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धर्मशास्त्र का इतिहास विक्रीयासम्प्रदान, क्रीत्वानुशय, समयस्यानपाकर्म, सीमा-विवाद, स्त्रीपुंसयोग, दायविभाग आदि का वर्णन है। इस अन्य में मिताक्षरा की बातें पायी जाती हैं, किन्तु नारायण ने अपने गुरु से एक बात में विरोध प्रकट किया है। मिताक्षरा में विभाजन के चार अवसर बताये गये हैं, किन्तु नारायण ने केवल दो अवसरों की चर्चा की है, यथा (१) पिता की इच्छा तथा (२) पुत्र या पुत्रों की इच्छा। सम्भूयसमुत्थान में उन्होंने कौटिल्य के अर्थशास्त्र से एक उद्धरण लिया है, जो आज के प्रकाशित कौटिलीय में पाया जाता है।
७१. कामधेनु धर्मशास्त्र की विविध शाखाओं पर कामधेनु नामक एक प्राचीन निबन्ध था, किन्तु अभाग्यवश आज तक इसकी कोई प्रति नहीं मिल सकी है। लक्ष्मीधर के कल्पतरु में कामधेनु के मत की चर्चा है। हारलता में भी, जो १२वीं शताब्दी के तृतीय चरण में प्रणीत हुई थी, कामधेनु की कई बार चर्चा हुई है। श्रीधराचार्य ने अपने स्मृत्यर्थसार में, चण्डेश्वर ने अपने विवादरत्नाकर में, श्राद्धक्रियाकौमुदी में, शूलपाणि ने अपने श्राद्धविवेक में, श्रीदत्त ने अपने समयप्रदीप में कामधेनु के मतों का उल्लेख किया है। अब प्रश्न यह है कि कामधेनु का लेखक कौन है। चण्डेश्वर के व्यवहाररत्नाकर में कामधेनु के लेखक गोपाल नामक व्यक्ति प्रतीत होते हैं। यह बात ठीक जंचती है। आफेरूत ने शम्भु नामक व्यक्ति को तथा डा० जायसवाल ने भोज को कामधेनु का लेखक माना है, किन्तु इस मान्यता के लिए कोई पुष्ट आधार नहीं है। मिताक्षरा एवं • मेधातिथि ने इसकी चर्चा नहीं की है, अतः इसकी तिथि १०००-११०० ई० के मध्य में कभी होगी।
७२. हलायुध लक्ष्मीघर के कल्पतरु में व्यवहार-कोविद हलायुध का कई बार उल्लेख हुआ है। चण्डेश्वर के विवादरत्नाकर एवं हरिनाथ के स्मृतिसार में हलायुध के निबन्ध के मतों की चर्चा हुई है। स्मृतिसार ने हलायुध के मतानसार कहा है कि यदि अपत्र पति की मत्य पर पत्नी नियोग से पत्र उत्पन्न करने पर सन्नद्ध न हो तो उसे उत्तराधिकार से वञ्चित कर देना चाहिए। यही धारेश्वर का भी मत था। विवादचिन्तामणि में भी हलायुध की चर्चा हुई है। रघुनन्दन ने अपने दायतत्त्व, व्यवहारतत्त्व एवं दिव्यतत्त्व में तथा वीरमित्रोदय ने भी हलायुध के मतों का उल्लेख किया है। इन चर्चाओं से स्पष्ट है कि हलायुध की कृति बड़ी मूल्यवान् थी। कल्पतरु ने हलायुध को प्रमाण माना है, अतः वे ११०० ई० के पूर्व ही हुए होंगे। मेधातिथि, मिताक्षरा आदि ने हलायुध की चर्चा नहीं की है, क्योंकि उन्होंने धारेश्वर, जितेन्द्रिय तथा अन्य विरोधी मतों के समान ही अपने मत रखे हैं। अतः वे १००० ई० के पहले नहीं जा सकते। हलायुध १०००-११०० के मध्य में कमी हुए होंगे।
कई एक हलायुधों की कृतियां प्रकाश में आयी हैं। यथा-अभिधानरत्नमाला, कविरहस्य, मृतसंजीवनी, ब्राह्मणसर्वस्व तथा कात्यायन के श्राद्धकल्पसूत्र का प्रकाश नामक भाष्य। इनमें प्रथम तीन के कर्ता हलायुध साहित्य-शास्त्री हैं जो धर्मशास्त्रप्रेमी हलायुध से बहुत पहले ९९४-९९७ ई० के लगभग हुए थे। चौथे ग्रन्थ के लेखक हलायध धर्मशास्त्रकार हलायुध नहीं हैं। इसी प्रकार प्रकाश के लेखक भी तिथि के प्रश्न पर धर्मशास्त्रकार हलायुध नहीं हो सकते।
७३. भवदेव भट्ट रघुनन्दन के व्यवहारतत्त्व एवं वीरमित्रोदय से पता चलता है कि मवदेव भट्ट ने व्यवहार-विधि पर
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