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धर्मशास्त्र का इतिहास
इसके चारों ओर लकड़ी की दीवारें थीं जिनमें तीर छोड़ने के लिए छिद्र बने हुए थे । राजधानी के सामने खाई भी थी । एरियन (डिल, पृ० २०६ - २१० ) के अनुसार पाटलिपुत्र में ५७० स्तम्भ एवं ६४ द्वार थे । अपने महाभाष्य में पतञ्जलि ने पाटलिपुत्र का उल्लेख कई बार किया है (जिल्द १, पृ० ३८० ) । महाभाष्य में पाटलिपुत्र शोण के किनारे बताया गया है ( पाणिनि २।१।१६ ) और इसमें इसके प्रासादों, दीवारों का भी उल्लेख हुआ है ( वार्तिक ४, पाणिनि ४।३।६६, एवं जिल्द २, पृ० ३२१, पाणिनि ४।३।१३४) । फाहियान ( सन् ३६६-४१४ ई०) ने भी पाटलिपुत्र की शोभा का उल्लेख किया है और उसे प्रेतात्माओं द्वारा बनाया हुआ कहा है। और देखिए राइस डेविड्स (बुद्धिष्ट इण्डिया, पृ० ३४-४१)।
भागवतपुराण (४।१८।३०-३२ ) में आया है कि वेन के पुत्र पृथु ने सर्वप्रथम पृथिवी को समतल कराया और ग्रामों, नगरों, राजधानियों, दुर्गों आदि में जनों को बसाया। पृथु के पूर्व लोग जहाँ चाहते थे रहते थे, न तो ग्राम थे और ननगर । राजनीतिकौस्तुभ के अनुसार श्रीधर द्वारा उद्धृत भृगु के मत से ग्राम वह बस्ती है जहाँ ब्राह्मण लोग अपने कर्मियों (मजदूरों) एवं शूद्रों के साथ रहते हैं, खर्वट नदी के तट की उस बस्ती को कहते हैं जहाँ मिश्रित लोग रहते हैं। और जिसके एक ओर ग्राम और दूसरी ओर नगर हो । राजनीतिकौस्तुभ ( पृ० १०३ - ४ ) द्वारा उद्धृत शौनक के मत से खेट उसे कहते हैं जहाँ ब्राह्मण, क्षत्रिय एव वैश्य रहते हैं, वह स्थान जहाँ सभी जातियाँ रहती है, नगर कहलाता है। शौनक के मत से ब्राह्मण गृहस्थों को श्वेत एवं सुगन्धित मिट्टी में, क्षत्रियों को लाल एवं सुगन्धित मिट्टी वाले नगरों में तथा वैश्यों को पीली मिट्टी वाले स्थानों में बसना चाहिए।
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