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________________ आह्निक कृत्य चाहिए, किन्तु उसके पूर्व ऋग्वेद (१०।७३।११) का पाठ कर लेना चाहिए, जिसके अन्तिम अर्घ पद का अर्थ है "अन्धकार से दूर करो, हमारी आँखें भर दो, और हम में उन्हें छोड़ दो जो शिकन्जों में फंसे हों।" प्रातःकाल उठना कूर्मपुराण को उद्धृत कर स्मृतिचन्द्रिका (१, पृ० ८८) ने लिखा है कि सूर्योदय के कुछ पूर्व उठक भगवान् का स्मरण करना चाहिए। आह्निकप्रकाश (पृ० १६) ने वामनपुराण (१४।२३-२७) के पाँच श्लोकों को उद्धृत कर बताया है कि इन्हें प्रति दिन प्रातःकाल उठकर पढ़ना चाहिए। आज भी बहुत-से बूढ़े लोग इन श्लोकी को प्रातःकाल जागकर बोला करते हैं। कुछ ग्रन्थों के अनुसार जो भारतसावित्री नामक चारों श्लोकों का पाठ प्रातःकाल करता है वह सम्पूर्ण महाभारत सुनने का फल प्राप्त करता है और ब्रह्म की प्राप्ति करता है।" आह्निकतत्त्व (पृ० ३२७) ने एक श्लोक उद्धृत किया है, जिसे सोकर उठने के उपरान्त पढ़ा जाता है और उसमें कर्कोटक नाग, दमयन्ती, राजा नल एवं ऋतुपर्ण के नाम कलि के प्रभावों से मुक्त होने के लिए लिये गये हैं (महाभारत, वनपर्व ७९।१०)। स्मृतिमुक्ताफल ने ऐसा श्लोक उद्धृत किया है जिसमें नल, युधिष्ठिर, सीता एवं कृष्ण पुण्यश्लोक कहे गये हैं, अर्थात् जिनके यश का गान करना पवित्र कार्य है। आचाररत्न (पृ० १०) ने कुछ चिरञ्जीवियों के नाम लेने को कहा है, यथा अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृप, परशुराम एवं मार्कण्डेय, और पांच पवित्र स्त्रियों के नाम भी गिनाये हैं, यथा अहल्या, द्रौपदी, सीता, तारा एवं मन्दोदरी। आज भी प्राचीन परम्परा के अभ्यासी, विशेषतः बूढ़े लोग, इनका नाम प्रातःकाल उठने पर लेते हैं। कुछ ग्रन्थों में ऐसा आया है कि प्रातःकाल उठने पर यदि वेदज्ञ ब्राह्मण, सौभाग्यवती स्त्री, गाय, वेदी (जहाँ अग्नि जलायी गयी हो) दिखलाई पड़ें तो व्यक्ति विपत्तियों से छुटकारा पाता है, किन्तु यदि पापी, विधवा, अछूत, नंगा, नकटा दिखलाई पड़ जायें तो कलि (विपत्ति या झगड़ा-टंटा) के द्योतक हैं (गोभिलस्मृति २।१६३ एवं १६५)। पराशर (१२।४७) के मत से वैदिक यज्ञ करनेवाले, कृष्णपिंगल-वर्ण गाय, सत्र करनेवाले, राजा, संन्यासी तथा समुद्र को देखने से पवित्रता आती है, अतः इन्हें सदैव देखना चाहिए। मल-मूत्र त्याग प्रातःकाल उठने एवं उसके कृत्य के उपरान्त मल-मूत्र त्यागने का कृत्य है। अति प्राचीन सूत्रों एवं स्मृतियों में इसके विषय में पर्याप्त लम्बा-चौड़ा वर्णन है। बहुत-से नियम तो स्वच्छता-स्वास्थ्य-सम्बन्धी हैं, किन्तु प्राचीन ग्रन्थों में धर्म, व्यवहार-नियम, नैतिक-नियम,स्वास्थ्य एवं स्वच्छता के नियम एक-दूसरे से मिले हुए पाये जाते हैं, अतः इनका धर्मशास्त्रों में उपदिष्ट होना आश्चर्य का विषय नहीं है। अथर्ववेद (१३।११५६) में भी आया है-"मैं तुम्हारी जड़ को, जो तुम गाय को पैर से मारते हो, सूर्य की ओर मूत्र-त्याग करते हो, काट देता हूँ। तुम इसके आगे छाया न १०. ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानुः शशी भूमिसुतो बुषश्च । गुरुश्च शुकः शनिराहुकेतवः फुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम् ॥ वामनपुराण (१४१२३)। ११. देखिए नित्याचारपद्धति, पृ० १५-१६, आहिकप्रकाश, पृ० २१। ये श्लोक, यथा-महाभारत, स्वर्गारोहणिक पर्व ५।६०-६३, भारतसावित्री कहे जाते हैं। उनके प्रथम पाद हैं "मातापितसहस्राणि, हर्षस्थानसहखानि, ऊर्ध्वबाहुविरौम्येष, न जातु कामन्न भयान्न लोभात्।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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