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________________ ४६० धर्मशास्त्र का इतिहास दान करते थे। हाँ, वह भूमि जो कर्षित नहीं थी, वह राजा के पूर्ण अधिकार में थी। मनु (७।११५, ११९) के मत से राजा को एक ग्राम के लिए एक मुखिया तथा दस, बीस, सौ एवं एक सहस्र ग्रामों के लिए अधिकारी नियुक्त करने चाहिए, जिनमें प्रत्येक को अपने ऊपर के अधिकारी को अपनी सीमा के अपराधों तथा अन्य बातों की सूचना देनी चाहिए। मुखिया को भोजन, ईंधन आदि के लिए अर्थात् अपनी जीविका के लिए गांव पर ही निर्भर रहना पड़ता था (वह उतना पा सकता था, जितना कि राजा गाँव से प्रति दिन पाने का अधिकारी था), तथा अन्य अधिकारियों को भूमि दान में मिलती थी (वैसी ही भूमि जो कर्षित नहीं होती थी)। कौटिल्य (२।१) का कहना है कि खेती के योग्य बनायी गयी भूमि कृषकों को दी जानी चाहिए, क्योंकि वे जीवन पर कर देंगे, किन्तु जो खेत नहीं जोतते उनकी भूमि जप्त कर दूसरे को दे दी जानी चाहिए, किन्तु अध्यक्षों, आय-व्यय का ब्यौरा रखनेवालों तथा अन्य लोगों को दी गयी भूमि न तो उनके द्वारा बेची जा सकती और न बन्धक रखी जा सकती है। स्थानाभाव के कारण इस महत्त्वपूर्ण प्रश्न को हम आगे नहीं ले जा सकते। भूमि पर लगी मालगुजारी किराया है या कर है? इस प्रश्न का उत्तर कई ढंग से दिया जाता है। बैडेन पावेल ने अपनी पुस्तक "लण्ड सिस्टम आव ब्रिटिश इण्डिया" (पृ० २४०, २८०) में लिखा है कि भूमि का लगान किराया नहीं कर है। __ अग्रहार--अति प्राचीन काल से ब्राह्मणों को दान में दिये गये ग्राम या भूमिखण्ड अग्रहार के नाम से प्रसिद्ध रहे हैं। महाभारत में इसकी चर्चा बहुत बार हुई है (वनपर्व ६८।४, आश्रमवासिपर्व २।२, १०।४१, १३॥११, १४।१४, २५।५) । और देखिए इस विषय में एपिफिया इण्डिका, जिल्द, १पृ० ८८, मधुवन ताम्रपत्र (वही, जिल्द १ पृ० ७३ एवं जिल्द ७ पृ० १५८)। महादान कुछ वस्तुओं के दान महादान कहे जाते थे। अग्निपुराण (२०९।२३-२४) के अनुसार दस महादान ये हैं-- सोने, अश्वों, तिल, हाथियों, दासियों, रथों, भूमि, घर, दुलहिन एवं कपिला गाय का दान। पुराणों में सामान्यतः महादानों की संख्या १६ है जो निम्नोक्त हैं-तुलापुरुष (मनुष्य के बराबर सोना या चाँदी तोलकर ब्राह्मणों में बाँट देना), हिरण्यगर्भ, ब्रह्माण्ड, कल्पवृक्ष, गोसहस्र, कामधेनु (या हिरण्य-कामधेनु), हिरण्याश्व, हिरण्याश्वरथ (या केवल अश्वरथ), हेमहस्तिरथ (या केवल हस्तिरथ),पंचलांगल, धरादान (या हैमघरादान), विश्वचक्र, कल्पलता (या महाकल्प), सप्तसागर, रत्नधेनु, महाभूतघट। लिंगपुराण (उत्तरार्ध, अध्याय २८) में इन नामों में कुछ विभिन्नता है। इनमें से कुछ नाम बहुत प्राचीन हैं। महाभारत (आश्रमवासिपर्व ३१३१, १३।१५) में 'महादानानि' शब्द आया है। हाथीगुम्फा अभिलेख (एपिग्रैफिया इण्डिका, जिल्द २०, पृ० ७९) में 'कल्पवृक्ष' दान का नाम आया है। बाण ने भी महादानों तथा गोसहस्र नामक महादान की चर्चा की है (हर्षचरित ३)। उषवदात ने जिन वस्तुओं का दान किया था, उनमें कुछ महादानों की सूची में आ जाते हैं (एपिग्रैफिया इण्डिका, जिल्द ७ पृष्ठ ५७ एवं जिल्द ८ पृ० ७८)। अभिलेखों में तुलापुरुष का उल्लेख कई बार हुआ है (देखिए एपिग्रैफिया इण्डिका, जिल्द ७ पृ० २६; १०, पृ० ११२; ९, प० २४; ११:१० २०; १४, प० १९७; ७, पृ०१७)। बंगाल के राजा लक्ष्मणसेन ने, हेमाश्वरथ नामक महादान करते समय एक ग्राम दान में दिया था (एपिग्रेफिया इण्डिका, जिल्द १२ पृ० १०) । अमोघवर्ष के सजन पत्रों में हिरण्यगर्भ नामक महादान की चर्चा हुई है (एपिग्रंफिया इण्डिका, जिल्द १८, पृ० २३५, २३८) । इसी प्रकार पंचलांगल व्रत का भी उल्लेख हुआ है (जे० बी० बी० आर० एस्. जिल्द १३ पृ० १)। महादान-विधि-मत्स्यपुराण (अध्याय २७४-२८९) ने लगभग ४०० श्लोकों में महादानों की विधि की चर्चा की है, इनमें से तथा भविष्योत्तरपुराण से बहुत से पद्य लेकर अपरार्क (पृ० ३१३-२४४) ने उद्धृत किये हैं। हेमाद्रि (दाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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