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________________ ४७४' धर्मशास्त्र का इतिहास अप्सराओं का निवास है। इसके अतिरिक्त वृक्ष अपने हरित पत्रांकों में पक्षियों को शीतल एवं उष्ण नींद देते हैं, बहुतसे वृक्षों की हरी पत्तियाँ (यथा आम आदि वृक्षों की) आजकल भी शुभावसरों पर मण्डपों या द्वारों पर तोरण रूप में बाँधी जाती हैं। हेमाद्रि ने ब्रह्मपुराण को उद्धृत कर लिखा है कि अश्वत्थ, उदुम्बर, प्लक्ष, आम (आम्र) एवं न्यग्रोध की टहनियाँ एवं पत्तियाँ पञ्चभंग कही जाती हैं और सभी कृत्यों में मंगलमय मानी जाती हैं। बौधायनधर्मसूत्र (२।३।२५) में आया है कि पलाश परम पवित्र है, अतः उसके भाग से आसन, खड़ामू, दन्तधावत आदि नहीं बनने चाहिए। वृक्ष धूप से बचाते हैं तथा देवों एवं पितरों को चढ़ाने के लिए पुष्प-फल देते हैं।' गिर जाने पर उनकी लकड़ियों से घर बनाते हैं, उनसे नाना प्रकार के सामान बनाये जाते हैं तथा उन्हें जलाकर भोजन बनाया जाता है एवं शीत से रक्षा की जाती है। अपने सातवें स्तम्भामिलेख में अशोक ने आठ कोस की दूरी पर कूप-निर्माण एवं वट वृक्ष लगाने की चर्चा की है (देखिए कार्पस इंस्क्रिप्शनम् इण्डिकेरम्, जिल्द १, पृ० १३४-१३५)। महाभाष्य (जिल्द १, पृ० १४) ने एक अति प्राचीन पद्य का अंश उद्धृत किया है जिसका तात्पर्य है कि जो आम को पानी देता है और उसकी सेवा करता है उसके पितृगण उससे प्रसन्न रहते हैं। मनु (४।२९) एवं याज्ञवल्क्य (१३१३३) ने स्नातकों के लिए मार्ग के प्रसिद्ध वृक्षों (यथा अश्वत्थ) की परिक्रमा करना आवश्यक माना है। बाण ने कादम्बरी में पुत्र की इच्छा करनेवाली स्त्रीद्वारा वक्षों की पूजा की चर्चा की है। वृक्षों के प्रकार एवं उनकी सेवा-महाभारत (अनुशासनपर्व ५८।२३-३२) ने पेड़-पौधों के जीवन की प्रभूत प्रशंसा की है और उन्हें ६ भागों में बाँटा है, यथा-वृक्ष (पेड़), लता (जो वृक्षों के सहारे लटकी रहती हैं), बल्ली ((जो पृथिवी पर फैलती हैं), गुल्म (झाड़ियाँ), त्वरसार (ऐसे वृक्ष जिनका ऊपरी भाग प्रवल या मजबूत रहता है, किन्तु जो भीतर से पोले रहते हैं, जैसे बाँस आदि) एवं घास । महाभारत में वहीं यह भी आया है कि जो वृक्ष लगाते हैं वे उनसे रक्षा पाते हैं, अतः उनकी सेवा पुत्रों के समान करनी चाहिए। यही बात दूसरे ढंग से विष्णुधर्मसूत्र (१९६४) में भी पायी जाती है । हेमाद्रि (दान, पृ० १०३०-३१) ने पद्मपुराण को उद्धृत कर बताया है कि किस प्रकार अश्वत्थ, अशोक, अम्लिका (इमली), दाडिम (अनार) आदि पेड़-पौधे लगाने से क्रम से सम्पत्ति, पापमोचन, दीर्घायु, स्त्री आदि की प्राप्ति होती है। वृद्ध -गौतम ने अश्वत्थ की समता श्री कृष्ण से की है। महाभारत ने चैत्य (समाधिस्तूप या विश्रामस्थल) वाले अश्वत्थ वृक्ष की पत्तियां तक तोड़ना वर्जित माना है (शान्तिपर्व ६९।४२) । शान्तिपर्व (१८४११-१७) । ३. वृक्ष की उपयोगिता से प्रभावित हो कदि ने उसकी आलंकारिक प्रशंसा में निम्न उद्गार कहा है एक पैर से मूक अड़ा है, रात-दिवस तह वहीं खड़ा है! झंझा और प्रवातों में ऋषि, ले किसलय मृतु फूल बड़ा है। ४. आम्राश्च सिक्ताः पितरश्च प्रीणिताः। महाभाष्य, जिन्द १, पृ० १४। वृक्षों से जो लाभ होते हैं, उनके विषय में देखिए अनुशासनपर्व (५८०२८-३०) एवं विष्णुधर्मसूत्र (९१३५-८)। आधुनिक भारत में स्वतन्त्रता के उपरान्त प्रति वर्ष वन महोत्सव मनाया जाता है और स्थान-स्थान पर वृक्षा रोपण हो रहा है। पहाड़ों के वृक्षों के कट जाने से जल का अभाव होता जा .हा है, अनावृष्टि से कहीं-कहीं हाहाकार हो रहा है। भारत सरकार अब.वृक्षों के महत्त्व को समझ रही है। हमारे ऋषियों ने वृक्षों की महत्ता पर जो कुछ लिखा है वह सार्थक पा, क्योंकि आजकल के भूगर्भ-शास्त्रियों तथा भूगोल विद्या-विशारदों ने वृक्ष-महत्ता की वैज्ञानिकता स्पष्ट कर दी है। (अ०) ५. वृक्षवं पुत्रवद् वृक्षास्तारयन्ति परत्र च। तस्मात्तडागे सवृक्षा रोप्याः श्रेयोथिना सदा॥ पुत्रवत्परिपाल्याश्च पुत्रास्ते धर्मतः स्मृताः। अनुशासन ५८.३०-३१; वृक्षारोपयितुर्वृक्षाः परलोके पुत्रा भवन्ति । विष्णुधर्मसूत्र ९१४। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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