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धर्मशास्त्र का इतिहास निबन्धों में हारीत के जो उद्धरण आते हैं, उनसे पता चलता है कि उनके धर्मसूत्र में वे सभी विषय समन्वित थे, जो बहुधा अन्य धर्मसूत्रों में पाये जाते हैं, यथा धर्म के उपादान, उपकुर्वाण एवं नैष्ठिक नामक दो प्रकार के ब्रह्मचारी, स्नातक, गृहस्थ, वानप्रस्थ, भोजन के बारे में निषेध, जन्म-मरण पर अशौच, श्राद्ध, पंक्तिपावन, आचार के सामान्य नियम, पंचयज्ञ, वेदाध्ययन, छुट्टियाँ, राजधर्म, शासन-कर्म, म्यायालय-पद्धति, व्यवहारों की विविध उपाधियाँ, पति-पत्नी के कर्तव्य, विविध पाप, प्रायश्चित्त, मार्जन-स्तुति आदि।
. हारीत ने वेद, वेदांग, धर्मशास्त्र, अध्यात्म तथा अन्य ज्ञान-शाखाओं की ओर संकेत किया है। हारीत ने सभी वेदों से उद्धरण लिये हैं, अतः लगता है, उनका किसी विशिष्ट वेद वे सम्बन्ध न था।
हारीत के कुछ सिद्धान्त अवलोकनीय हैं। उन्होंने अष्ट विवाहों में दो को क्षेत्र' और 'मानुष' कहा है, किन्तु 'आर्ष' एवं 'प्राजापत्य' को गिना ही नहीं है (देखिए, वीरमित्रोदय, संस्कारप्रकाश, पृ० ८४) । यही बात वसिष्ठ में भी पायी जाती है। हारीत ने दो प्रकार की नारियों की चर्चा की है--ब्रह्मवादिनी एवं सद्योवधू, जिनमें पहले प्रकार की नारियों (ब्रह्मवादिनियों) को उपनयन संस्कार कराने का अधिकार है, वे अग्निहोम करने एवं वेदाध्ययन करने की अधिकारिणी हैं। उन्होंने १२ प्रकार के पुत्रों का वर्णन किया है (देखिए, गौतम० २८, ३२ पर हरदत का भाष्य)। उन्होंने अभिनेता की भर्त्सना की है और ब्राह्मण अभिनेता को श्राद्ध एवं देव-क्रिया-संस्कार में वर्जित माना है। गद्य-पद्य मिश्रित भाषा में गणेश की पूजा का वर्णन अपरार्क द्वारा उपस्थित उद्धरण में आया है।
१२. शंख-लिखित का धर्मसूत्र तन्त्रवार्तिक से पता चलता है कि शंख-लिखितधर्मसूत्र का अध्ययन शुक्ल यजुर्वेद के अनुयायी वाजसनेयियों द्वारा होता था। तन्त्रवार्तिक ने इस धर्मसूत्र से अनुष्टुप् छन्द वाले वाक्यों को उद्धृत किया है। महाभारत : (शान्तिपर्व, अध्याय २३) में शंख और लिखित की कथा आयी है। याज्ञवल्क्य ने शंख-लिखित को धर्मशास्त्रकारों में गिना है। पराशरस्मृति में आया है (१.२४) कि कृत, त्रेता, द्वापर तथा कलि के चारों युगों में मनु, गौतम, शंख-लिखित एवं पराशर के अनुशासन धर्म-सम्बन्धी प्रमाण माने जाते हैं। विश्वरूप ने एक उद्धरण द्वारा यह दर्शाया है कि वेदों पर आधारित एवं मनु द्वारा घोषित धर्म पर शंख-लिखित ने खूब मनन किया। विश्वरूप के पश्चात् अन्य भाष्यकारों एवं निबन्धकारों ने शंख-लिखित का उद्धरण खुलकर लिया है। इन उद्धरणों में अधिकांश गद्य में हैं। इससे सिद्ध होता है कि सम्भवतः यह धर्ममूत्र प्राचीन है। अभाग्यवश इस धर्मसूत्र की कोई प्रति नहीं मिल सकी है; केवल उद्धरणों के रूप में ही यह विद्यमान है।
७३. स्मृतिचन्द्रिका, ३, पृ० २९० 'वेदा अङ्गानि धर्मोऽध्यात्म विज्ञान स्थितिश्चेति षड्विधं श्रुतम्।'
७४. द्विविधाः स्त्रियः। ब्रह्मवादिन्यः सद्योवध्वश्च। तत्र ब्रह्मवादिनीनामुपनयनमग्नीन्धनं वेदाध्ययनं स्वगृहे च भिक्षाचर्या। स्मृतिचन्द्रिका (१. पृ० २४) एवं चतुर्विशतिमतव्याख्या (बनारस संस्करण,पृ० ११३) में उबृत।
. ७५. कुशीलवावीन् दैवे पित्र्ये च वर्जयेत्। याज्ञवल्क्य पर अपरार्क की टीका (याज्ञ० १.२२२-२२४) में उवृत।
७६. यहाँ गणेश के कई नाम मिलते हैं, यथा, सालकटंकट, कूष्माण्डराजपुत्र, महाविनायक, वक्रतुण्ड, गणाधिपति । प्रथम वो नामों के लिए देखिए, मानवगृह्यसूत्र (२-१४) तथा याज्ञवल्क्य (१. २८५) ।
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