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प्रवास में अग्निहोत्र
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उपर्युक्त नियम तभी लागू होते हैं कि जब गृहस्थ अपनी पत्नी को छोड़कर बाहर जाता है। जब तक वह बाहर रहता है उसे अग्निहोत्र एवं दर्शपूर्णमास के समय मानसिक जप से अपने सारे कर्तव्य करने चाहिए और सभी प्रकार के व्रतों का पालन करना चाहिए (यथा, जहाँ तक सम्भव हों फल-फूल, कन्द-मूल पर ही जीवन व्यतीत करना चाहिए)। देखिए आप ० (४|१६| १८ ) एवं कात्या० (४।१२।१६) तथा इसका माष्य। घर से बाहर रहने पर उसे अपनी पत्नी पर अग्नियों का भार सौप देना चाहिए तथा आवश्यक कृत्यों के सम्पादन के लिए किसी पुरोहित की व्यवस्था कर देनी चाहिए। जब गृहस्थ अपनी पत्नी के साथ यात्रा करता है तो उसे अग्नियाँ साथ में ही रख लेनी चाहिए। यदि वह सपत्नीक यात्रा करे किन्तु अग्नियाँ साथ न रखे तो घर पर पुरोहित का रखना निरर्थक है, क्योंकि पति-पत्नी की अनुपस्थिति में अग्निहोत्र होम नहीं सम्पादित हो सकता, लौटकर आने पर गृहस्थ को अग्नि की प्रतिष्ठा पुन: ( पुनराधान) करनी ही पड़ेगी ।
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