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धर्मशास्त्र का इतिहास कि वे विपत्तियों से घिरे रहकर भी बृहद् ग्रन्थों का निर्माण कर सके ? अर्थशास्त्र में पाटलिपुत्र एवं चन्द्रगुप्त के साम्राज्य की चर्चा नहीं पायी जाती, अतः कुछ लोगो ने इसी आधार पर इसे मौर्यमन्त्री की कृति नहीं माना। किन्तु यह छिछला तर्क है। एक महान् लेखक अपनी कृति में, जो सामान्य ढंग से लिखी गयी हो, व्यक्तिगत, स्थानीय एवं समकालीन बातों का हवाला दे, यह कोई आवश्यक नहीं है। स्टाइन एवं वितरनित्स् का यह तर्क कि मेगस्थनीज ने कौटिल्य की चर्चा नहीं की और न उसकी वार्ता में अर्थशास्त्र की बातों का मेल बैठता है, बिल्कुल निराधार है। मेगस्थनीज की 'इण्डिका' केवल उद्धरणों में प्राप्त है, मेगस्थनीज़ को भारतीय भाषा का क्या ज्ञान था कि वह महामन्त्री की बातों को समझ पाता? मेगस्थनीज़ की बहुत-सी बातें भ्रामक भी हैं। उसने तो लिखा है कि भारतीय लिखना नहीं जानते थे। क्या यह सत्य है? यहाँ केवल इतना ही संकेत पर्याप्त है। हिल्लेब्राण्ट ने कहा है कि अर्थशास्त्र एक शाखा की कृति है न कि किसी एक व्यक्ति की। इस तर्क का उत्तर जैकोबी ने भली भाँति दे दिया है। अर्थशास्त्र एक शाखा का ग्रन्थ इसलिए कहा गया है कि इसमें अन्य आचार्यों के साथ स्वयं कौटिल्य के मत लगभग ८० बार आये हैं। किन्तु इस प्रकार की प्रवृत्ति की ओर मेधातिथि तथा विश्वरूप ने बहुत पहले ही संकेत कर दिया है कि प्राचीन आचार्य अपने मत के प्रकाशनार्थ अपने नामों को अहंकारवादिता से बचाने के लिए बहुधा अन्य-पुरुष में दे देते थे। उत्तम-पुरुष के एकवचन में बहुत ही कम व्यवहार हुआ है। जैकोबी एवं कीथ का यह कहना कि भारद्वाज (५.६) ने कौटिल्य की आलोचना की है, त्रुटिपूर्ण है। कौटिल्य पहले अपना मत देकर अपने पहले के आचार्यों का मत देते हैं। कीथ का कथन है कि 'कौटिल्य' कुटिल से बना है, अतः कोई ग्रन्थकार स्वयं अपने मत को इस उपाधि से नहीं घोषित करेगा। चाणक्य ने कूटनीति से मौर्यसाम्राज्य का निर्माण किया और नन्द-जैसे आततायियों का नाश किया, अत: हो सकता है कि उन्हें आरम्भ में जो 'कुटिल' नाम दिया गया, वह अन्त में उन्हें, सत्कार्य करने के कारण, मला लगने लगा हो। एक बात और, कौटिल्य में बहुत-से आचार्यों के उद्धृत नाम भी विचित्र ही हैं, यथापिशुन, वातव्याधि, कौणपदन्त।
एक प्रश्न है-कौटिल्य' नाम ठीक है या 'कौटल्य' ? कादम्बरी, मुद्राराक्षस, पञ्चतन्त्र आदि में 'कौटिल्य' शब्द प्रयुक्त हुआ है। कामन्दक के नीतिशास्त्र की एक टीका में कौटिलीय को कुटलमाष्य कहा गया है और 'कुटल' एक गोत्र का नाम कहा गया है। एक शिलालेख में 'कौटिल्य' शब्द आया है (घोलका के गणेसर स्थान में प्राप्त, १२३४-३५ ई०)। जो हो, नाम का झंझट अभी तय नहीं हो पाया है। इस ग्रन्थ में कौटिल्य शब्द का ही प्रयोग किया जायगा।
अर्थशास्त्र में कुल १५ अधिकरण, १५० अध्याय, १८० विषय एवं ६००० श्लोक (३२ अक्षरों की इकाइयाँ) हैं। यह गद्य में है, कहीं-कहीं कुछ श्लोक भी हैं। प्रत्येक अध्याय के अन्त में एक या कुछ अधिक श्लोक हैं। कुछ अध्यायों के बीच में भी श्लोक हैं। गद्य भाग को छोड़कर कुल ३४० श्लोक आये हैं। श्लोक अनुष्टुप् जाति में अधिक हैं। इन्द्रवजा या उपजाति में केवल ८ श्लोक हैं। अर्थशास्त्र के पूर्व के अर्थशास्त्र हमें नहीं मिल सके हैं, अतः यह कहना कठिन है कि कितने श्लोक उधार लिये गये हैं और कितने इसके अपने हैं। शैली सरल एवं सीधी है; वेदान्त या व्याकरण सूत्रों की भाँति संक्षिप्त नहीं है। गौतम, हारीत, शंख-लिखित
७९. 'प्रायेण प्रन्थकाराः स्वमतं परापदेशेन ब्रुवते', मेधातिथि । याज्ञ० १.२ पर विश्वरूप ने कहा हैकिन्तु भगवतव परोक्षीकृत्यात्मा निर्बिश्यते स्वप्रशंसानिषेधात् ।'
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