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धर्मशास्त्र का इतिहास दक्षिणापथ के लोगों को मिश्रित जातियों में गिना है, अतः वे दक्षिणी नहीं हो सकते, क्योंकि वे अपने को नीच जाति में क्यों रखते ?
उपलब्ध बौधायनधर्मसूत्र गोतमधर्मसूत्र के बाद की कृति है, क्योंकि इसने दो बार गौतम का नाम लिया है और कम-से-कम एक स्थान पर उनके धर्मसूत्र से उद्धरण लिया है। गौतम ने केवल एक धर्मशास्त्राचार्य मनु का नाम लिया है, किन्तु बौधायन ने बहुतों का। बौधायन का समय उपनिषदों के बहुत बाद का है। उपनिषदों से उद्धरण लिये गये हैं, हारीत भी उद्धृत हुए हैं। बुहलर ने कहा है कि आपस्तम्बधर्मसूत्र से बौधायनधर्मसूत्र एक या दो शताब्दी पुराना है। उनका तर्क यह है कि कण्व बोधायन तर्पण में आपस्तम्ब से एवं हिरण्यकेशी से पहले ही सम्मान पाते हैं, और यही बात बौधायनगृह्यसूत्र में भी है। किन्तु यह तर्क ठीक अँचता नहीं। यह बात ठीक है कि तीनों कृष्ण-यजुर्वेदीय शाखाओं में बौधायन सबसे प्राचीन हैं, किन्तु इससे यह नहीं सिद्ध किया जा सकता कि वर्तमान बौधायनियों का धर्मसूत्र आपस्तम्दियों से प्राचीन है। कुमारिल ने बौधायन को आपस्तम्ब से बाद का माना है। तीनों शाखाओं के संस्थापक बौधायन गृह्यसूत्र एवं धर्म सूत्र में उल्लिखित हैं। हो सकता है कि दोनों को आपस्तम्द के किसी ग्रन्थ का परिचय रहा हो और वह ग्रन्थ रहा हो आपस्तम्बधर्मसूत्र ही। बौधायन एवं आपस्तम्ब में बहुत-से सूत्र समान हैं, किन्तु तुलना करने पर पता चलता है कि आपस्तम्ब बौधायन से अपेक्षाकृत अधिक दृढ या अनतिक्रमणीय एवं कट्टर हैं (अतः बौधायनसूत्र बहुत बाद का है)। गौतम, बौधायन तथा वसिष्ट ने कतिपय गौण पुत्रों की चर्चा की है, किन्तु आपस्तम्ब इस विषय में मौन हैं। गौतम बीपायन (२.२.१७, ६२), वसिष्ठ और यहाँ तक कि विष्णु ने नियोग के प्रचलन को माना है, किन्तु आपस्तम्ब ने इसकी भर्त्सना की है (२.६.१३, १-९)। गौतम एवं बौधायन (१.११.१) ने आठ प्रकार के विवाहों की चर्चा की है, किन्तु आपस्तम्ब ने प्राजापत्य, एवं पैशाच (२.५. ११.१७-२० एवं २.५.१२, १-२) को छोड़ दिया है। इसी प्रकार बहुत-सी बातों में आपस्तम्ब के नियम कठोर एवं कट्टर हैं। किन्तु इन बातों के आधार पर काल-निर्णय करना सरल नहीं है, क्योंकि प्राचीन काल के धर्मशास्त्रकारों में बहुत मतभेद था। कट्टरता केवल बाद में ही नहीं पायी गयी है, पहले भी ऐसी बात थी। इसी प्रकार बाद वाले धर्मशास्त्रकारों ने कट्टरता नहीं भी प्रदर्शित की है, यथा याज्ञवल्क्य ने नियोग-प्रथा को स्वीकार किया है (२.१३१) । अतः बुहलर के कथन को, कि आपस्तम्ब बौधायन से बाद का है, मानना युक्तिसंगत नहीं जंचता। बौधायन गौतम से बाद का ग्रन्थ है ; इसमें सन्देह नहीं, किन्तु आपस्तम्ब से प्राचीन है; ऐसा नहीं कहा जा सकता। आपस्तम्ब में बौधायन की अपेक्षा भाषा-सम्बन्धी बहुत अन्तर है ; पाणिनि के नियमों के विपरीत भी व्याकरण-व्यवहार है, रचना-गठन ऊबड़खाबड़ है, पुराने अर्थ में शब्द प्रयोग हैं। अस्तु, शबर के बहुत पहले से बौधायनधर्मसूत्र प्रमाण-स्वरूप माना जाता था। शबर का काल ५०० ई० है । बौधायन का काल ई० पू० २००-५०० के कहीं बीच में माना जाना चाहिए। बौधायन 'तथा आपस्तम्ब में बहुत-से सूत्र समान हैं, दोनों में वैदिक उद्धरण भी बहुधा समान हैं, किन्तु इससे दोनों में किसी प्रकार का सम्बन्ध था, ऐसा नहीं कहा जा सकता। इसी प्रकार वसिष्ठधर्मसूत्र की रहुत-सी बातें बौधायन में ज्यों-कीत्यों पायी जाती हैं। मनुस्मृति में इस धर्मसूत्र की बातें पायी जाती हैं। इससे यह बात कही जा सकती है कि बौधायन, वसिष्ठ एवं मनु ने किसी एक ही ग्रन्थ से ये बातें ली हों या कालान्तर में इन ग्रन्थों में ये बातें क्षेपक रूप में आ गयी हो। किन्तु क्षेपक छोटा हुआ करता है और यहाँ जो बातें या उद्धरण सम्मिलित हैं, वे बहुत लम्बेलम्बे हैं।
___ तर्पण वाले प्रकरण (५.२१) में बौधायन ने गणेश की कई उपाधियों की चर्चा की है, यथा विघ्नविनायक, स्थूल, वरद, स्तिमुख, वक्रतुण्ड, एकदन्त, लम्बोदर। किन्तु इससे इसकी तिथि पर कोई प्रकाश नहीं पड़ता। तर्पण (२.५.२३) में राहु एवं केतु के साथ अन्य सातों ग्रहों के नाम आये हैं। विष्णु के बारहों नाम भी
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