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________________ बौधायनधर्मसूत्र १५ पर ब्रह्मचारी के लिए सगोत्र कन्या से विवाह करने, ज्येष्ठ भ्राता के अविवाहित रहते स्वयं विवाह कर लेने पर प्रायश्चित, छोटे-छोटे पाप, पराक, कृच्छ्र, अतिकृच्छ्र नामक व्रतों का वर्णन; (२) वसीयत का विभाजन, ज्येष्ठ पुत्र का भाग, औरस पुत्र के स्थान पर अन्य प्रति व्यक्ति, वसीयत से निषेध, नारी की आश्रितता, पुरुषों एवं स्त्रियों द्वारा व्यभिचार किये जाने पर प्रायश्चित्त, नियोग-नियम, विपत्ति में जीविका के उपाय, अग्निहोत्र आदि गृहस्थ- कर्तव्य; (३) स्नान, आचमन, वैश्वदेव, भोजन- दान जैसे गृहस्थ- कर्तव्य; (४) सन्ध्या; (५) स्नान, आचमन, सूर्य - उपस्थान, देवों, ऋषियों, पितरों को तर्पण करने के नियम (६) प्रतिदिन के पंच महायज्ञ, चारों जातियाँ एवं उनके कर्तव्य; (७) भोजन-नियम; (८) श्राद्ध; (९) पुत्रों एवं पुत्रों से उत्पन्न आध्यात्मिक लाभ की प्रशंसा; (१०) संन्यास के नियम | प्रश्न ३ (१) शालीन एवं यायावर नांमक गृहस्थों की जीविका के उपाय; (२) 'षनिवर्तनी' नामक वृत्ति के उपाय; (३) अरण्यवासी साधु के कर्तव्य एवं वृत्ति; (४) ब्रह्मचारी एवं गृहस्थ के नियमों के विरोध में जाने पर ( पालन न करने पर) प्रायश्चित्त; (५) परम पवित्र अघमर्षण पढ़ने की पद्धति (६) प्रसृतयावक का क्रियासंस्कार; ( ७ ) कूष्माण्ड नामक शोधक होम, (८) चान्द्रायण व्रत ; ( ९ ) बिना खाये वेदोच्चारण; (१०) पाप काटने के लिए पवित्रीकरण एवं अन्य पदार्थों के निर्मलीकरण के लिए सिद्धान्त । प्रश्न ४-- -- (१) वर्जित भोजन खा लेने या बुजित पेय पी लेने आदि पर प्रायश्चित्त; (२) कतिपय पापों के मोचन के लिए प्राणायाम एवं अघमर्षण; (३) गुप्त प्रायश्चित्त; (४) प्रायश्चित्तस्वरूप कतिपय वैदिक मन्त्र (५) जप, होम, इष्टि एवं यन्त्र द्वारा सिद्धि प्राप्त करने के साघन, कृच्छ्र, अतिकृच्छ्र, सान्तपन, पराक, चान्द्रायण नामक व्रत; ( ६ ) पवित्र मूल मंत्रों, इप्टियों का जप ( ७ ) यन्त्र की प्रशंस, होम में प्रयुक्त कतिपय वैदिक मंत्र ( ८ ) लाल साधनों में लिप्त लोगों की भर्त्सना, कुछ विशिष्ट दशाओं में किसी अन्य व्यक्ति द्वारा उन पदार्थों की प्राप्ति की अनुज्ञा । सिद्धि के बौधायनधर्मसूत्र अपनी सम्पूर्णता के साथ आज उपलब्ध नहीं है । सम्भवतः चौथा प्रश्न क्षेपक है। इसके आठ अध्यायों के अधिक अंश पद्य में हैं। शैली में भी मिलता है। इस धर्मसूत्र में बहुत सी बातें बार-बार आयी हैं। तीसरे प्रश्न का दसवाँ अध्याय गौतमधर्मसूत्र से लिया गया है । इस प्रश्न का छठा अध्याय विष्णुधर्मसूत्र के अड़तालीसवें अध्याय से भाषा सम्बन्धी बातों में बहुत मिलता है। बौधायनघर्मसूत्र रचना में कुछ शिथिल एवं आवश्यकता से अधिक विस्तृत है। स्वयं गोविन्दस्वामी ने इस ओर संकेत किया है। रचना व्यवस्था में सतर्कता प्रदर्शित नहीं की गयी है। इसकी भाषा प्राचीन है। बौधायन को निम्न ग्रन्थ ज्ञात थे--चारों वेद, यानी तंत्तिरीय संहिता, तैत्तिरीय ब्राह्मण, तैत्तिरीय आरण्यक - उपनिषद् समेत सभी वेदों की संहिताऐं, शतपथ ब्राह्मण आदि। उन्हें माल्लवी की गाथा से परिचय था, जिसमें आर्यावर्त की भौगोलिक सीमाएं दी गयी थीं ; इतिहास और पुराण का भी वर्णन आया है। छ वेदांगों की भी चर्चा पायी जाती है। बौधायन ने निम्नलिखित वर्मशास्त्रकारों के नाम लिये हैं-औपजंधनि, कात्य, काश्यप, गौतम, प्रजापति, मनु, मौद्गल्य, हारीत । बौधायनधर्मसूत्र में बहुत से धर्म-सम्बन्धी उद्धरण पाये जाते हैं, इससे सिद्ध है। कि उसके पूर्व बहुत से ग्रन्थ विद्यमान थे । बौधायन कहाँ के रहनेवाले थे ? इसका उत्तर देना कठिन है। वर्तमान काल में बौधायनीय लोग अधिकतर दक्षिण भारत में ही पाये जाते हैं। वेदों के प्रसिद्ध माष्यकार सारण बौधायनीय थे। किन्तु बौधायन ने ६९. ननु द्विजातिषु कर्मस्थेषु इति सूत्रथितव्ये किमिति सूत्रद्वयारम्भः । सत्यम्, अयं ह्याचार्यो नातीव प्रम्लापवाभिप्रायो भवति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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