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सत्र (प.) के मेन वार्षिक, षट्त्रिंशद्वार्षिक, शतसंवत्सर (आश्व० १२१५।१८) एवं सहस्रसंवत्सर, सारस्वत (पवित्र नदी सरस्वती के तर पर किया जाने वाला) । यहाँ पर केवल गवामयन के विषय में कुछ लिखा जायगा।
'गवाम् अयन' सांवत्सरिक सत्र है जो १२ मासों (३० दिनों वाले) तक चलता रहता है । इसके निम्नलिखित अंग हैं (ताण्ड्य० २४।२०।१, आश्व० ९।१।२-६ एवं ७।२-१२, शतपथ० १४।५।१८-४० एवं आप० २१।१५)
(क) प्रायणीय अतिरात्र (आरम्भिक दिन)
चतुर्विंश दिन, उक्थ्य पांच मास, जिनमें प्रत्येक में चार अभिप्लव षडह तथा एक पृष्ठ्य षडह पाये जाते हैं (प्रत्येक मास ३० दिनों का माना जाता है)। तीन अभिप्लव एवं एक पृष्ठ्य अभिजित् दिन (अग्निष्टोम)! २८ दिन तीन स्वरसाम दिन
ये सभी दिन मिलकर ३० दिन वाले ६ मास होते हैं। (ख) विषुवत् या मध्य दिन (एकविंशस्तोम), जब कि अतिग्राह्य सोम-पात्र सूर्य
तथा किसी अपराधी को दिया जाता है। (ग) तीन स्वरसाम दिन (जब स्वर नामक सामों का गायन होता है, ताण्ड्य ४।५), विश्वजित् दिन (अग्निष्टोम)
• २८ दिन एक पृष्ठ्य तथा तीन अभिप्लव पडह आरम्भ में एक पृष्ठ्य तथा चार अभिप्लव पाह वाले, चार मास तीन अभिप्लव षडह एक गोष्टोम (अग्निष्टोम) । एक आयुष्टोम (उक्थ्य) । ३० दिन एक दशरात्र (दस दिन) ) महाव्रत दिन (अग्निष्टोम) उदयनीय (अतिरात्र) ये सभी दिन (ग के अन्तर्गत) ६ मास होते हैं।
इस गवाम् अयन का सम्पादन कई प्रकार के फलों, यथा--सन्तति, सम्पत्ति, उच्च स्थिति, स्वर्ग के लिए किया जाता है (आप० २०१५।१, सत्याषाढ १६।५।१४)। जिस दिन दीक्षा ली जाती है, उसके विषय में कई मत हैं। ऐतरेय ब्राह्मण (१९।४) के अनुसार इसका सम्पादन माघ या फाल्गुन में होना चाहिए। कुछ लोगों के मत से (सत्याषाढ १६।५।१६-१७, आप० २१११५।५-६) माघ या चैत्र की पूर्णिमा के चार दिन पूर्व दीक्षा लेनी चाहिए। अन्य दिनों के लिए देखिए लाट्यायन (१०५।१६-१७), कात्यायन (१३३१०२-१०) आदि । जैमिनि (६.५।३०-३७) एवं कात्यायन (१३।११८) के मत से माघ की पूर्णिमा के चार दिन पूर्व (अर्थात् एकादशी को) दीक्षा लेनी चाहिए।
__गवामयन में सत्र के रूप में द्वादशाह की विधि अपनायी जाती है (आप० २१।१५।२-३ एवं जैमिनि ८॥ ११७)। कुछ लोगों के मत से इसमें १२ की अपेक्षा १७ दीक्षाएं ली जाती हैं। सत्रों के विषय में कुछ सामान्य नियम ये है--ये कई यजमानों द्वारा सम्पादित हो सकते हैं। केवल ब्राह्मण ही इनके अधिकारी माने जाते हैं (जैमिनि ६।६।१६२३, कात्या० १०६।१४)। इनके लिए अलग से ऋत्विक् या पुरोहित नहीं होते, प्रत्युत यजमान ही पुरोहित होते हैं
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