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________________ ७१० धर्मशास्त्र का इतिहास था । वेश परिवर्तित कर गुप्तचर लोग ग्रामों के राजकर्मचारियों की सचाई एव बेईमानी का पता लगाते थे । इसी प्रकार वे अध्यक्षों, न्यायाधीशों, धर्माध्यक्षों, साक्षियों ( गवाहों) की सचाई एवं बेईमानी का पता लगाते थे । इन विषयों में अपराधी सिद्ध होने पर सामान्यतः देश- निष्कासन का दण्ड मिलता था । गुप्तचरों द्वारा तथा साधुओं-महात्माओं के वेश में एजेन्टों द्वारा उन नवयुवकों का पता लगाया जाता था जो चोरी एवं डकैती करने की ओर झुकाव रखते थे । कौटिल्य ( ४, ६ एव ७) ने सन्देह में या अपराध करते हुए पकड़े गये अपराधियों तथा अचानक हो गयी मृत्युओं की जाँच-पड़ताल के विषयों पर लिखा है। कौटिल्य ( ४1८) ने प्रतिवादी के गवाहों की जांच वादी की उपस्थिति में करने व्यवस्था दी है। गवाहों से यह पूछा जाता था कि वे प्रतिवादी के सम्बन्धी तो नहीं हैं या वे पूर्णरूपेण अजनबी हैं, इतना ही नहीं, उनसे उनके देश, जाति, वंश, नाम, वृत्ति, सम्पत्ति एवं प्रतिवादी के मित्रों एवं उसके निवास स्थान के विषय में पूछा जाता था । कभी-कभी अपराध स्वीकार कराने के लिए यन्त्रणा दी जाती थी । यह कहा जाता है कि केवल उन्हीं को यन्त्रणा दी जाती थी जिनका अपराध एक प्रकार से सिद्ध हो चुका रहता था ( पहली दृष्टि में, आप्तदोषं कर्म कारयेत्) । जब अपराध गुरुतर नहीं होता अर्थात् हल्का होता है, या अपराधी छोटी अवस्था का होता है, बूढ़ा या बीमार होता है, नशे के वश में रहता है, पागल रहता है, भूख या प्यास या यात्रा की थकावट से व्याकुल रहता है, अधिक खाया हुआ है या अजीर्ण से बीमार है या दुर्बल है, या वह ऐसी नारी है जिसने अभी एक मास के भीतर ही बच्चा जना है, तो यन्त्रणा नहीं दी जाती थी । अन्य नारियों को पुरुष की अपेक्षा आधी यन्त्रणा दी जाती थी या केवल प्रश्न ही पूछा जाता था । विद्वान ब्राह्मणों एवं साधुओं को अपराधी बताये जाने पर उनके पीछे केवल गुप्तचर लगा दिये जाते थे । जो इन नियमों का उल्लंघन करते या औरों को वैसा करने को उद्दीप्त करते, या जो यन्त्रणा से किसी को मार डालते थे उन्हें कड़ा से कड़ा दण्ड दिया जाता था । अपराध करने पर चार प्रकार की यन्त्रणाएँ दी जाती थीं -- ( १ ) छ: डण्डे, (२) सात कोड़े, (३) दो प्रकार से लटकाना तथा ( ४ ) नाक में नमकीन पानी डालना । कौटिल्य ने लिखा है कि जो किसी निर्दोष व्यक्ति को चोर बनाता है या जो चोर को छिपाकर रखता है, वह चोर के समान ही दण्डपाता है। कभी-कभी चोरी न करने वाला भी यन्त्रणा के डर से अपराध स्वीकार कर लेता है, जैसा कि माण्डव्य ने किया था । ११ कौटिल्य (४६) ने लिखा है कि समाहर्ता एवं प्रदेष्टा को सभी विभागों के अध्यक्षों एवं उनके अधीन राजकर्मचारियों के ऊपर नियन्त्रण रखना चाहिए। जो लोग राज्य की खानों की सामग्रियों एवं रत्नों को चुराते थे या ले लेते थे उन्हें फाँसी का दण्ड मिलता था । इसी प्रकार अन्य प्रकार के सामानों की चोरी या उन्हें हटाने-बढ़ाने पर भाँति-भाँति के दण्डों की व्यवस्था थी । कौटिल्य ने लिखा है कि ऐसे न्यायाधीशों को दण्ड दिया जाता है जो आवे hi या प्रतिवेदकों (वादियों या प्रतिवादियों) को धमका कर, टेढ़ी भौंहें दिखाकर चुप कर देते हैं या गाली देते हैं । जो न्यायाधीश ठीक से प्रश्न नहीं पूछते हैं, व्यर्थ में देरी करते हैं या सुने सुनाये मुकदमे को व्यर्थ में पुनः सुनते हैं या जो ११. माण्डव्य की कथा आदिपर्व (६३/६२-६३, १०७ १०८), अनुशासनपर्व ( १८/४६-५०), नारद० ( १।४२) एवं वृहस्पति ० ( अपरार्क द्वारा उद्धृत, पृ० ५६६) में पायी जाती है । माण्डव्य एक निर्दोष व्यक्ति था । उसके पास ही चोरी की सामग्री मिली थी और वह मौनव्रत में लीन था। प्रश्न पूछे जाने पर उसने कुछ भी उत्तर नहीं दिया। उसे लोगों ने चोर सिद्ध किया -- शूले प्रोतः पुराणविरचोरश्चोरशकया । अणीमाण्डव्य इत्येवं विख्यातः सुमहायशाः ।। आदि० (६३।६२-६३) । कौटिल्य (४८) ने माण्डव्य की कथा दूसरे ढंग से दी है । मार्कण्डेयपुराण ( अध्याय १६) में अणीमाण्डव्य की कथा पायी जाती है। लगता है, दण्ड- विधि (क्रिमिनल लॉ) में माण्डव्य की गाथा एक प्रसिद्ध गाथा रही है । मृच्छकटिक (अक ६ । ३६) में भी यन्त्रणा की ओर संकेत मिलता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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