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________________ कन्या का शुभास्पदत्व और विवाह-निश्चय २९३ लेंगे, यदि कोई ऐसा करेगा तो वह राजा द्वारा दण्डित होगा और ब्राह्मणजाति से च्युत हो जायगा। लगभग १८०० ई० में पेशवा ने ऐसी आज्ञा निकाली कि यदि कोई कन्या-विक्रय करेगा तो उसे तथा देनेवाले एवं अगुआ को धन-दण्ड देना पड़ेगा। आधुनिक काल में कुछ जातियों एवं कुछ शूद्रों में कुछ धन लेने की जो प्रथा है, वह केवल विवाह-व्ययभार वहन के लिए अथवा कन्या को दे देने के लिए है। . बच्चों पर पिता का क्या अधिकार है ? विवाह में कन्या-विक्रम का प्रश्न इस प्रश्न से सम्बन्धित-सा है। ऋग्वेद (११११६।१६) में ऋशाश्व की गाथा प्रसिद्ध है; ऋजाश्व के पिता ने उसकी आँखें निकाल लीं, क्योंकि उसने (ऋषाश्व ने) एक सौ भेड़ें एक भेड़िया को दे दी थीं। लगता है, यहां कोई रूपक है, क्योंकि ऐसी बात अस्वाभाविक-सी लगती है। शुनश्शेप (ऐतरेय ब्राह्मण ३३) की आख्यायिका से पता चलता है कि पिता अपने पुत्र को बेचे, ऐसा बहुत कम होता था। वसिष्ठधर्मसूत्र (१७।३०-३१) के अनुसार शुनश्शेप का वृत्तान्त पुत्र-क्रय का उदाहरण है (पुत्र १२ प्रकार के होते हैं)। इसी सूत्र (१७।३६-३७) ने यह भी लिखा है कि 'अपविद्ध' पुत्र वह पुत्र है जो, अपने माता-पिता द्वारा त्याग दिया जाता है और दूसरे द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है। यही बात मनु (९।१७१) में भी पायी जाती है। वसिष्ठधर्मसूत्र (१५।१-३) के कथनानुसार बच्चों पर माता-पिता का सम्पूर्ण अधिकार है, वे उन्हें दे सकते हैं, बेच सकते हैं या छोड़ सकते हैं, क्योंकि उन्हीं के शुक्र-शोणित से बच्चों की उत्पत्ति होती है। किन्तु यदि एक ही पुत्र हो तो वह न बेचा जा सकता है और न खरीदा जा सकता है। मनु (८४१६) एवं महाभारत (उद्योगपर्व ३३।६४) के अनुसार स्त्री, पुत्र एवं दास धनहीन होते हैं। क्योंकि वे जो कमाते हैं वह उनका है, जिनके वे होते हैं। मनु (५।१५२) के मत से "(कन्या के पिता की ओर से) जो भेट मिलती है, वह पति के स्वामित्व की द्योतक होती है।" क्रमशः कुछ विचारों के उत्पन्न हो जाने से पिता के कठोर स्वामित्व का बल कम होता चला गया, यथा-पूत्र स्वयं पिता के रूप में बार-बार उत्पन्न होता है, क्योंकि पुत्र श्राद्ध के समय पिता तथा पूर्वजों को पिण्डदान देकर आध्यात्मिक लाभ कराता है। इस प्रकार पिता का पुत्र पर जो अत्यधिक स्वामित्व था, वह शिथिल पड़ गया। कौटिल्य (३॥१३) ने लिखा है कि अपने बच्चों को बेचकर या बन्धक रखकर म्लेच्छ लोग पाप के भागी नहीं होते, किन्तु आर्य दास की श्रेणी में नहीं लाया जा सकता। इस विषय में और देखिए याज्ञवल्क्य (२११७५), नारद (दत्ताप्रदानिक, ४), कात्यायन (स्मृतिचन्द्रिका द्वारा उद्धृत, पृ० १३२), याज्ञवल्क्य (२।११८-११९), मनु (८।३८९), याज्ञवल्क्य (२।२३४); विष्णुधर्मसूत्र (५। ११३-११४), कौटिल्य (३।२०), मनु (८।२९९-३००)। क्या पत्नी एवं बच्चों पर स्वामित्व होता है ? जैमिनि (६।७।१-२) ने विश्वजित् यज्ञ के बारे में लिखते समय कहा है कि इस में अपने माता-पिता एवं अन्य सम्बन्धियों को छोड़कर सब कुछ दान कर दिया जाता है। मिताक्षरा (याज्ञ० २।१७५) के अनुसार यद्यपि पत्नी या बच्चे भेट रूप में किसी को नहीं दिये जा सकते, तथापि उन पर स्वामित्व रहता है। यही बात वीरमित्रोदय (पृ० ५६७) में भी पायी जाती है ! बालहत्या के विषय में भी कुछ लिख देना आवश्यक प्रतीत होता है। विख्यात समाजशास्त्री वेस्टरमार्क ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'आरिजिन एण्ड डेवलपमेन्ट आव मॉरल आइडिया' (जिल्द १, १९०६) में प्राचीन एवं आधुनिक काल के असभ्य एवं सभ्य देशों में बालहत्या के विषय पर प्रकाश डाला है। ग्रीस देश के स्पार्टा प्रान्त में शक्तिशाली एवं स्वस्थ लड़कों की प्राप्ति के लिए एवं राजपूतों में कुल-सम्मान एवं विवाह में धन-व्यय रोकने के लिए बाल-हत्याएं होती थीं। वेस्टरमार्क का यह वचन कि वैदिक काल में बाल-हत्याएं होती थीं, भ्रामक है। ऋग्वेद (२।२९।१) का "आरे मत्कर्त रहसूरिवागः" का संकेत बालहत्या की ओर नहीं है, बल्कि यह तो कुमारी के भ्रूण त्याग की ओर संकेत है, क्योंकि ऐसी सन्तान गुप्त प्रेम की सूचक है और असामाजिक मानी जाती रही है। कुछ यूरोपियन विद्वान्, जिनमें जिम्मर एवं डेलबुक मुख्य हैं, तैत्तिरीय संहिता (५।१०।३) का उल्लेख करते हैं जिसमें आया है-"वे अवभृष (अन्तिम यशिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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