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सेना का स्वरूप एवं प्रकार
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सेना के चार भाग होते थेहस्ती, अश्व, रथ एवं पदाति और इस प्रकार की सेना की संज्ञा थी चतुरंगिणी। कामन्दक (१८।२४) के मत से बल के छःप्रकार थे--हस्ती, अश्व, रथ, पदाति, मन्त्र (नीति) एवं कोश । शान्तिपर्व (१०३।३८) में सेना के छ: अंगों का उल्लेख हुआ है--हस्ती, अश्व, रथ, पदाति, कोश एवं आवागमन के मार्ग । कौटिल्य (२१२, ७।११)एवं कामन्दक (१६४६२) के मत से शत्र-नाश हाथियों पर निर्भर रहता है। शान्तिपर्व (१००। २४) का कहना है कि वह सेना सुदृढ़ है, जिसमें पैदल सैनिक अधिक हों, जब वर्षा न हो तब रथ एवं घुड़सवार भी अच्छे ही हैं । शान्ति० (५६१४१५४२) ने सेना के आठ अंग बताये हैं-हस्ती, अश्व, रथ, पैदल (पादात), विष्टि (श्रमिक जो बेगार करते थे और जिन्हें भोजन के अतिरिक्त कोई पारिश्रमिक नहीं मिलता था), नाव, चर एवं देशिक (पथप्रदर्शक)। गौर देखिए शान्ति० (१२११४४)। महाभारत में, जैसा कि वर्णन मिलता है, हाथियों के युद्ध का वर्णन रथों एवं अन्य आयुधों की अपेक्षा बहुत ही कम है । विराटपर्व (६५१६) में आया है कि अर्जुन से लड़ते समय विकर्ण हाथी पर बैठा था। भीष्मपर्व (२०१७) में दुर्योधन हाथी पर बैठा दिखाया गया है और भीम से लड़ते समय भगदत्त हाथी पर ही सवार था (६२३२-३३)। इस विषय में महाभारत ने वैदिक परम्परा सँभाली है। मेगस्थनीज (फंगमेण्ट १,१०३०) के मत से प्राचीन भारत में हाथी यद्धों के लिए प्रशिक्षित होते थे और जय-विजय के पलडे को इधर या उधर कर देते थे।
प्राचीन भारतीय राजा एवं सम्राट विशाल सेना रखते थे । लवणासुर से युद्ध करने के लिए शतुघ्न ४००० घोड़ों, २००० रथों एवं १०० हाथियों को लेकर चले थे (रामायण ७।६४१२-४)। दशकुमारचरित (८) में विहारभद्र ने अपने स्वामी को स्मरण दिलाया है कि उसके पास १००० हाथी, ३ लाख घोड़े एवं असंख्य पैदल सैनिक थे। मेगस्थनीज (गमेण्ट २७, पृ० ६८) ने सैडकोट्टोस (चद्रगुप्त मौर्य) के शिबिर का वर्णन किया है और कहा है कि उसमें ४,००,००० व्यक्ति थे । पालिब्रोथा (पाटलिपुत्र) के राजा के पास निम्न सैन्यबल था-६ लाख पैदल, ३००० अश्व, ६००० हाथी (मैरिरडिल, पृ०१४१)। इसी प्रकार होराटी (सुराष्ट्र) के राजा के पास १,५०,००० पैदल, ५००० घोड़े, १६०० हाथी थे (मैरिडिल, पृ० १५०) और पाण्ड्य राज्य में नारियों का राज्य था, जिसमें १,५०,००० पैदल,
५. हस्तिप्रधानो विजयो राज्ञाम् । कौटिल्य (२।२); हस्तिप्रधानो हि परानीकवधः। कौटिल्य (७११); नागेषु हि क्षितिभुजां विजयो निबद्धस्तस्माद् गजाधिकबलो नपतिः सदा स्यात् । काम० (१६४६२); मुख्यं वन्तिबलं राज्ञां समरे विजयषिणाम् । तस्मानिजबले कार्या बहवो द्विरवा नृपः॥ मानसोल्लास (२८, श्लोक ६७८, प०६०); यतो नागास्ततो जयः । बुधभूषण (प० ४२); बलेषु हस्तिनः प्रधानमन स्वैरवयवरष्टायुधा हस्तिनो भवा मृत (बलसमुद्देश, पृ० २०७)। हाथी के चारों पर, दो दांत, सूंड एवं पूँछ आठ आयुध हैं । यद्यपि बुधभूषण (पृ. ४२) ने हाथी की प्रभूत प्रशंसा की है, नीतिवाक्यामृत का कहना है कि यदि हाथी भली भांति प्रशिक्षित न हों तो वे धन (क्योंकि वे बहुत अन्न और चारा खा जाते हैं) एवं जन (युद्ध में वे अपने ही सैनिकों को पैरों तले कुचल देते हैं) का नाश कर देते हैं.--"अशिक्षिता हस्तिनः केवलमर्थप्राणहराः” (२२१५, पृ० २०८) । यशस्तिलक (२ पृ० ४१६) का कथन है-- "न विनीता गजा येषां तेषां ते नृप केवलम् । क्लेशायापि विनाशाय रणे चात्मवधाय च ॥" यह बात हम मुसलमानों एवं अन्य बाहरी आक्रामकों के युद्धों में देख चुके हैं । इतिहास प्रमाण है (देखिए एलफिस्टन की हिस्ट्री आव इण्डिया, पाँचवाँ संस्करण, १८६६ ई०,१० ३०६, जहाँ सिन्ध के राजा दाहिर एवं मुहम्मद बिन कासिम के युद्ध में अग्निगोला लग जाने पर राजा दाहिर के हाथी के बिगड़ जाने का वर्णन है। कैम्ब्रिज हिस्ट्री आव इण्डिया, जिल्द ३,१६२८,पृ०५ एवं १६, जहाँ महमूद गजनवी से लड़ते समय राजा अनंगपाल के हाथी के बिगड़ जाने का उल्लेख है)।
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