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________________ अपराधों के भेद और वर्गीकरण ७११ अपराधी को जेल से छुड़ाने के लिए या नारी से बलात्कार करने वाले अपराधी को अर्थ-दण्ड देकर छोड़ देते हैं, उन्हें दण्डित किया जाता है। कौटिल्य (४।१०) ने चोरी, मार-पीट, गाली-गलौज, मान-हानि करने, घोड़े या किसी अन्य सवारी पर चढ़कर राजा के प्रति अश्रद्धा प्रकट करने, स्वयं राज्यानुशासन निकालने आदि अपराधों में शरीरांग काटने के स्थान पर अर्थ-दण्ड देने की भी व्यवस्था दी है। उन्होंने मनुष्य-मांस बेचने पर मृत्यु-दण्ड की व्यवस्था दी है, मूर्तियों एवं पशुओं की चोरी पर मृत्यु-दण्ड की चर्चा की है तथा मनुष्यों को लुप्त कर देने, बलवश किसी की भूमि छीन लेने, घर, सोना, सोने के सिक्के, रत्नों एवं अन्न के पौधों की चोरी पर मृत्यु-दण्ड या अधिकाधिक दण्ड देने की व्यवस्था दी है। किसी को झगड़े में मार डालने पर यन्त्रणा या बिना यन्त्रणा के मृत्यु-दण्ड दिया जाता था (किन्तु यदि घायल व्यक्ति झगड़े के १५ दिन या एक मास के उपरान्त मर जाता था तो अधिकाधिक अर्थ-दण्ड या ५०० पण या चिकित्सा में लग धन के बराबर दण्ड लगता था) । किसी हथियार से धायल कर देने पर कई प्रकार के दण्ड दिये जाते थे। पुरुषों या नारियों को मार डालने पर शूली पर चढ़ाया जाता था, जो व्यक्ति राज्य-हरण करने के अपराधी होते थे या अन्तःपर में बलपूर्वक प्रवेश करते पाये जाते थे, या जो आटविकों (जंगल में रहने वालों) को या शत्रुओं को आक्रमण करने के लिए उभाडते थे या देश, राजधानी या सेना में असन्तोष उत्पन्न करते थे, उन्हें जीवित जलाया जाता था। इस प्रकार के अपराध में पकड़े गये ब्राह्मण को जल में डुबा दिया जाता था या अंधेरे कमरे में अकेला बन्दी रखा जाता था। मातापिता, गुरु या साधु को अपशब्द कहने पर जिह्वा काट ली जाती थी ; बांध, जलाशय को नष्ट करने वाले को जल में डुबा दिया जाता था; जो स्त्री अपने पति या बच्चे को या गुरुजन को मार डालती थी, विष देती थी या उन्हें आग में जला डालती थी, उसे बैल द्वारा फड़वा दिया जाता था (कौटिल्य ४।११)। कौटिल्य ने परनारी के साथ बलात्कार करने, अविकसित या विकसित लड़की के साथ संभोग करने पर दण्ड की व्यवस्था दी है । यदि कोई पुरुष किसी विकसित अथवा युवती लड़की के साथ उसकी इच्छा के साथ संभोग करता है तो पुरुष को ५४ पण तथा लड़की को २७ पण दण्ड देना था। अपनी ही जाति की लड़की के साथ, जो तीन वर्ष पूर्व से यौवन प्राप्त कर चुकी है, किन्तु अभी अविवाहित है, संभोग करना बड़ा अपराध नहीं माना जाता था। दिखान के समय कोई और, किन्तु विवाह के समय कोई अन्य कन्या प्रकट करने पर दण्डित होना पड़ता था। यदि प्रवासी व्यक्ति की पत्नी व्यभिचार करती है और उसका कोई सम्बन्धी या नौकर उसे नियन्त्रित रखकर उसके पति को उसके आने पर सौंप देता है तथा उसका पति उसे क्षमा कर दता है तो उसके प्रेमी के ऊपर अभियोग नहीं चलाया जाता, किन्तु यदि पति क्षमा नहीं करता है तो स्त्री के कान एवं नाक काट लिये जाते हैं और प्रेमी को मृत्यु-दण्ड दिया जाता है--कौटिल्य (४।१२)। इसी प्रकार कौटिल्य (४।१३) ने अन्य प्रकार के अपराधों की भी चर्चा की है जिन्हें स्थानाभाव से यहां नहीं दिया जा रहा है। कौटिल्य ने बड़े विस्तार के साथअपराधों का वर्णन किया है, उनकी तालिका की विशालता आधुनिक भारतीय दण्डविधान' की विशालता से कम नहीं है । कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अध्याय ४ के बहुत-से नियम एवं व्यवस्थाएँ याज्ञ० (२।२७३-३०४), नारद० (प्रकीर्णक तथा अन्य स्थानों में), मनु (८।३६५-३६८, ३६६-३६७; ६।२२५-२२६, २३१-२३२, २६१-२६७) में भी पायी जाती हैं। कौटिल्य ने बहुत-से अभियोगों की चर्चा कण्टकशोधन के अन्तर्गत की है न कि धर्मस्थीय परिच्छेद के अन्तर्गत। ऐसा क्यों किया गया है, इसका उत्तरदेना कठिन है। यह सम्भव है कि कौटिल्य ने धर्मस्थीय के अन्तर्गत केवल उन्हीं अभियोगों, प्रतिवेदनों आदि को रखा, जो दो दलों के बीच के झगड़ों से सम्बन्धित थे । बहुत-से प्रतिवेदन, जिन्हें वाक्पारुष्य, दण्डपारुष्य, संग्रहण एवं स्तेय के अन्तर्गत रखा गया है, झगड़ों से सम्बन्धित थे और वैसे ही थे जो विशेषत: कण्टकशोधन परिच्छेद में रखे गये हैं। कण्टकशोधन वाले अभियोग राजा अथवा राजकर्मचारियों द्वारा उपस्थित किये जाते थे और वे राज्य से सम्बन्धित होने के कारण फौजदारी (क्रिमिनल) माने जाते थे, क्योंकि उसका सीधा लगाव विशेषतः अपराधों के नष्ट करने से था। कौटिल्य (३।२०) ने प्रकीर्णक के अन्तर्गत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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