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धर्मशास्त्र का इतिहास
३१), भारद्वाजगृह्य (२०१८) ने 'समावर्तन' शब्द का प्रयोग किया है। खादिरगृह्य० (३३१११ तथा ११३।२-३), गोभिल (३१४१७) ने 'आप्लवन' (अर्थात् स्नान) शब्द का प्रयोग किया है। मनु (३।४) ने 'स्नान' तथा 'समावर्तन' दोनों शब्दों का प्रयोग किया है-"द्विज गुरु से आज्ञापित होने पर स्नान करके घर लौट सकता है और अपने गृह्यसूत्र के नियमों के अनुसार किसी क्न्या से विवाह कर सकता है।" अपराक ने स्नान एवं समावर्तन में अन्तर बताया हैस्नान का तात्पर्य है विद्यार्थी जीवन की परिसमाप्ति, अतः जो व्यक्ति जीवन भर ब्रह्मचारी रहना चाहना है वह यह संस्कार नहीं भी कर सकता। समावर्तन का शाब्दिक अर्थ है “गुरुगृह से अपने गृह को लौट आना।" यदि कोई बालक अपने पिता से ही पढ़ता है तो शाब्दिक अर्थ में उसका समावर्तन नहीं हो सकता। मेघातिथि (मनु ३।४ पर) ने लिखा है कि समावर्तन विवाह का कोई आवश्यक अंग नहीं है, अतः जो पितृगृह में ही वेदाध्ययन करता है, वह बिना समावर्तन के ही विवाह के बन्धन में प्रवेश कर सकता है। कुछ लोगों के कथनानुसार समावर्तन विवाह का अंग है और उसमें संस्कारमय स्नान की प्रथा पायी जाती है।
आपस्तम्बगृह्य० (१२।१) “वेदमधीत्य स्नास्यन्" (वेदाध्ययन के उपरान्त स्नान-क्रिया में प्रविष्ट होते समय) नामक शब्दों के साथ इस संस्कार का वर्णन करता है। पतञ्जलि के महाभाष्य (जिल्द १,पृ० ३८४) में आया है कि व्यक्ति वेदाध्ययन के उपरान्त स्नान-कर्म करके गुरु से आज्ञा लेकर सोने के लिए खाट प्रयोग में ला सकता है।
दैदिक साहित्य में दोनों शब्दों का प्रयोग हुआ है। छान्दोग्योपनिषद् (४।१०।१) में हम पढ़ते हैं कि उपकोसल कामलायन सत्यकाम जाबाल के शिष्य होकर गुरु के गृह्य अग्नि की सेवा १२ वर्षों तक करते रहे। गुरु ने अन्य शिष्यों को तो बिदा कर दिया, किन्तु उपकोसल कामलायन को रोक लिया। इससे स्पष्ट है कि उपनिषद् को 'समावर्तन' शब्द का ज्ञान था। शतपथब्राह्मण (११३॥३७) का कहना है कि स्नान-कर्म के उपरान्त भिक्षा नहीं मांगनी चाहिए। इसी ब्राहाण (१२।१।१।१०) ने स्नातक एवं ब्रह्मचारी के अन्तर को समझाया है। स्नातक के विषय में और देखिए आपस्तम्बधर्मसूत्र (२०६।१४।१३), ऐतरेयारण्यक (५।३।३), आश्वलायनगृह्य० (३।९।८) आदि।
सूत्रकारों ने वेदाध्ययनोपरान्त ब्रह्मचारी के लिए स्नान-क्रिया का वर्णन किया है। अध्ययन के उपरान्त गुरु को निमन्त्रित कर उनसे दक्षिणा मांगने की प्रार्थना की जाती है और गुरुद्वारा आदेश मिल जाने पर स्नान किया जाता है। इससे स्पष्ट है कि वेदाध्ययन तथा अन्य शास्त्रों के अध्ययन के उपरान्त स्नान की परिपाटी सम्पादित की जाती है तथा बिना अध्ययन समाप्त किये शिष्य को अपने गृह लौट आने की आज्ञा मिल सकती है। इस विषय में देखिए पारस्करगृह्यसूत्र (२।६)। स्नान किये हुए व्यक्ति को स्नातक कहा जाता है। पारस्करगृह्य० (२५), गोमिल (३।५।२१-२२), बौधायन गृह्य परिभाषा सूत्र (१।१५), हारीत आदि ने स्नातकों को तीन कोटियों में बांटा है, यया (१) विद्यास्नातक (पा वेदस्नातक), (२) व्रतस्नातक तथा (३) विद्यावतस्नातक (या वेबर स्नातक)। जिसने वेदाध्ययन समाप्त कर लिया हो, किन्तु व्रत न किये हों, वह विद्यास्नातक कहलाता है; जिसने व्रत कर लिये हों किन्तु वेदाध्ययन समाप्त न किया हो, वह व्रत-स्नातक कहा जाता है, किन्तु जिसने व्रत एवं वेद दोनों की परिसमाप्ति कर ली हो, वह विद्यावतस्नातक कहा जाता है। इस विषय में हमें याज्ञवल्क्य (११५१) में भी सकेत मिलता है। स्नातकों के प्रकारों के विषय में गेधातिथि (मनु ४।३१), गोभिल (३१५।२३), आपस्तम्बधर्मसूत्र (१११११३०११-५) का अवलोकन किया जा सकता है।
___स्नान तथा विवाह कर लेने के बीच लम्बी अवधि पायी जा सकती है। इस अवधि में व्यक्ति स्नातक कहा जाता है। किन्तु विवाहोपरान्त व्यक्ति गृहस्थ कहलाता है (बौधायनगृह्यसूत्र १।१५।१०)।
हिरण्यकेशिगृह्यसूत्र (१।९।१३), बौधायनगृह्मपरिभाषा (१३१४), पारस्करगृह्यसूत्र (२।६) एवं गोभिलगृह्यसूत्र (३।४-५) में समावर्तन की विधि विस्तार से वर्णित है। हम यहाँ संक्षेप में आश्वलायनगृह्म० (३१८ एवं
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