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________________ ६६० धर्मशास्त्र का इतिहास विष्णुधर्मोत्तर (२।१४६)ने तीन अन्य उपाय बतलाये हैं। सभापर्व (५।२१) ने सात उपाय तथा वनपर्व (१५०।४२) ने साम, दान, भेद, दण्ड एवं उपेक्षा नामक पाँच उपाय कहे हैं। तीन अतिरिक्त उपायों के विषय में मतैक्य नहीं है। अधिकांश ने माया, उपेक्षा एवं इन्द्रजाल (काम० एवं अग्नि०) नामक अतिरिक्त तीन उपाय बताये हैं। बार्हस्पत्यसूत्र (५।२६३) ने माया, उपेक्षा एवं वध नाम दिये हैं । इसी प्रकार अन्य तालिकाएं हैं, यथा--माया, अक्ष (पासों का खेल या जुआ) एवं इन्द्रजाल (सरस्वतीविलास, पृ० ४२)। माया का अर्थ है कपटपूर्ण चालाकी । विष्णुधर्मोत्तर ( २११४८) ने बहत-से दष्टान्त दिये हैं, यथा किसी पक्षी की पंछ में अग्निकाष्ठ या लकारी बाँधकर शन के शिविरों पर गिराना, जिससे शत्र-पक्ष को इस बात का भान हो कि आकाश से अशभ उल्कापात हआ है। भीम ने द्रौपदी का वेश धारण कर कीचक का वध किया था (काम० १७१५४) । माया के अन्य उदाहरणों के लिए देखिए कामन्दक (१७१५१-५३) । उपेक्षा का अर्थ है अन्याय करते हुए, किसी दोषयुक्त आचरण से लिप्त तथा युद्ध करते हुए शत्रु की ओर से उदासीन हो जाना, जैसा कि राजा विराट ने कीचक के विषय में किया था (काम०१७।५५-५७)। इन्द्रजाल का अर्थ है मन्त्र प्रयोग या अन्य चालाकियों से भ्रम उत्पन्न करना, यथा ऐसी स्थिति उत्पन्न कर देना कि शत्र जान जाय कि उसके प्रतिद्वन्द्वी के पास विशाल सेना है, या उसके विरोध में देवदूत लड़ने आ रहे हैं, या शत्रु-शिविरों पर रक्त की वर्षा करना आदि (काम० १७१५८-५६, विष्णुधर्मोत्तर २।१४६)। चार उपायों की चर्चा करते समय मनु (७.१०८-६) कहते हैं कि राज्य की समाद्धि के लिए साम एवं दण्ड को उत्तम समझना चाहिए। किन्तु यदि शत्रु नमित न हो और अन्य तीन उपाय निष्फल हो जाये तो दण्ड का प्रयोग करना चाहिए, किन्तु प्रत्येक अवस्था में दण्ड का प्रयोग अन्तिम उपाय है, क्योंकि जय सदैव अनिश्चित है। शान्तिपर्व (६६।२३) में बृहस्पति का मत उद्धृत है--"युद्ध का वर्जन सदा करना चाहिए, अपने उददेश्य की पूर्ति के लिए दण्ड की अपेक्षा अन्य तीन उपायों की सहायता लेनी चाहिए।" बहृत्पराशर (१०,५ में आया है कि अन्य उपायों के न रहने पर ही दण्ड की सहायता लेनी चाहिए।२५उद्योगपर्व (१३२।२६ने कृष्ण द्वारा अपने पूत्रों को यह सन्देश भेजा है-"भिक्षा तुम्हारे लिए वजित है, यह बात कषि के विषय में भी है, तुम अपने बाह-बल पर जीने वाले क्षत्रिय हो और हो 'क्षतात् त्राता' अर्थात् क्षति से बचाने वाले। तुम लोग लोग अपने वश की समृद्धि को साम, दान, भेद, दण्ड एवं नय के उपायों से प्राप्त करो।" और देखिए उद्योगपर्व (१५०)। विष्णुधर्मोत्तर (२२१४६) ने भी चार उपाय बताये हैं। यही बात मिताक्षरा (याज्ञ०१।३४६) एवं कामन्दक (१८११) ने भी कही है। चार उपायों का उपयोग न केवल राजाओं के लिए, प्रत्युत मामान्य लोगों के लिए भी श्रेयस्कर माना गया है।२६ __ कामन्दक (१८), मानसोल्लास (२।१७-२०), नीतिवाक्यामृत(पृ० ३३२-३३६) आदि ने विस्तार के साथ चारों उपायों की व्याख्या की है । कुछ बातें निम्न हैं-साम के पांच प्रकार हैं, यथा (१)एक-दूसरे के प्रति किये गये अच्छे व्यवहारों की चर्चा, (२) जीते जाने वाले लोगों के गुणों एवं कर्मों की प्रशंसा, (३) एक-दूसरे के सम्बन्ध की घोषणा, (४) भविष्य में होने वाले शभ प्रतिफलों की चर्चा,(५) "मैं आपका हूँ, मैं आपकी सेवा के लिए प्रस्तुत हूँ की उद्घोषणा (काम० १७१४-५) । दान में निम्न बातें आती हैं, यथा--एक-दूसरे की धरोहर लौटा देना, एक-दूसरे २५. वर्जनीयं सदा युद्ध राज्यकामेत धीमता। उपायस्त्रिभिरादानमर्थस्याह बृहस्पतिः।। शान्ति० ६६।२३; न युद्धमाश्रयेत्प्राज्ञो न कुर्यात् स्वबलक्षयम्...वदन्ति सर्वे नीतिज्ञा दण्डस्त्वगतिका गतिः ॥ बृहत्पराशर, याज्ञवल्क्य (१।३४६) ने भी "३७उस्त्वगतिका गतिः" का प्रयोग किया है।। २६. एते सामादयो न केवलं राज्यव्यवहारविषया अपि तु सकललोकव्यवहारविषयाः । यथा--अधीप्व पुत्रकाधीष्व दास्यामि तव मोदकान् । यद्वान्यस्मै प्रदास्यामि कर्णमुत्पाटयामि ते ।। मिताक्षरा {याज्ञ० ११३४६) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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