________________
हारीतधर्मसूत्र
२५
वर्तमान था और धर्मसूत्रकारों ने उसे उद्धृत कर लिया। लगता है, विष्णुधर्मसूत्र याज्ञवल्क्यस्मृति के बाद की कृति है। यह धर्मसूत्र भगवद्गीता, मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य तथा अन्य धर्मशास्त्रकारों का ऋणी है । पाँचवीं शताब्दी ईसवीउपरान्त होने वाले शबर, कुमारिल एवं शंकराचार्य ने मनुस्मृति की उद्धृत किया है। याज्ञवल्क्य का भाष्य विश्वरूप ने नवीं शताब्दी के प्रथमार्ध में किया। विश्वरूप ने गौतम, आपस्तम्ब, बौधायन, वसिष्ठ, शंख और हारीत से अनेक उद्धरण लिये हैं, किन्तु विष्णुधर्मसूत्र का एक भी उद्धरण उनकी टीका में उपलब्ध नहीं होता। मनु की व्याख्या (मनु० ३. २४८ तथा ९.७६ ) करते हुए मेधातिथि ने विष्णु का उद्धरण लिया है। मिताक्षरा ने विष्णु का ३० बार नाम लिया है। अपरार्क तथा स्मृतिचन्द्रिका ने बहुत बार उद्धरण लिया है। स्मृतिचन्द्रिका में २२५ बार विष्णु के उद्धरण आये हैं ।
विष्णुधर्मसूत्र में वैदिक संहिताओं तथा ऐतरेय ब्राह्मण के उद्धरण आये हैं। इसने वेदांगों, व्याकरण, इतिहास, धर्मशास्त्र, पुराण आदि के नाम लिये हैं । इस धर्मसूत्र के प्रारम्भिक भागों का काल ईसापूर्व ३००१०० के बीच कहा जा सकता है, किन्तु यह केवल अनुमान मात्र है। विष्णुधर्मसूत्र की टीका धर्मशास्त्रसम्बन्धी कतिपय ग्रन्थों के लेखक नन्द पण्डित ने की है। इन्होंने वाराणसी में लगभग १६२२-२३ ई० में वैजयन्ती नामक टीका लिखी। कदाचित् भारुचि नामक कोई अन्य टीकाकार थे, जिनकी विष्णुधर्मसूत्र सम्बन्धी टीका की बातें सरस्वतीविलास ने कई बार उद्धृत की हैं।
११. हारीत का धर्मसूत्र
अब तक हमने उन धर्मसूत्रों का वर्णन किया है जो प्रकाशित हैं, किन्तु अब उन धर्मसूत्रों का वर्णन करेंगे जो केवल कुछ उद्धरण रूप में हमारे समक्ष उपस्थित हैं । सर्वप्रथम हम हारीतधर्मसूत्र को लेते हैं ।
हारीत नामक एक धर्मसूत्रकार थे इसमें कोई सन्देह नहीं है, क्योंकि बौधायन, आपस्तम्ब एवं वसिष्ठ ने उन्हें कई बार प्रमाणस्वरूप उद्धृत किया है। आपस्तम्ब ने हारीत का हवाला बहुत बार दिया है, अतः कहा जा सकता है कि दोनों एक ही वेद से सम्बन्धित थे । तन्त्रवार्तिक ने हारीत को गौतम तथा अन्य धर्मसूत्रकारों के साथ गिना है। विश्वरूप से लेकर अन्त तक के धर्मशास्त्रकारों द्वारा हारीत का नाम लिया जाता रहा है । लगता है, यह धर्मशास्त्र पर्याप्त लम्बा-चौड़ा रहा होगा।
हारीतधर्मसूत्र की भाषा एवं विषय-सूची देखकर कहा जा सकता है कि यह ग्रन्थ पर्याप्त प्राचीन है । गद्य के साथ अनुष्टुप एवं त्रिष्टुप् छन्द आते गये हैं। हारीत तथा मैत्रायणीय परिशिष्ट एवं मानवश्राद्धकल्प में बहुत समानता है। इससे पता चलता है कि हारीत कृष्ण यजुर्वेद के सूत्रकार थे। हारीतधर्मसूत्र में कश्मीरी शब्द "कफेल्ला” के आने से हारीत को कश्मीरी भी कहा जा सकता है। हेमाद्रि ( चतुर्वर्ग ० ३ १ पृ० ५५९ ) के अनुसार हारीत के एक भाष्यकार भी थे।
७१. स्वर्गीय पं० वामन शास्त्री इस्लामपुरकर को नासिक में हारीतधर्मसूत्र को एक हस्तलिखित प्रति मिली थी। देवयोगवश उसका उपयोग नहीं किया जा सका । यहाँ पर हारीतधर्मसूत्र के बारे में जो कुछ कहा गया है। वह डा० जॉली द्वारा उपस्थापित सामग्री पर आधारित है ।
७२. हातधर्मसूत्र का सूत्र है -- “ पालङ्कया - नालिका -पौतीक-शिग्रु- सुसुक-वार्ताक-भूस्तृण-कफेल्लमाष-मसूर-कृतलवणानि च श्राद्धे न दद्यात्,” जिस पर हेमाद्रि का कथन है-- " कफल्ल आरण्यविशेषः कश्मीरेषु प्रसिद्ध इति हारीतस्मृतिभाष्यकारः ।"
धर्म ०-४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org