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________________ धर्मशास्त्र र इतिहास ३५८ का कहना है" दिन के आठवें भाग में सूर्य मन्द हो जाता है, उस काल को कुतप कहा जाता है।" बाण ने कादम्बरी में दिन के आठों भागों के प्रथम भाग में सूर्य के प्रकाश को बढ़ते हुए एवं स्पष्ट होते हुए कहा है। महाभारत में छठे भाग में भोजन करने को देरी में भोजन करना माना गया है (बनपर्व १७६ १६, १८० १६, २९३ ९ एवं आश्वमेधिक पर्व ८०।२६-२७) । fe के अन्तर्गत प्रमुख विषय हैं— शय्या से उठना, शौच (शारीरिक शुद्धता), दन्तधावन ( दाँत स्वच्छ करना), स्नान, सन्ध्या, तर्पण, पंचमहायज्ञ (ब्रह्मयज्ञ एवं अतिथि सत्कार के साथ), अग्नि-सेवा, भोजन, घन-प्राप्ति, पढ़ना-पढ़ाना, सायं की सन्ध्या, दान, सोने जाना, निर्धारित समय पर यज्ञ करना । पराशरस्मृति ( १।३९ ) ने दिन के कर्तव्यों को इस प्रकार कहा है-सन्ध्या प्रार्थना, जप, होम, देव-पूजन, अतिथि सत्कार एवं वैश्वदेव — ये ही प्रमुख षट् कर्म हैं। मनु ( ४|१५२, अनुशासनपर्व १०४।२३ ) ने भी प्रमुख कर्मों का वर्णन किया है- " मल-मूत्र त्याग (मैत्र), दन्तधावन, प्रसाधन ( तेल- फुलेल), स्नान, अंजन लगाना एवं देवपूजन । " जैसा कि सूर्यसिद्धान्त ( मध्यमाधिकार, ३६ ) में आया है, दिन की गणना सूर्योदय से की जाती थी, किन्तु व्यावहारिक रूप में सूर्योदय के कुछ पूर्व या कुछ पश्चात् ही दिन का आरम्भ माना जाता रहा है।' ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सूर्योदय के पूर्व चार नाड़ियों (घटिकाओं ) से लेकर सूर्यास्त के उपरान्त चार नाड़ियों तक दिन का काल रहता है, अर्थात् जब कोई सूर्योदय के पूर्व स्नान कर लेता है तो वह स्नान सूर्योदय के उपरान्त वाले दिन का ही कहा जाता है । मनु ( ४/९२), याज्ञवल्क्य (१।११५) तथा कुछ अन्य स्मृतियों के अनुसार ब्राह्म मुहूर्त में उठना चाहिए, धर्म एवं अर्थ के विषय में, जिसे वह उस दिन प्राप्त करना चाहता है, उसे सोचना चाहिए, उसे दिन के शारीरिक कर्म के विषय में भी सोचना चाहिए और सोचना चाहिए वैदिक नियमों के वास्तविक अर्थ के विषय में । कुल्लूक तथा अन्य लोगों के मत से मनु (४/१२) द्वारा प्रयुक्त शब्द 'मुहूर्त' सामान्यतः समय का ही द्योतक है, न कि दो घटिकाओं की अवधि का, और ब्राह्य शब्द इसलिए प्रयुक्त है कि यह वही समय है जब कि किसी की बुद्धि एवं कविता बनाने की शक्ति अपने सर्वोच्च रूप में रहती है। पराशरमाधवीय ( १११, पृ० २२० ) के अनुसार सूर्योदय : पूर्व प्रथम प्रहर में दो मुहूर्त होते हैं, जिनमें प्रथम को ग्राह्य और दूसरे को रौद्र कहते हैं । पितामह (स्मृतिचन्द्रिका, पृ० ८२ में उद्धृत) के मत से रात्रि अन्तिम प्रहर 'ब्राह्म मुहूर्त' कहलाता है। बहुत प्राचीन काल से ही सूर्योदय के पूर्व उठ जाना, सामान्यतः सबके लिए किन्तु विशेषतः विद्यार्थियों के लिए उत्तम माना जाता रहा है। गौतम (२३।२१) ने लिखा है कि यदि ब्रह्मचारी सूर्योदय के उपरान्त उठे तो उसे प्रायश्चित्त रूप में बिना खाये पीये दिन भर खड़े रहकर गायत्री मन्त्र का जप करना चाहिए, इसी प्रकार यदि वह सूर्यास्त तक सोता रहे तो उसे रात्रि भर जगकर गायत्री जप करना चाहिए । यही बात आपस्तम्बसूत्र (२।५।१२।१३-१४ एवं मनु ( २।२२० - २२१ ) में मी पायी जाती है, और इनमें सूर्यास्त के समय सो जाने वाले को अभिनिर्मुक्त या अभिनिस्रुक्त कहा गया है । गोभिलस्मृति (पद्य में १।१३९ ) के अनुसार सोकर उठने पर आँखें धो लेनी चाहिए। ऋग्विधान में ऐसा आया है कि सोकर उठने के उपरान्त जल से आँखें धो लेनी ७. संध्या स्मानं जपी होमी देवतातिथिपूजनम् । आतिथ्यं वैश्वदेवं च षट् कर्माणि दिने दिने ॥ पराशर ११३९। ८. मैत्रं प्रसाधनं स्नानं वन्तधावनभञ्जनम् । पूर्वाह्न एव कुर्वीत देवतानां च पूजनम् ॥ मनु ४। १५२ । मित्र देवता गुदा के देवस्त हैं, अतः मंत्र का तात्पर्य है मूत्रपुरीषोत्सगं । ९. उपयानुदयं भानोर्भूमिसावनवासरः । सूर्यसिद्धान्त ( मध्यमाधिकार, ३६ ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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