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धर्मशास्त्र का इतिहास ५०० हाथी थे (मैरिडिल, पृ० १४७)। अपने भाई के हत्यारे के विरुद्ध लड़ने के लिए जाते समय हर्ष के पास ५००० हाथी, २००० घोड़े एवं ५०,००० पैदल थे और छ: वर्षों के उपरान्त उसके पास ६०,००० हाथी एवं १,००,००० घोड़े थे। इस विषय में देखिए बील का 'बुद्धिस्ट रेकर्ड स आदि' (जिल्द १, पृ० २१३)। आश्वमेधिकपर्व (६०१४-२०) में ऐसा उल्लेख है कि जब द्रोणाचार्य कौरव-सेना के सेनापति हए, उस समय सेना क्षीण हो चकी थी और उसमें अब ११ अक्षौहिणी के स्थान पर केवल अक्षौहिणी सैनिक थे। जब कर्ण मेनापति हुआ तो केवल ५ अक्षौहिणी सेना थी और पाण्डवों के पास भी अब केवल ३ अक्षौहिणी सेना रह गयी थी। शल्य के सेनापति होते-होते केवल ३ अक्षौहिणी सेना कौरवों के पास बच गयी थी और पाण्डवों के पास अब केवल एक अक्षौहिणी सेना शेष थी। युधिष्ठिर ने धृतराष्ट्र को उत्तर दिया है कि महाभारत में कुल मिलाकर १६६,००,२०,००६ सैनिक मारे गये (स्त्रीपर्व २६।६) । अक्षौहिणी के विषय में उद्योगपर्व (१५५।२४-२६) में निम्नांकित तालिका मिलती है--एक सेना में ५०० हाथी, ५०० रथ, १५०० घोड़े एवं २५०० पैदल होते हैं; १० सेनाओं की एक पृतना होती है, १० पतनाओं की एक वाहिनी होती है,१० वाहिनियों की एक ध्वजिनी होती है, १० ध्वजिनियों की एक चमू होती है और १० चमुओं की एक अक्षौहिणी होती है। कौरवों के पास ११ तथा पाण्डवों के पास ७ अक्षौहिणी सेना थी। आदिपर्व (२।१६-२२) के अनुसार एक अक्षौहिणी में २१८७० हाथी, उतने ही रथ, ६५६१० घोड़े एवं १०६३५० पैदल होते हैं। किन्तु यदि अन्य सूचियों पर ध्यान दिया जाय तो संख्या और भी आगे बढ़ जायगी। उद्योगपर्व (१५५।२८-२६) के अनुसार एक पत्ति में ५५ व्यक्ति,३ पत्तियाँ = एक सेनामुख या गुल्म, ३ गुल्म = एक गण; इस प्रकार कौरवों की सेना में गणों के कई अयुत (१० सहस्र) सैनिक थे। आदिपर्व (२०१६-२२) उपर्युक्त दोनों सूचियों से भेद रखता है। उद्योगपर्व (१५५।२२) ने यह भी कहा है कि प्रत्येक घुड़सवार दस सैनिकों से घिरा रहता था (नरा दश हयश्चासन् पादरक्षाः समन्तत:)। यद्यपि शताब्दियों तक पैदल सैनिकों की संख्या सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक रूप से घुड़सवारों से अधिक मानी जाती रही है, किन्तु ऐसा लगता है कि रथों एवं घुड़सवारों की अपेक्षा उन पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता रहा है। वैजयन्ती कोश के अनुसार एक पत्ति में ३ घोड़, ५ पैदल, एक रथ एवं एक हाथी पाये जाते हैं, ३ पत्तियाँ = एक सेनामख तथा सेनामुख, गुल्म, गण, वाहनी, पृतना, चमू एवं अनीकिनी नामक सैन्य दल अपने पूर्ववर्ती से तिगुने होते हैं और दस अनीकिनियाँ बराबर होती हैं एक अक्षौहिणी के। इस विषय में देखिए नीतिप्रकाशिका (७।३ एवं १०)। मन (७११६२) ने जल-युद्ध की चर्चा की है। महाभारत के उल्लेखों से तो पता चलता है कि रथों में केवल दो ही चक्र (पहिये) होते थे; देखिए भीष्म० (६८।४), द्रोण० (१५४।३), शल्य० (१६।२४) “शैनेयो दक्षिणं चक्रं धृष्टद्युम्नस्तथोत्तरम् ।” प्रमुख सेनापतियों के रथों की रक्षा करने वालों को "चक्र-रक्षौ" अर्थात् द्विवचन में कहा गया है (भीष्म० ५४-७६,१०८।५, द्रोण०६१।३६, कर्ण १११३१, ३४०४४)। महारथियों के रथ चार घोड़ों द्वारा खींचे जाते थे (आदि० १६८१५, उद्योग० ४८१५०, द्रोण० १४५।८१) । उद्योग०(८३।१५-२१) में कृष्ण के रथ का वर्णन है। उद्योग० (१४०।२१) में आया है कि रथों में छोटी-छोटी घण्टियाँ और व्याघ्रचर्म के आवरण लगे रहते थे । ऋग्वेद में रथों का बड़ा मनोहर वर्णन है। सामान्यतः ऋग्वेदीय काल में रथ में दो घोड़े जुते रहते थे (ऋ० ५।३०।१, ५॥३६॥५, ६।२३।१), उसमें दो चक्र होते थे। किन्तु अश्विनी के रथ में तीन चक्रों का उल्लेख पाया जाता है (ऋ० १११८१२, १।१५७१३, १०४१।१)। घटोत्कच के रथ मे आठ पहिये थे (द्रोण० १५६।६१, १७५।१३)।।
___ शुक्रनीतिसार (२।१४०-१४८) ने सेना के विभिन्न भागों एवं प्रकारों के संयोजन की एक अन्य प्रणाली दी है-५-६ सैनिकों की एक पत्ति होती है, जिस पर एक पत्तिप नामक अधिकारी नियुक्त होता है, ३० पत्तिपालों पर एक गौल्मिक होता है, १०० गौल्मिकों पर एक शतानीक होता है, जिसे एक अनुशतिक, एक सेनानी एवं एक लेखक सहायक रूप में मिलते थे; २० हाथियों या घोड़ों के स्वामी को नायक कहा जाता है। इनमें से प्रत्येक अधिकारी का अपना-अपना
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