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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास मूर्तिपूजा के देव, पञ्चायतन पूजा एवं दशावतार जिन देवों की मूर्तियों की पूजा होती है, उनमें मुख्य हैं विष्णु ( बहुत-से नामों एवं अवतारों के साथ), शिव (अपने बहुत से स्वरूपों के साथ), दुर्गा, गणेश एवं सूर्य । इन देवों की पूजा (पञ्चायतन पूजा) की प्रसिद्धि का श्रेय श्री शंकराचार्य को है । आजकल भी इन पांचों देवों की पूजा होती है, किन्तु उनके स्थान क्रम में निम्न प्रकार की विशेषता पायी जाती है ३९४ उत्तर विष्णुपञ्चायतन शंकर २ देवी ५. गणेश विष्णु ३ २ विष्णु १ शिवपचायतन सूर्य | देवी ४ शंकर १ पूर्व सूर्यपञ्चायतन | देवीपञ्चायतन गणेश विष्णु शंकर 3 २ Jain Education International सूर्य शंकर ३ गणेश | देवी ४ ५ विष्णु ४ देवी १ • गणेशपञ्चायतन विष्णु २ गणेश | देवी ४ ५ गणेश १ For Private & Personal Use Only शंकर ३ पश्चिम मध्य एवं आधुनिक काल के धार्मिकों ने विष्णु को जगत् एवं इसकी संस्कृति की रक्षा के लिए अवतार रूप में कई बार इस संसार में देखा है । अब हम संक्षेप में अवतारों के सिद्धांन्त के विषय में चर्चा करेंगे। विष्णु के बहुत प्रसिद्ध दस अवतार माने गये हैं— मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध एवं कल्कि । प्रारम्मिक वैदिक साहित्य में अवतार की धारणा के विषय में धुंधला-सा संकेत मिल जाता है। ऋग्वेद (८।१७।१३) में इन्द्र दक्षिण ऋषि श्रृंग का पौत्र माना गया है, जिसका तात्पर्य हुआ कि इन्द्र इस पृथिवी पर मनुष्य रूप में उतरे थे । ऋग्वेद ( ४१२६ । १ ) में ऋषि वामदेव ने कहा है- "मैं मनु था, मैं सूर्य भी था ।" इस उक्ति की ओर बृहदारण्यकोपनिषद् ( १/४/१० ) में मी संकेत मिलता है और इसे आत्मा के आवागमन के सिद्धान्त के समर्थन में बहुधा उद्धृत किया जाता है। चाहे जो हो, इतना तो कहना ठीक ही जँचता है कि वैदिक ऋषि ने सूर्य को इस पृथिवी पर मनुष्य रूप में अवतरित होते हुए कल्पित किया था । शतपथ ब्राह्मण ( १ ८ १ १ ६ ) में मनु की कथा आयी है; जब अत्यधिक बाढ़ में मनु hatar बसी रही थी तो उन्होंने ( मनु ने उसे एक सींग वाली मछली के सींग में बांध दिया था और उस मछली ने मनु की रक्षा की थी। इस गाथा से मत्स्यावतार की धुंधली झलक मिल जाती हैं। १० शतपथ ब्राह्मण (७।५।१।५ ) के कथन से सम्भवतः कूर्मावतार की झलक भी मिलती है। वहाँ ऐसा आया है कि प्रजापति ने कूर्म का रूप धारण करके प्राणियों की सृष्टि की। 'कूर्म' एवं 'कश्यप' शब्दों का अर्थ एक ही है, अतः १०. स औध उत्थिते नावमापेदे तं स मत्स्य उपन्यापुप्लुवे तस्य शंगे नाव: पाशं प्रतिमुमोच तेनंतमुत्तरं गिरिमतिदुद्राव । शतपथ ब्राह्मण ११८ ११५ । और देखिए जे० आर० ए० ए०, १८९५, पृ० १६५-१८९ में प्रो० मैक्डोनेल का लेख जिसमें अवतारों से सम्बन्ध रखने वाली जनश्रुतियों की छाया प्रस्तुत की गयी है। www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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