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________________ मनुष्यया या अतिविस्तार बलिहरण के उपरान्त अतिथि सत्कार किया जाता है। बौधायनगृह्यसूत्र (२।९।१-२), वसिष्ठ (१९३६), विष्णुपुराण (३।२।५५) की आशा है कि बलिहरण के उपरान्त गृहस्थ को अपने घर के आगे अतिथि के स्वागत के लिए उतनी देर तक वाट देखनी चाहिए जितनी देर में गाय दुह ली जाती है (या अपने मन से पर्याप्त देर तक जोहना चाहिए ) । मार्कण्डेयपुराण (२९।२४-२५) के अनुसार एक मुहूर्त के आठवें माग तक ज़ोहना चाहिए (स्मृतिचन्द्रिका ४१, पृ० २१७ में उद्धृत)।' आपस्तम्बधर्मसूत्र (२।३।६।३ से २।०९।६ तक) ने अतिथि सत्कार पर विशद रूप से लिखा है। गौतम (५।३६), मनु (३।१०२-१०३) एवं याज्ञवल्क्य (१।१०७ एवं १११) ने लिखा है कि वही व्यक्ति अतिपि है जो दूसरे ग्राम का है, एक ही रात्रि रहने के लिए सन्ध्याकाल में पहुंचता है; वह जो खाने के लिए पहले से ही आमंत्रित है अतिथि नहीं कहलाता, वह जो अपने ग्राम का है, मित्र है या सहपाठी है अतिथि नहीं कहलाता। अपनी सामर्थ्य के अनुसार अतिथि-सत्कार करना चाहिए, अतिथियों का सत्कार-क्रम वर्णों के अनुसार होना चाहिए और ब्राह्मणों में श्रोत्रिय को या उसे जिसने कम-से-कम एक वेद पढ़ लिया है अपेक्षाकृत पहले सम्मान देना चाहिए। वसिष्ठधर्मसूत्र (११६) के अनुसार योग्यतम व्यक्ति का सम्मान सर्वप्रथम होना चाहिए। गौतम (५।३९-४२), मनु (३।११०-११२) के मत से क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र ब्राह्मणों के अतिथि नहीं हो सकते, यदि कोई क्षत्रिय ब्राह्मण के यहाँ अतिथि रूप से चला आता है (यात्री के रूप में, पास में जब भोजन-सामग्री न हो तथा भोजन के समय बा गया हो) तो उसका सम्मान ब्राह्मण अतिथि के उपरान्त होता है तथा वैश्यों एवं शूद्रों को भोजन घर के नौकरों के साथ दिया जाना चाहिए। आपस्तम्बधर्मसूत्र (२।४।९।५) का कहना है कि वैश्वदेव के उपरान्त जो भी आये उसे भोजन देना चाहिए, यहाँ तक कि चाण्डालों को भी। हरदत्त का कहना है कि यदि योग्य व्यक्ति को आतिथ्य नहीं दिया जाता तो पाप लगता है, किन्तु अयोग्य को भोजन न देने से पाप नहीं लगता है परन्तु दे देने से पुण्य प्राप्त होता है। पराशर (१।४०) एवं शातातप (स्मृतिचन्द्रिका १० पृ० २१७ में उद्धृत) ने लिखा है कि जब वह व्यक्ति, जिसे गृहस्थ घृणा की दृष्टि से देखता है या यह जो मूर्ख है, भोजन के समय उपस्थित हो तो गृहस्थ को भोजन देना चाहिए। शान्तिपर्व (१४६।५) ने लिखा है कि जिस प्रकार पेड़ काटने वाले को भी छाया देता है, उसी प्रकार यदि शत्रु भी आ जाय तो उसका आतिथ्य सत्कार करना चाहिए। किन्तु आपस्तम्बधर्मसूत्र (२।३।६।१९), मनु (४।२१३) एवं याज्ञवल्क्य (१११६२) इसके विरोधी हैं और कहते हैं कि अतिथि आतिथ्यकर्ता का विद्वेषी है, तो उसे भोजन नहीं कराना चाहिए, और न ऐसे आतिथ्यकर्ता का भोजन करना चाहिए जो दोष मढ़ता है या उस पर किसी अपराध की शंका करता है। वृद्ध गौतम (पृ० ५३५-५३६) ने चाण्डाल तक को भोजन देने की व्यवस्था दी है। वृद्ध हारीत (८५२३९-२४०) ने अपनी मानवता इस प्रकार प्रदर्शित की है-यदि यात्री शूद्र हो या प्रतिलोम जाति का (यथा चाण्डाल) हो, जब वह यका-मांदा, भूखा-प्यासा घर आ जाय तो गृहस्थ को उसे भोजन देना चाहिए; किन्तु यदि नास्तिक, धर्मविद्वेषी या पतित (पापों के कारण जातिच्युत) हो और उसी थकी एवं भूखी स्थिति में आये तो उसे पका भोजन न देकर अन्न देना चाहिए। मिलाइए मनु (४।३०)। बौधायनगृह्यसूत्र (२।९।२१) में चाण्डाल समेत सभी प्रकार के यात्रियों के अतिषि-सत्कार की व्यवस्था की गयी है। ४. अथ वैश्वदेवं हत्वातिथिमाकानेवागोबोहकालम् । अगं बोवृत्य बचात्। विज्ञायते यतो वा एष पञ्चमो यतिषिः। बौधायनगृह्यसूत्र २।९।१-३ एवं भवानगृह्य० ॥१४; देखिए मनु ३९४ भी। मुहूर्तस्थाष्टमं भागमुदीन्यो रातिषिर्भवेत्॥ मार्कण्डेयपुराण २९।२५।। __५. बाह्मणस्यानतिपिरणाह्मणः...भोजन तु क्षत्रियस्योम्वं ब्राह्मणेभ्यः। अन्यान् मृत्यः सहानुशंस्थार्थम्। गौतम ५।३९-४२ धर्म० ५२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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