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________________ (११) बह रात या दिन में केवल एक बार ला सकता है, या एक दिन या दो या तीन दिनों के अन्तर पर खा सकता है (विष्णुधर्म० ९५।५-६ तथा मनु ६।१९)। वह चान्द्रायण व्रत (मनु ११।२१६) भी कर सकता है या केवल बन में उत्पन्न फलों, कन्दमूलों, फूलों (मनु ६।२०-२१ एवं यात्र० ३५०) को खा सकता है या अपनी सामर्थ्य के अनुसार एक पक्ष के उपरान्त खा सकता है। क्रमशः उसे इस प्रकार केवल जल या वायु पर ही निर्भर रहना चाहिए (आपस्तम्बधर्म० २।९।२३३२, मनु ६।३१, विष्णुधर्म० ९५।७-१२)। (१२) उसे भोजन-सामग्री एक दिन के.लिए या एक मास या केवल एक वर्ष के लिए एकत्र करनी चाहिए बार प्रति वर्ष एकप की हुई सामग्री आश्विन मास में वितरित कर देनी चाहिए (मनु ६।१५, याश० ३१४७, आप. प० २।९।२२।२४)। (१३) उसे पंचाग्नि (चारों दिशाओं में चार अग्नि एवं ऊपर सूर्य) के बीच बैठकर, वर्षा में बाहर खड़े होकर, बारे में भीगे वस्त्र धारण कर(मनु ६।२३, ३४, याज० ३१५२ एवं विष्णुधर्म० ९५।२।४) कठिन तपस्या करनी पाहिए और अपने शरीर को मांति-भांति के कष्ट देकर अपने को सब कुछ सह सकने का अभ्यासी बना लेना चाहिए। (१४) उसे क्रमशः किसी घर में रहना बन्द कर पेड़ के नीचे निवास करना चाहिए और केवल फलों एवं कन्दमूलों पर निर्वाह करना चाहिए (मनु ६।२५, वसिष्ठ०, ९।११, यात्र० ३१५४, आपस्तम्बधर्म० २।९।२१।२०)। (१५) राषि में उसे लाली पृथिवी पर शयन करना चाहिए। जागरण की दशा में बैठकर या चलते हुए या योगाभ्यास करते हुए समय बिताना चाहिए। उसे आनन्द लेने वाली वस्तु के सेवन से दूर रहना चाहिए (मनु २२ एवं २६ तवा याज्ञवल्क्य २५१)। (१५) उसे अपने शरीर की पवित्रता, मान-वर्धन एवं अन्त में मोक्ष-पद-प्राप्ति के लिए उपनिषदों का पाठ करना चाहिए (मनु ६।२९-३०)। (१७) यदि वानप्रस्थ किसी असाध्य रोग से पीड़ित है, अपने कर्तव्य नहीं कर पाता और अपनी मृत्यु को पास में मायी हुई समझता है, तो उसे उत्तर-पूर्व की बोर मुख करके महाप्रस्थान कर देना चाहिए और केवल जल एवं गाय पर रहना चाहिए और तब तक चलते रहना चाहिए जब तक कि वह ऐसा गिरे कि पुनः न उठ सके (मनु ६।३१, याज्ञवल्क्य ३२५५)। मिताक्षरा एवं अपरार्क (पृ. ९४५.) ने याज्ञवल्क्य (३३५५) की व्याख्या में किसी स्मृति का उबरण दिया है कि वानप्रस्थ को किसी लम्बी यात्रा में लग जाना चाहिए या जल या अग्नि में अपने को छोड़ देना चाहिए या अपने को पाई से नीचे ढकेल देना चाहिए।' वानप्रस्यों के प्रकार बौधायनवर्मसूत्र (१३) मे बानप्रस्थों के प्रकार यो बताये है-पचमानको पका हवा भोजन या फल साते है) एवं मानक (जो अपना भोजन पकाते नहीं), ये दोनों पुनः पांच भागों में विभाजित है। पांच पचमानक ये परिवारिक जो केवल फलों, कन्दमूलों बादि पर निर्भर रहते हैं, जो केवल फलों पर रहते हैं तयां देखो वह चाक-पासाते है। इन पांचों में सर्वारण्यक लोग दो प्रकार के होते है जापतिपत (जो सता, गुल्म पारिकर पकाते है, उनसे मग्निहोन करते है और उन्हें मतिवि को समर्पित कर स्वयं साते हैं) एवं रेवावसित (को + पुराना पेज मा बालतियत् । इति स्वरमा । मिलर (Im Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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