SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभियान तथा तत्सम्बन्धी धार्मिक कृत्य आदि ६६५ है, उसकी प्रजा सन्तुष्ट है तथा दूसरे राजा की प्रजा एवं सेना असन्तुष्ट है, और जब उसे इसका ज्ञान हो जाय कि उसे विग्रह के तीन फल (भूमि, मित्र एवं धन, काम० १०।२६-२८ ) प्राप्त हो रहे हैं, तो उस ( दूसरे राजा) पर आक्रमण कर देना चाहिए । कोटिल्य ( ७।१५) ने विजयी को सेना समर्पित किये जाने पर विजित की मनःस्थिति तथा दण्डोपनायी (जो सैन्यबल से दूसरे राजा को झुका देता है) की मनःस्थिति का वर्णन किया है ( ७।१६) । यान का तात्पर्य है उस विजिगीषु का आकमण प्रयाण जिसकी प्रजा उसके गुणों के कारण अति सन्तुष्ट हो ( काम० ११।१ ) । मत्स्यपुराण ( २४०१२) एवं अग्निपुराण (२२८1१-२ ) का कथन है कि जब शत्रु पृष्ठभाग आॠन्द द्वारा अभिभूत कर लिया जाय या जब शत्रु विपत्तियों से आक्रान्त हो जाय तो विजिगीषु को आक्रमण के लिए प्रयाण करना चाहिए। किन्तु यातव्य पर ( जिस पर आक्रमण करना निश्चित हो चुका है) आक्रमण करने के पूर्व एक दूत ( काम० १२1१ ) यह जानने के लिए भेज देना चाहिए कि वह (यातव्य) मुठभेड़ करना चाहता है या झुक जाना चाहता है। इससे स्पष्ट है कि बिना बातचीत किये या अन्तिम बात कहे ( यथा -- यदि यह बात नहीं मानी जायगी तो लड़ाई छिड़ जायगी) लड़ाई नहीं की जाती थी । महाभारत ( उद्योगपर्व ८३।५-७ ) में आया है कि श्री कृष्ण पाण्डवों की ओर से दूत के रूप में कौरवों के यहाँ पहुँचे थे । पुराणों एवं मध्यकाल के निबन्धों में आक्रमण करने के पूर्व भावी धार्मिक एवं आराधनापूर्ण कृत्यों के विषय में बहुत से नियम हैं । विष्णुधर्मोत्तर ( २।१७६) एवं अग्नि० (२३६।१-१८ ) के मत से आक्रमण के सात दिन पूर्व से ही आक्रामक राजा को देवी-देवों की पूजा करनी पड़ती थी। गणपति, दिक्पालों, नवग्रहों, आश्विनी, विष्णु, शिव तथा राजधानी के मन्दिरों के देवों की पूजा की जाती थी। आक्रामक को उन दिनों के स्वप्नों का अर्थ लगाना पड़ता था और बुरे स्वप्नों के लिए मार्जन आदि की व्यवस्था करानी पड़ती थी। अच्छे एवं शुभ शकुनों तथा स्वप्न- विचार के विषय में बहुत पुरानी परम्परा रही है । छान्दोग्योपनिषद् (५२६-६) में आया है कि जब कोई किसी कार्य की मिद्धि के लिए पवित्र यज्ञों में संलग्न रहने पर स्वप्न में किसी स्त्री को देखता है तो उसे यह अनुभव करना चाहिए कि उसका कार्य अवश्य हो जायगा । इसी प्रकार ऐतरेय आरण्यक ( ३।२।४ ) में आसन्न मृत्यु के संकेतों के विषय में लिखा है कि जब कोई व्यक्ति स्वप्न में किसी काले दाँत वाले काले व्यक्ति को देखे तो उसकी मृत्यु हो जायगी, ऐसा समझना चाहिए । १५ शंकराचार्य ने वेदान्तसूत्रभाष्य ( २1१1१४ ) में उपर्युक्त बातों का उद्धरण दिया है। विष्णुधर्मोत्तर (२।१३२-१४४- जो गर्ग पर आधारित है, २।१६४), मत्स्यपुराण (२२८- २४१ ), अग्नि० ( २३० - २३२) आदि ने स्वर्ग एवं आकाश में तथा पृथ्वी और क्रियाओं में उत्पन्न अशुभ लक्षणों एवं शकूनों तथा उन्हें दूर करने के उपायों के विषय में लिखा है। मानसोल्लास (२।१३, पृ० ६७ - ११२ ) एवं राजनीतिप्रकाश ( पृ० ३३१-३५१) ने भी ये सब बातें कही हैं और ज्योतिष -सम्बन्धी चर्चा भी की है। उनमें से कुछ बहुत ही मनोरंजक हैं, यथा विष्णुधर्मोत्तर (२।२३५) मूर्तियों के रोने एवं नाचने की बात कही है। पूजा के छठे दिन अर्थात् आक्रमण प्रयाण के एक दिन पूर्व राजा जयाभिषेक नामक स्नान करता है। इसका प्रभूत वर्णन राजनीतिप्रकाश ( पृ० ३५१-३६५ ) में हैं, जहाँ लिंगपुराण से बहुत से उद्धरण दिये गये हैं। जय- स्नान के कृत्य राज्याभिषेक के कृत्यों से बहुत अंशों में मिलते हैं। विशद चर्चा के लिए देखिए मत्स्य ० ( २४३।१५-१६ ) एवं विष्णुधर्मोत्तर ( २।१६३।१८-३१) | मत्स्य ० ( २४३।२-१४) में शुभ दर्शनों की भी एक सूची दी गयी है । १५. स यदि स्त्रियं पश्येत्समृद्धं कर्मेति विद्यात् । तदेव श्लोकः । यदा कर्मसु काम्येषु स्त्रियं स्वप्नेषु पश्यति । समृद्धि तत्र जानीयात्तस्मिन्स्वप्ननिदर्शने ॥ छान्दोग्य० (५२८- ६ ) ; न चिरमिव जीविष्यतीति विद्यात् अथ स्वप्नाः । पुरुषं कृष्णं कृस्णदन्तं पश्यति स एनं हन्ति । ऐ० आरण्यक ( ३।२०४ ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy