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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास के दो मन्त्र, ऋग्वेद (२॥३२॥४-५) के दो तथा “नेजमेष०" नामक तीन मन्त्र (ऋग्वेद १०।१८४ के पश्चात् वाला एक खिलसूक्त एवं आपस्तम्बीय मन्त्रपाठ १२१२।७-९)। तब संस्कारकर्ता स्त्री के (मस्तक के ऊपर के) बालों को, कच्चे फलों की सम संख्या से तथा साही (शल्लकी) के तीन रंग वाले काटे तथा कुश के तीन गुच्छों के साथ ऊपर करता है और चार बार "भूर्भुवः, स्वः, ओम्" का उच्चारण करता है। इसके उपरान्त वह दो वीणावादकों को सोम राजा की प्रशंसा में गाने का आदेश देता है। वीणावादक यह गाथा गाते हैं-'हमारे राजा सोम मानव जाति को आशीर्वाद दें। इस (नदी) का पहिया (राज्य) स्थिर है, जहाँ वे रहते हैं। आप उन्हें उनकी पति एवं पुत्र वाली बूढ़ी ब्राह्मण स्त्रियाँ जो कहती हैं करने दीजिए।' इस कृत्य के बारे में आपस्तम्बीय मन्त्रपाठ में जो १३ मन्त्र आते हैं, वे सभी ऋग्वेद, अथर्ववेद एवं तैत्तिरीय संहिता में पाये जाते हैं। - इस संस्कार में सर्वप्रथम मन्त्रों के साथ होम होता है। किन्तु इस संस्कार का केवल सामाजिक एवं औत्सविक महत्व है, क्योंकि यह केवलं गर्भिणी को प्रसन्न रखने के लिए है। गृह्यसूत्रों में इसके विस्तार के सम्बन्ध में मतैक्य नहीं है। दो-एक मत इस प्रकार हैं-काठक ने तीसरे, मानव ने तीसरे, छठे या आठवें, आश्वलायन ने चौथे, आपस्तम्ब एवं हिरण्यकेशी ने क्रम से चौथे एवं छठे तथा पारस्कर, याज्ञवल्क्य (११११), विष्णुधर्मसूत्र (२८१३) और शंख ने छठे, आठवें मास को इसके लिए माना है। स्मृतिचन्द्रिका में उद्धृत शंख-मत के अनुसार सीमन्तोन्नयन संस्कार भ्रूण के हिलने-डुलने से लेकर जन्म होने तक किया जा सकता है। आश्वलायन, शांखायन एवं हिरण्यकेशी गृह्यसूत्रों के अनुसार चन्द्र का किसी पुरुष नक्षत्र के साथ जुड़ा होना परम आवश्यक है। हिरण्यकेशी ने कहा है कि संस्कार गोल स्थल में होना चाहिए। आश्वलायन ने गर्भवती स्त्री को बैल के चर्म (खाल) पर बैठाया है, किन्तु पारस्कर ने मुलायम कुर्सी या आसन की व्यवस्था की है। कितनी आहुतियाँ दी जायें, इस विषय में भी मतैक्य नहीं है। गोभिल, खादिर, भारद्वाज, पारस्कर एवं शांखायन ने पके चावल और उस पर धृत या तिल रखने की व्यवस्था दी है और गर्मिणी को उसे देखने को कहा है। गर्भिणी से पूछा जाता है कि क्या देख रही हो? वह कहती है कि मैं सन्तान देख रही हूँ। अधिकांश में सभी गृह्यसूत्रों ने यह कहा है कि स्त्री के केशों को ऊपर उठाते समय पति कच्चे फलों के गुच्छे (गोभिल, पारस्कर, शांखायन ने इसे उदुम्बर फल माना है) का, साही के तीन धारी (रंग) वाले काँटे का तथा तीन कुशों का प्रयोग करता है। इस प्रकार के विस्तार में बहुत-सी विभिन्नताएँ पायी जाती हैं, कोई किसी फल का नाम बताता है, कोई तीन बार तो कोई छ: बार केश उठाने को कहता है, कोई माला पहनाने को कहता है तो कोई आभूषण की चर्चा करता है। ___ मानवगृह्यसूत्र (१।१२।२) ने सीमन्तोन्नयन की चर्चा विवाह-संस्कार में भी की है। लघु-आश्वलायन (४१८-१६) ने आश्वलायनगृह्यसूत्र का बड़ा सुन्दर संक्षेप किया है। आपस्तम्ब, बौधायन, भारद्वाज एवं पारस्कर ने स्पष्ट लिखा है कि यह केवल एक बार प्रथम गर्भाधान के समय मनाया जाना चाहिए। विष्णुधर्मसूत्र के अनुसार यह संस्कार स्त्री का है, किन्तु अन्य लोगों ने इसे भ्रूण का माना है और इसे प्रति गर्भाधान के लिए आवश्यक बतलाया है। कालान्तर में यह संस्कार समाप्तप्राय हो गया, क्योंकि मनु ने इसका नाम तक नहीं लिया है। याज्ञवल्क्य ने नाम ले लिया है। विष्णुबलि वसिष्ठ के अनुसार यह कृत्य गर्भाधान के आठवें मास में किया जाना चाहिए। यह उसी मत से जब शुक्ल पक्ष के चन्द्र के साथ श्रवण ,रोहिणी या पुरुष नक्षत्र हो और तिथियाँ हों दूसरी, सातवीं या द्वादशी, तब किया जाना चाहिए। भ्रूण की बाधाओं को दूर करने तथा सन्तानोत्पत्ति में रक्षा के लिए यह कृत्य किया जाता है। इसे प्रत्येक For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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