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धर्मशास्त्र का इतिहास
यदि अतिथि लौटने को न कहे तो गाँव की सीमा तक जाना चाहिए । वसिष्ठधर्मसूत्र ( ११।१५) एवं याज्ञवल्क्य ने सीमा तक जाने की व्यवस्था दी है। अपरार्क के अनुसार सीमा आतिथ्यकर्ता के घर-द्वार या उसके खेत या गाँव तक परिणत हो सकती है । शंख-लिखित के अनुसार वहाँ तक साथ-साथ जाना चाहिए जहाँ जन उपवन या जन-सभागृह (आराम या सभा) हो, प्रपा ( धर्मार्थ पानी पिलाने का स्थान ) हो, या तालाब, मन्दिर, कोई पवित्र वृक्ष ( पीपल या बरगद) या नदी हो । वहाँ अतिथि की प्रदक्षिणा करके कहना चाहिए कि हम पुनः मिलेंगे। "
११. समेत्य न्यायतो निवर्तेत । आरामसभाप्रपातडागदेवगृहमहाद्रुमनदीनामन्यतरस्मिन प्रदक्षिणं कुर्याद् वाचमुत्सृज्य पुनर्वर्शनायेति । शंखलिखित ( गृहस्थरत्नाकर पु० २९२ ) ।
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