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________________ १८ धर्मशास्त्र का इतिहास नारी से सम्बन्ध रखने पर पति तथा पर-पुरुष से सम्बन्ध रखने पर पत्नी के लिए प्रायश्चित्त; भ्रूण (सूत्र-प्रवचन-पाठक ब्राह्मण) को मारने पर प्रायश्चित्त ; अपने बचाव को छोड़कर ब्राह्मण अस्त्र-शस्त्र नहीं ग्रहण कर सकता; अभिशस्त (अपराधी) के लिए प्रायश्चित्त; छोटे-छोटे पापों के लिए प्रायश्चित्त; स्नातक (विद्यास्नातक, व्रतस्नातक तथा विद्याव्रतस्नातक) के बारे में कतिपय मत; परिधान-ग्रहण, मलमूत्र-त्याग, लांछनपूर्ण बातचीत, सूर्योदयास्त न देखने, क्रोधादि नैतिक दोषों से दूर रहने के सम्बन्ध में व्रत । (प्रश्न २--) पाणिग्रहण के उपरान्त गृहस्थ के व्रत आरम्भ होते हैं; भोजन-ग्रहण, उपवास, संभोग के विषय में गृहस्थाचरण के नियम; सभी वर्ण वाले अपने कर्मों एवं कर्तव्याचरण के अनुसार अपरिमित आनन्द या दुःख पाते हैं, यथा, एक ब्राह्मण चोरी एवं ब्रह्महत्या के कारण चाण्डाल हो ता है, उसी प्रकार एक अपराधी क्षत्रिय (राजन्य) पौल्कस हो जाता है; स्नानोपरान्त तीनों उच्च जातियों को वैश्वदेव करना चाहिए; आर्यों की देखरेख में शूद्र लोग तीन ऊँची जातियों का भोजन पका सकते हैं; पक्वान्न की बलि; पहले अतिथि को, तब बच्चों, बुड्ढों, बीमारों, गभिणी स्त्रियों को भोजन देना चाहिए, उसके उपरान्त गृहस्थ स्वयं खाये ; वैश्वदेव के अन्त में आनेवाले को भोजन अवश्य देना चाहिए; अपढ़ ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों एवं शूद्रों को अतिथि रूप में ग्रहण करने के नियम; एक गृहस्थ को उत्तरीय ग्रहण करना चाहिए या उसका यज्ञोपवीत ही पर्याप्त है; ब्राह्मण-आचार्य के अभाव में एक ब्राह्मण क्षत्रिय या वैश्य आचार्यों से अध्ययन कर सकता है; विवाहित पुरुष का गुरु के अतिथि रूप में आने पर कर्तव्य ; गृहस्थ का पढ़ाने एवं अपने आचारों के सम्बन्ध में कर्तव्य ; अतिथि की जाति एवं चरित्र के विषय में सन्देह उत्पन्न होने पर क्या करना चाहिए, अतिथि क्या है; अतिथिसत्कार की प्रशंसा ; अग्नि-प्रतिष्ठा करने पर तथा अतिथि के राजा के पास पहुँचने पर विधि; किसको और कब मधुपर्क देना चाहिए; वेदांगों के नाम; वैश्वदेव के उपरान्त कत्तों एवं चाण्डालों तक सबको भोजन देना चाहिए: सभी दान जल के साथ देने चाहिए; नौकर-चाकरों, दासों के बल पर ही दानादि नहीं करना चाहिए; अपने को, अपनी पत्नी या बच्चों को कष्ट हो जाय, किन्तु नौकरों को नहीं; ब्रह्मचारी, गृहस्थ, साधु आदि को कितना भोजन करना चाहिए; आचार्य, विवाह, यज्ञ, माता-पिता के भरण-पोषण के लिए, अग्निहोत्र ऐसे अच्छे तप बन्द न हो जायें, इसके लिए भीख मांगने की व्यवस्था; ब्राह्मणों एवं अन्य जातियों के विशेष कर्म ; युद्ध के नियम; राजा ऐसे पुरोहित को नियुक्त करे जो धर्म, शासन-कला, दण्ड देने एवं व्रत करने में प्रवीण हो; अपराधानुसार मृत्यु तथा अन्य दण्ड का विधान, किन्तु ब्राह्मण न नारा जा सकता था, न घायल किया जा सकता था और न दास बनाया जा सकता था; मार्ग-नियम; धर्मरत क्रमशः उठता हुआ उत्तम जाति को तथा अ मशः गिरता हुआ नीच जाति को प्राप्त होता है; जब तक बच्चे हों और पत्नी धर्मकार्य में रत हो, दूसरा विवाह नहीं करना चाहिए, विवाह-योग्य लड़की के विषय में नियम, यथा वह सगोत्र एवं माता की सपिण्ड न हो; छः प्रकार के विवाहब्राह्म, आर्ष, देव, गान्धर्व, आसुर एवं राक्षस; छहों में किनको कितना मान देना चाहिए; विवाहोपरान्त आचरणनियम; अपनी ही जाति की पत्नी से उत्पन्न पुत्र पिता की जाति के योग्य कर्तव्य कर सकते हैं और पिता की सम्पत्ति पा सकते हैं; वह लड़का, जो एक बार पहले विवाहित हो चुका हो, अथवा जिसका विवाह विधि के अनुकूल न हुआ हो, अथवा जो विजातीय हो, भर्त्सना के योग्य है; क्या लड़का औरस है, बच्चे का दान या क्रय नहीं हो सकता; पिता के जीते-जी सम्पत्ति-विभाजन, बराबर विभाजन ; नपुसक, पागल एवं पापियों का वसीयत में निषेध; पुत्राभाव में वसीयत निकट सपिण्ड को मिलती है, उसके बाद आचार्य को और तब शिष्य या पत्री को और अन्त में राजा को प्राप्त होती है। ज्येष्ठ पुत्र को अधिक भाग मिलना चाहिए, ऐसा मत वेदों को मान्य नहीं है। पति-पत्नी में विभाजन नहीं, वेद-विरुद्ध देशों एवं वंशों के व्यवहार-प्रयोग मान्य नहीं; सम्बन्धियों, सजातियों आदि की मृत्यु पर अशौच ; उचित समय तथा स्थान में सुपात्र को दान देना चाहिए; श्राद्ध, श्राद्ध का काल; चारों आश्रम; परिव्राजक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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