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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास ३७६ देवता का नाम न लिया गया हो तो प्रजापति को ही देवता समझना चाहिए। एक और नियम यह है कि तरल पदार्थ को स्रुव से तथा शुष्क हवि को दाहिने हाथ से देना चाहिए । ४ गोमलगृह्यसूत्र (१।१।१५-१९ ) ने कहा है- “यदि गृह्याग्नि बुझ जाय तो किसी वैश्य के घर से या भर्जनपात्र (भाड़) से या उसके घर से जो यज्ञ करता है (चाहे वह ब्राह्मण, हो या क्षत्रिय या वैश्य हो ) उसे लाना चाहिए या घर्षण से (यह पवित्र तो होती है, किन्तु सम्पत्ति नहीं लाती) उत्पन्न करना चाहिए। जैसी कामना हो वैसा ही करना चाहिए ।" यही बात शांखायनगृह्यपूत्र ( १ ) ११८), पारस्करगृह्यसूत्र (१/२), आपस्तम्बगृह्यसूत्र ( ५।१६-१७) में भी पायी जाती है। यदि गृह्याग्नि बुझ जाय तो पति एवं पत्नी को उस दिन प्रायश्चित्त रूप में उपवास करना चाहिए ( आपस्तम्बगृह्यसूत्र ५।१९ ) । जिस अग्नि में आहुतियाँ छोड़ी जायँ, उसमें सूखी लकड़ियाँ पर्याप्त मात्रा में होनी चाहिए, उसे अच्छे प्रकार से धूमहीन हो जलते रहना चाहिए और लाल-लाल होकर उसे ज्वाला फेंकते रहना चाहिए ( छान्दोग्योपनिषद् ५।२४। १ एवं मुण्डकोपनिषद् १।२।२ ) । आपस्तम्ब धर्मसूत्र (१।५।१५।१८-२१), मनु (४१५३) एवं अन्य लोगों के मत से अपवित्र व्यक्ति को इस अग्नि के पास नहीं जाना चाहिए, मुंह से फूंककर इसे जलाना भी नहीं चाहिए, अपनी खाट के नीचे भी नहीं रखना चाहिए, इससे पैर भी नहीं सेकने चाहिए और न सोते समय अपने पैरों की ओर रखना चाहिए। गोभिलस्मृति (१।१३५-१३६) का कहना है कि 'इसे हाथ से, सूप से या दव ( करछुल) से नहीं जलाना चाहिए, बल्कि पंखा से जलाना चाहिए।' कुछ लोग अग्नि को मुंह से जलाते हैं, क्योंकि यह मुंह से ही उत्पन्न की गयी थी ( मनु ४|५३ ) । लौकिक अग्नि की भाँति इस अग्नि को मुंह से नहीं जलाना चाहिए (केवल श्रौत अग्नि मुंह से जलायी जा सकती है) । " नित्य का होम स्वयं करना चाहिए, क्योंकि दूसरे द्वारा कराने से उतना फल नहीं प्राप्त होता, किन्तु यदि इसे पुरोहित, पुत्र, गुरु, भाई, भानजा, दामाद करे तो इसे अपने द्वारा किया हुआ समझना चाहिए (दक्ष २।२८-२९, अपरार्क, पृ० १२५ द्वारा उदूघृत) । आश्वलायनगृह्यसूत्र (१।९।१) ने पत्नी, अविवाहित पुत्री या शिष्य को गृह्याग्नि के होम में सम्मिलित होने की आज्ञा दी है। यही बात शांखायनगृह्यसूत्र में भी पायी जाती है । स्मृत्यर्थसार ( पृ० ३४) ने यह जोड़ा है कि पत्नी एवं पुत्री पर्युक्षण को छोड़कर होम के सारे कार्य कर सकती हैं। आपस्तम्बधर्मसूत्र (६।१५।१५-१६) एवं मनु (९।२६-२७ ) के मत से पत्नी, अहिवाहित पुत्री, विवाहित युवा पुत्री, कम पढ़ा-लिखा, मूर्ख व्यक्ति, रोगी तथा जिसका उपनयन न हुआ हो वह गृहस्थ के स्थान पर अग्निहोत्र नहीं कर सकता, यदि वे ऐसा करें तो वे तथा गृहस्थ नरक में पड़ेंगे, अतः जो दूसरे के लिए अग्निहोत्र करना चाहे उसे श्रीत यज्ञों में दक्ष एवं वेदज्ञ होना चाहिए। ये प्रतिबन्ध केवल श्रौत यज्ञों के लिए हैं, किन्तु नित्य होम के लिए पत्नी तथा वे लोग, जिन्हें आश्वलायनगृह्यसूत्र ने छूट दी है, समर्थ हैं, जब कि यज्ञ करनेवाला बीमार हो या बाहर गया हो। हरदत्ते ( आश्वलायनगृह्यसूत्र १।९।१-२ ) ने लिखा है कि पति या पत्नी को गृह्याग्नि के समीप रहना चाहिए। लघु - आश्वलायन ( १/६९ ) के मत से गृह्याग्नि रखनेवाले को बिना अपनी पत्नी के ग्राम की सीमा नहीं छोड़नी चाहिए। क्योंकि जहाँ स्त्री रहती है वहीं होम होता ३४. द्रवं सुवेण होतव्यं पाणिना कठिनं हविः । स्मृत्यर्थसार, पृ० ३५ । ओषध्यः सक्तवः पुष्पं काष्ठं मूलं फलं तृणम् । एतद्धस्तेन होतव्यं नान्यत् किंचिदचोदनात् ॥ बौधायनगृह्यशेषसूत्र ११३८ । " ३५. पुरुपसूक्त (ऋग्वेद १०।१०।१३ ) का कहना है- " मुखादिन्द्रश्चाग्निश्च प्राणाद्वायुरजायत ।” गृह्यसंग्रहपरिशिष्ट (१1७० ) में आया है कि जलाना मुख से होना चाहिए; 'मुखेनोपध मेदग्न मुख/वेषोऽध्यजायत', न कि वस्त्रखण्ड, हाथ या सूप से । देखिए इस विषय में कई विधियों को हरवत्त में ( आपस्तम्बधर्मसूत्र १/५/१५/२० ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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