है (८।१२०-१२२)। बृहस्पति ने घूसखोर न्यायाधीश, असत्य बोलने वाले साक्षियों एवं ब्राह्मण-हत्यारे को एक समान ही पापी माना है । इस विषय में और देखिये याज्ञ० (२।८१),कात्यायन (४०७)।१३मिताक्षरा (याज्ञ० २।८१) ने लिखा है कि मनु (८।३८० का यह कथन कि अपराधी ब्राह्मण को मृत्यु-दण्ड तथा शारीरिक दण्ड नहीं देना चाहिए, केवल प्रथम बार किये गये अपराधों के विषय में है, न कि अभ्यस्त अपराधी ब्राह्मणों के लिए । मनु (२।१०८) ने कहा है कि जब साक्ष्य देने के सात दिन के भीतर किसीमाक्षी को रोग पकड़ लेता है, या उसके घर में आग लग जाती है या उसके किसी सम्बन्धी की मत्यु हो जाती है, तो उसे कट साक्षी समझना चाहिए, उसे विवाद की सम्पत्ति के बराबर अर्थदण्ड देना पड़ता है तथा राजा को भी दण्ड-स्वरूप कुछ धन देना पड़ता है। इस विषय में देखिये स्मृतिचन्द्रिका (२, पृ० ६४), कात्यायन (४१०)। मनु (८।११७ = विष्णुधर्म सूत्र) का कथन है कि यदि यह सिद्ध हो जाय कि किसी मामले में कूट साक्ष्य दिया गया है तो न्यायाधीश को चाहिए कि वह मुकदमे को पुनः सुने और यदि निर्णय दिया जा चुका हो तो उसकी पुनः जाँच होनी चाहिए। गौतम (१३।२४-२५), वसिष्ठ (१६।३६), मनु (८1१०४), याज्ञ ० (२।८३). विष्णुधर्मसूत्र (८।१५) के मत से, यदि सत्य बोलने से चारों वर्गों का कोई व्यक्ति मत्यु-दण्ड पा सकता है तो साक्षी असत्य बोल सकता है। मनु (८।१०५-१०६), याज्ञ० (२।८३) एवं विष्णुधर्मसूत्र (८।१६) ने व्यवस्था दी है कि इस प्रकार झूठबोलने पर उच्च वर्गों के लोगों को प्रायश्चित्त-स्वरूप सरस्वती देवी के लिए अग्नि में कूष्माण्ड (वाजसनेयी संहिता २०।१४-१६ या तैत्तिरीयारण्यक १०।३-५) मन्त्रों के साथ घृत की आहुतियाँ या पके चावल की आहुतियाँ देनी चाहिए। मन्त्रों के विषय में कई विकल्प हैं । विष्णुधर्मसूत्र (८।१७) का कथन है कि शूद्र को वैसा करने पर दस गायों को एक दिन में खिलाना पड़ता था। सचमुच, मत्यु-मुख से बचाने के लिए धर्मशास्त्रकारों ने असत्य साक्ष्य की जो छूट दी है वह आश्चर्यजनक है। शान्तिपर्व (४५।३५, १०६।१६) में जो आया है, सम्भवतः वही भावना स्मृतिकारों के मन में भी काम कर रही थी। शान्तिपर्व (१६५।३०) में आया है कि पांच बातों में असत्य-भाषण से पाप नहीं लगता; स्त्री से ( रति के समय) और विवाह के समय, हँसी-मजाक करते समय, अधिक धन नाश एवं प्राण-रक्षा के समय झूठ बोलना पाप नहीं है । वसिष्ठ (१६।३६) ने इन पाँचों को कुछ भिन्नता के साथ रखा है।१४मन (८1११२) में भी ऐसी ही व्यवस्था पायी जाती है। किन्तु प्राचीन ऋषि गौतम (२३।२६) ने इस प्रकार की छट को ठीक नहीं माना है।१५ नारद (४१२३५-२३६) का कथन है कि यदि ऋणदाता की असावधानी से लेखप्रमाण एवं साक्षी न हों तो तीन १३. कूट सभ्यः कूटसाक्षी ब्रह्महा च समाः स्मृताः । बृहस्पति (व्यवहारप्रकाश, पृ० १३३); येन कार्यस्य लोभेन निर्दिष्टाः कूटसाक्षिणः । गृहीत्वा तस्य सर्वस्वं कुर्यान्निविषयं ततः ॥ कात्यायन (४०७, स्मृतिचन्द्रिका २, ६३ एवं अपरार्क पृ० ६७२) । १४. प्राणत्राणेऽनतं वाच्यमात्मनो वा परस्य च । गुर्वथेस्त्रीषु चैव स्याद्विवाहकरणेषु च ॥ शान्ति० ३४।२५; न नर्मयुक्तमनृतं हिनस्ति न स्त्रीषु राजन्न विवाहकाले । न गुर्वथं नात्मनो जीबितार्थे पञ्चानृतान्याहुरपातकानि ॥ शान्तिपर्व १६॥३०; उद्वाहकाले रतिसंप्रयोगे प्राणात्यये सर्वधनापहारे । विप्रस्य चार्थे ह्यन्तं वदेयुः पञ्चानृतान्याहुरपातकानि ॥ वमिष्ठ १६॥३६ । १५. विवाहमैथुननर्तिसंयोगेष्वदोषमेकेऽनृतम् । गौतम २३।२६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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