SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 552
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्ण-पूर्णमास ५२९ भीतरी भाग जल द्वारा घो दिया जाता है, और वह जल सान्नाय्य वाले पात्र में छोड़ दिया जाता है। अध्वर्यु दूध गर्म करता है और उसमें घृत छोड़ता है (अभिघारण) । अंगारों से वह गर्म पात्र इस प्रकार खींचता है कि पृथिवी पर एक रेखा बन जाती है और उसे पूर्व, उत्तर या पूर्वोत्तर भाग में मन्त्र के साथ रख देता है। जब पात्र ठण्डा हो जाता है तो उसमें वह दही डाल देता है जिससे कि दूध जम जाय और कहता है-"मैं सोम (दही) मिलाता हूँ, जिससे कि इन्द्र के लिए दही बन जाय" ( तै० सं० १।१।३ ) । अग्निहोत्र हो जाने के उपरान्त पात्र में या स्रुक् में जो द्रव्य बचा रहता है, वह इसमें मिला दिया जाता है। इसके उपरान्त ढक्कन वाले पात्र में जल छोड़कर उसे गर्म दूध के ऊपर रख दिया जाता है। यदि ढक्कन मिट्टी से बना पात्र हो तो उस पर घास या टहनियाँ रख दी जाती हैं । तब अध्वर्यु शाखापवित्र को मन्त्र के साथ ( यदि वह पलाश का हो ) या मौन रूप से (यदि शमी का हो) उठाता है और सुरक्षित स्थल में रखता है । अध्वर्यु सान्नाय्य को गार्हपत्य के भाग में एक शिक्य (छीकें) पर रख देता है और कहता है - "हे विष्णु, इस आहुति की रक्षा करो। " प्रमुख दिन में अध्वर्यु दूसरी शाखा से या दर्भों से गायों के बछड़ों को प्रातर्दोह के लिए अलग करता है । प्रातदह में भी सायंदोह की विधि लागू होती है। दो-एक मन्त्रों में कुछ अन्तर पाया जाता है । प्रातर्दोह वाले दूध में जमाने के लिए जामन (दही आदि ) नहीं मिलाया जाता। स्थानाभाव के कारण अन्य अन्तर नहीं बताये जा रहे हैं। सायंदोह के उपरान्त अध्वर्यु आग्नीध्र या किसी अन्य पुरोहित या अपने को आदेश देता है- "अग्नियों के चतुर्दिक, पहले आहवनीय, तब गार्हपत्य और अन्त में दक्षिणाग्नि के चतुर्दिक् कुश फैला दो", या क्रम यों हो सकता है कि पहले गार्हपत्य, तब दक्षिणाग्नि और अन्त में आहवनीय । दक्षिण और उत्तर दिशाओं में फैलाये गये दम की नोंक पूर्व की ओर रहती है। कुशों को फैलाते समय यजमान मन्त्र पढ़ता है। उपर्युक्त कृत्योपरान्त वह अमावस्या को उपवसथ के रूप में ग्रहण करता है। अमावस्या के दिन वह अग्न्यन्वाघान (अग्नियों में ईंधन की आहुतियां देना) करता है, शाखा से बछड़ों को (गायों से) अलग करता है, सायंदोह ( सायंकाल में गाय दुहाना) करता है, बहि एवं ईंधन लाता है, वेद और वेदी बनाता है और व्रत करता है । किन्तु बछड़ों को पृथक करने का कृत्य एवं सायंदोह सम्पादन वे ही कर सकते हैं, जिन्होंने सोमयज्ञ कर लिया हो । यदि पूर्णमास- इष्टि दो दिनों में सम्पादित की जाने वाली हो तो पूर्णमासी के दिन केवल अग्न्यन्वाधान एवं अग्नियों के चतुर्दिक् कुश बिछाने के कृत्य सम्पादित होते हैं, दूसरे दिन बहि, इष्म ( ईंधन ) लाये जाते हैं तथा वेद- निर्माण एवं अन्य कृत्य किये जाते हैं । किन्तु यदि इष्टि एक ही दिन में की जाती है तो वेद-निर्माण के उपरान्त कुश बिछाये जाते हैं । मुख्य दिन ( पूर्णमास के सिलसिले में कृष्णपक्ष के प्रथम दिन ) में यजमान सूर्योदय के पूर्व अग्निहोत्र करता है और सूर्योदय के उपरान्त पूर्ण मास इष्टि आरम्भ करता है (दर्श - इष्टि के सिलसिले में सूर्योदय के पूर्व ही कृत्य आरम्भ हो ९. वही मिलाने के विषय में कई मत हैं। उपवसथ के एक दिन पूर्व (अर्थात् १४वें दिन ) एक, वो या तीन गायें दुह ली जाती हैं, उनका दूध उपवसय दिन के सायं वाले गर्म दूध में मिला दिया जाता है। दूसरी विधि यह है- १२वं दिन बुह ली जाती हैं, उस दूध को १३वें दिन के दूध में मिला दिया जाता है और इस प्रकार दो दिन से प्राप्त वही को १४वें दिन के दूध में मिला दिया जाता है। इस प्रकार दूध दुहना और मिलाना १२, १३वें एवं १४वें दिन तक या १३वें या १४वें दिन तक चला करता है। बेखिए आप० (१११३/१२) एवं शत० वा० (१।३, ५० ९९ ) । जब दूध न मिले तो चावल या पलाश की छाल के टुकड़े या ग्राम्य या जंगली बदर फल या पूतीक पौधा (सोम का प्रतिनिधि) डाल दिया जाता है, जिससे कि दूध खट्टा हो जाय । धर्म० ६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy