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________________ पर्मशास्त्र का इतिहास स्नान) के पास जाते हैं, वे थालियाँ अलग रखते हैं, वे वायु के लिए बरतन ले जाते हैं, अतः उत्पन्न होने पर कन्या को अलग रखते हैं और आनन्द के साथ पुत्र को ग्रहण करते हैं।" किन्तु यहाँ तो केवल इतना ही संकेत है कि पुत्री की अपेक्षा पुत्र की आवभगत अधिक होती है, अर्थात् पुत्री के जन्म की अपेक्षा पुत्र के आगमन पर अधिक हर्ष प्रकट किया जाता है। यह बात ऐतरेय ब्राह्मण (३३।१) में वर्णित मावना का एक रूप मात्र है; "पत्नी वास्तव में मित्र है, पुत्री क्लेश (कृपण या अपमान) है, पुत्र सर्वोत्तम स्वर्ग में प्रकाश है। इस विषय में देखिए आदिपर्व (१५९।११) । आपस्तम्बगृह्यसूत्र (१५।१३) ने लिखा है कि यात्रा से लौटने पर पिता को पुत्री से भी कुशल वचन कहना चाहिए, हां अन्तर यह है कि पुत्र से मिलते समय उस का माथा चूमना चाहिए और दाहिने कान में कुछ मन्त्र पढ़ने चाहिए। मनु (९।२३२) के मत से राजा को चाहिए कि वह उस व्यक्ति को मृत्यु-दण्ड दे, जो स्त्री, बच्चे या ब्राह्मण को मार डालता है।" मनु (९।१३०) एवं अनुशासनपर्व (४५।११) के मत से; "जिस प्रकार पुत्र आत्मा है, उसी प्रकार पुत्री है, पिता की मृत्यु पर पुत्री के रहते हुए अन्य व्यक्ति उसका घन कैसे ले सकता है।" यही बात नारद (दायभाग, ५०) एवं बृहस्पति में भी पायी जाती है। कन्या के जन्म पर पिता जो प्रसन्न नहीं होता, उसका कारण है पुत्री के भविष्य के विषय में चिन्ता आदि, न कि पिता द्वारा अपनी पुत्री को पुत्र के समान प्यार नहीं करना। समाज ने सदैव स्त्रियों से उच्च नैतिकता की अपेक्षा की है, और पुरुषों के बहुत-से अनैतिक कर्मों को अपेक्षाकृत क्षम्यता की दृष्टि से देखा है (रामायण, उत्तरकाण्ड ९।१०-११)। प्राचीन साहित्य ने सभी स्थानों में स्त्रियों को भर्त्सना की दृष्टि से नहीं देखा है । पत्नी पति की अर्धांगिनी कही गयी है। ऋग्वेद (३५३।४) ने पत्नी को आराम का घर,कहा है (जायेदस्तम्)। यही बात दूसरे रूप में छान्दोग्योपनिषद् में पायी जाती है, “स्वप्न में स्त्री-दर्शन शुभ है, धार्मिक कृत्यों की सफलता का द्योतक है।" मनु (३५६-अनुशासनपर्व ४ ६।५) ने यद्यपि अन्यत्र स्त्रियों को कठोर वचन कहे हैं, किन्तु एक स्थान पर लिखा है-“जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता रहना पसन्द करते हैं, जहां उनका सम्मान नहीं होता, वहाँ धार्मिक कृत्यों का लोप हो जाता है।" कुमारियों को पूत एवं शुभ कहा गया है। रघुवंश में आया है कि जब राजा राजधानी से निकलते थे तो कुमारियाँ भुने धान से उनका अभिनन्दन करती थीं (रघुवंश २।१०) । शौनककारिका ने कुमारी को आठ शुभ पदार्थों में गिना है। द्रोणपर्व (८२।२०-२२) में आया है कि युद्ध-यात्रा के पूर्व अर्जुन ने शुभ वस्तुओं में अलंकृत कुमारी का भी स्पर्श किया था। गोमिलस्मृति (२।१६३) के अनुसार प्रातःकाल उठते ही सौभाग्यवती नारी का दर्शन कठिनाइयों को भगाने वाला होता है। वामनपुराण (१४१३५-३६) के अनुसार घर छोड़ते समय अन्य पदार्थों के साथ ब्राह्मण-कुमारियों का दर्शन भी शुभ है। अब हम विवाह के शुभ कालों का वर्णन करेंगे। ऋग्वेद (१०८५।१३) के विवाहसूक्त में ये शब्द आये हैं"अघाओं पर गायें संहत की जाती हैं और कन्या (विवाहित होने पर पिता के घर से) फल्गुनियों में ले जायी जाती है।" गायें मधुपर्क में संहत की गयी और विवाह के दिन वर को दी गयीं। मघा नक्षत्र के उपरान्त दो फल्गुनी तुरन्त आ जाते हैं। आपस्तम्बगृह्यसूत्र (३।१-२) में भी उपर्युक्त कथन की ध्वनि मिलती है-"मधाओं में गायें स्वीकार की जाती हैं और फल्गुनियों में (विवाहित) कन्या (पति के घर को) ले जायी जाती है। उपर्युक्त ऋग्वेदीय सूक्त में 'अघा' का तात्पर्य 'मघा' होता है। आश्वलायनगृह्यसूत्र (११४१) के अनुसार सूर्य के उत्तरायण में, शुक्ल पक्ष में, किसी १८. सखा ह जाया कृपणं हि दुहिता ज्योतिर्ह पुत्रः परमे व्योमन् । ऐतरेय ब्राह्मण (३३३१) । आत्मा पुत्रः सखा भार्या कृच्छं तु दुहिता किल । आनिपर्व १५९।११। मिलाइए मनु (४.१८४-१८५)-'भार्या पुत्रः स्वका तनः।। छाया स्वो वासवर्गश्च दुहिता कृपणं परम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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