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________________ ६७८ ___धर्मशास्त्र का इतिहास मानसोल्लास (२१६, श्लोक ५५६-५६०, १० ७६) ने भी सेनाओं के विषय में अपना मत दिया है। इसके अनसार आटविक सेना में निषाद, म्लेच्छ आदि पहाडी प्रदेशों में रहने वाली जातियों के लोग रहते हैं। अमित्र सेना वह है जिसमें विजित देश के सैनिक रहते हैं जो दास रूप में भर्ती होते हैं । राजनीतिरत्नाकर (१०३८) के अ अरिबल वह है जिसके सैनिक अपने राजा को त्याग कर दूसरे राजा की सेना में आ मिलते हैं। कामन्दक (१८१७) के अनुसार आटविक दल स्वभावतः अधार्मिक, लोभी, अनार्य एवं सत्य से दूर रहने वाला होता है। लगता है, इस दल के लोग उत्तरकालीन मगल-काल अथवा अंग्रेजों के शासन स्थापित होने के पूर्व के पिण्डारियों एवं ठगों के समान थे। कौटिल्य (६२)एवं कामन्दक (१८१५-६) ने विस्तार के साथ अमिन एवं आटविक सेना की अपेक्षा मील एवं अन्य सेनाओं की श्रेष्ठता प्रकट की है। कौटिल्य का कहना है कि किसी आर्य की अध्यक्षता में अमित्र सेना आटविक सेना से अच्छी है। दोनों प्रकार की सेनाएँ डाकेजनी करने को आतुर रहती हैं, अत: यदि उनके लिए उनके स्वभावान कल अवसर न मिला तो वे सर्यों के समान भयंकर हो उठती हैं। कौटिल्य ने श्रेणीबल को सुव्यवस्थित सैनिकों का दल माना है और उसी के सैनिकों को उसने "वाशिस्त्रोपजीविनः" कहा है (कौटिल्य ११३१) । व्यापारीगण अपने सामानों की रक्षा के लिए दक्ष सैनिकों का दल रखते थे। लगता है, समय पड़ने पर राजा इन व्यापारियों के सैनिक दलों को बुला लेते थे, इसी से यह सैन्य-बल मौल एवं भत्य-बल से पृथक समझा जाता था। कौटिल्य ने अन्य आचार्यों का यह मत कि जो सैन्य दल क्रम से ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों एवं शूद्रों द्वारा गठित होते हैं वे उसी क्रम से अच्छे कहे जाते हैं, नहीं माना है। उनके अनुसार सुन्दर ढंग से प्रशिक्षित क्षत्रियों का दल या वैश्यों या शद्रों का दल ब्राह्मणों के सैन्य-दल से कहीं अच्छा होता है, क्योंकि शत्रु लोग ब्राह्मणों के चरणों में झुककर उन्हें अपनी ओर फोड़ ले सकते हैं । ४ ब्राह्मण सैनिककार्य कर सकते हैं कि नहीं, इस विषय में देखिए इस ग्रन्थ के भाग २ का अध्याय ३। उद्योगपर्व (६६७, क्रिटिकल संस्करण, अध्याय ६४) में आया है कि राजा दम्भोद्भव प्रति दिन प्रातःकाल यही कहता था--"क्या कोई शूद्र,वैश्य, क्षत्रिय या ब्राह्मण मेरे बराबर बलशाली है और मुझसे युद्ध कर सकता है।" इससे स्पष्ट है कि क्षत्रियों के अतिरिक्त अन्य जाति वाले भी महाभारत काल में सैनिक हो सकते थे। कामन्दक (४।६३, ६५ एवं ६७) के अनुसार मौल अथवा पितृ-पैतामह सेना में अधिकांश क्षत्रिय ही होने चाहिए। महाराज धरसेन द्वितीय (वलभी-सवत् २५२=५७१-७२ई.) के मलिय नामक ताम्रपत्र में लिखा है कि वलभी-राज्य के संस्थापक भटार्क ने मौल, भत, मित्र एवं श्रेणी सेनाओं के द्वारा राज्य प्राप्त किया (गुप्ताभिलेख, पृ० १६५) । शुक्र० (२।१३७-१३६) का कथन है कि शूद्र, क्षत्रिय, वैश्य, म्लेच्छ या वर्णसंकर कोई भी सैनिक हो सकता है, किन्तु उसको साहसी, नियन्त्रित, शरीर से सुगठित, विश्वासपात्र,धार्मिक एवं शत्रुद्रोही होना आवश्यक है। शान्तिपर्व (१०११३-५) ने बतलाया है कि गन्धार, सिन्धु एवं अन्य देशों के सैनिक तथा यवन एवं दक्षिणी सैनिक क्योंकर सबसे अच्छे होते हैं । इस पर्व (श्लोक ६) में आया है कि साहसी एवं सुदृढ़ व्यक्ति सभी स्थानों में पाये जा सकते हैं, किन्तु सीमाप्रान्तों के मनुष्य (भिल्ल एवं कैवर्त, जैसा कि नीलकण्ठ ने लिखा है) प्राणों की बाजी लगाकर लड़ते हैं और युद्धक्षेत्र से कभी नहीं भागते, अतएव उन्हें सेना में भर्ती करना चाहिए (ग्लोक १६) । यशस्तिलक (३, पृ० ४६१-४६७) ने औत्तरापथ (उत्तरापथ अर्थात् उत्तर भारत के लोगों),दाक्षिणात्य, दमिल (दक्षिण भारत के), तिरहुत (तैरभुक्त) एवं गुजराती सैनिकों के गुणों की चर्चा की है। ४. ब्राह्मणक्षत्रियवैश्यसैन्यानां तेजःप्राधान्यात् पूर्व पूर्व श्रेयः संनाहयितुमित्याचार्याः । नेति कौटिल्यः । प्रणिपातेन ब्राह्मबलं परोभिहारयेत् । प्रहरणविद्याविनीतं तु क्षत्रियबलं श्रेयो बहुलसारं वैश्यशूद्रबलमिति । कोटिल्य (६२)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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