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________________ नामकरण संस्कार के लिए शान्ति-कृत्यों का विस्तार के साथ वर्णन किया है। इन बातों पर यहाँ प्रकाश नहीं डाला जायगा। कुछ बातों पर हम शान्ति एवं मुहूर्त के प्रकरणों में पढ़ लेंगे। आधुनिक काल में पांचवें या छठे दिन कुछ कृत्य किये जाते हैं, जिनके विषय में सूत्रों में कोई चर्चा नहीं हुई है। सम्भवतः ये कृत्य पौराणिक हैं, क्योंकि निर्णयसिन्धु, संस्कारमबूख तथा अन्य ग्रन्थों में एतद्विषयक श्लोक मार्कण्डेय पुराण, व्यास एवं नारद के ही पाये जाते हैं। पाँचवें या छठे दिन (छठी के दिन) पिता या अन्य सम्बन्धी लोग रात्रि के प्रथम प्रहर में स्नान करते हैं, तब गणेश तथा अन्य जन्मदा नामक गौण देवताओं का मुट्ठी भर चावलों में आवाहन करते हैं, इसी प्रकार षष्ठीदेवी एवं भगवती (दुर्गा) का भी आवाहन किया जाता है और सोलह उपचारों के साथ उनकी पूजा की जाती है। तब एक या कई ब्राह्मणों को ताम्बल एवं दक्षिणा दी जाती है और घर तथा कुटुम्ब के लोग रात्रि भर गाना गा-गाकर जागते हैं (भूत-प्रेतों को भगाने के लिए)। मार्कण्डेयपुराण में आया है कि कुछ मनुष्यों को अस्त्र-शस्त्र से सज्जित होकर रात्रि भर रक्षा करनी चाहिए। कालान्तर में बुरे नक्षत्रों के प्रभावों की मर्यादा इतनी बढ़ा दी गयी कि कतिपय जन्मों में कुछ शिशुओं को त्याग देने तथा आठ वर्ष तक मुख न देखने तक की व्यवस्था की गयी। इस विषय में नित्याचारपद्धति (पृ० २४४-२५५) पठनीय है। उत्थान (बच्चे का शय्या से उठना)-वैखानस (३।१८) के अनुसार १०वें या १२वें दिन पिता केश बनवाता है, स्नान करता है, गृह स्वच्छ कराता है, तथा किसी अन्य गोत्र वाले व्यक्ति द्वारा जातकाग्नि में पृथिवी के लिए यज्ञ कराता है। इसके उपरान्त औपासन (गृह्याग्नि) को मँगाता है, धाता को आहुति देता है, वरुण को पाँच आहुति देता है और ब्राह्मणों को खिलाता है। शांखायनगृह्यसूत्र (११२५) ने इस विषय में बड़ा विस्तार किया है जिसका उल्लेख यहाँ आवश्यक नहीं है। इस प्रकार सूकताग्नि हट जाने पर औपासन (गृह की अग्नि) की स्थापना होती है और बच्चे की माँ बच्चे के बिस्तर से उठने पर अन्य पवित्र कामों के योग्य समझी जाने लगती है। नामकरण जैसा कि उपर्युक्त विवरण से व्यक्त हो चुका है, यह संस्कार शिशु के नाम रखने से सम्बन्धित है। विषय में विस्तार के साथ निम्न ग्रन्थ पठनीय हैं-~~आपस्तम्बगृह्यसूत्र (१५।८-११), आश्वलायनगृह्यसूत्र (१।१५।४-१०), बौधायनगृह्यसूत्र (२।१।२३-३१), भारद्वाजगृह्यसूत्र (११२६), गोभिलगृह्यसूत्र (२।८१८-१८), हिरण्यकेशिगृह्यसूत्र (२।४।६-१५), काठकगृह्यसूत्र (३४।१-२ एवं ३६।३-४), कौशिकसूत्र (५८।१३-१७), मानवगृह्यसूत्र (१।१८।१), शांखायनगृह्यसूत्र (१।२४।४-६), वैखानस (३।१९) एवं वाराहगृह्यसूत्र (२)। नाम रखने की तिथि के विषय में बड़ा मतभेद रहा है। प्राचीन साहित्य, मूत्रों एवं स्मृतियों में अनेक तिथियों की चर्चा है। कुछ मत निम्न हैं (क) गोमिल एवं खादिर के मतानुसार सोष्यन्तीकर्म में भी नाम रखा जा सकता है। (ख) बृहदारण्यकोपनिषद्, आश्वलायन, शांखायन, काठक आदि के मत से जन्म के दिन ही नाम रखने की व्यवस्था है। शतपथब्राह्मण ने भी ऐसा ही कहा है, पतञ्जलि के महाभाष्य में भी ऐसी ही चर्चा है--"लोके तावन्मातापितरौ पुत्रस्य जातस्य संवृतेऽवकाशे नाम कुर्वाते देवदत्तो यशदत्त इलि। तयोरुपचारादन्येऽपि जानन्तीयमस्य सज्ञेति।" ८. तस्मात्पुत्रस्य जातस्य नाम कुर्यात्पाप्मानमेवास्य तपहास्यपि द्वितीयमपि तृतीयम् । शतपथ० ६।१।३।९। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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