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________________ वर्षों के कर्तव्य, अयोग्यताएं एवं विशेषाधिकार १५३ ब्राह्मणों के प्रकार —— ब्राह्मणों को वृत्तियों के अनुसार कई प्रकारों में बाँटा गया है। अत्रि ( ३७३-३८३) ने ब्राह्मणों के दस प्रकार बताये हैं- (१) देव-ब्राह्मण ( जो प्रति दिन स्नान, सन्ध्या, जप, होम, देव-पूजन, अतिथि सत्कार एवं वैश्वदेव करता है), (२) मुनि-ब्राह्मण (जो वन में रहता है, कन्द, मूल एवं फल पर जीता है और प्रति दिन श्राद्ध करता है), (३) द्विज-ब्राह्मण (जो वेदान्त पढ़ता है, सभी प्रकार के अनुरागों एवं आसक्तियों को त्याग चुका है और सांख्य एवं योग के विषय में निमग्न है), (४) क्षत्र-ब्राह्मण ( जो युद्ध करता है), (५) वैश्यब्राह्मण (जो कृषि, पशु-पालन एवं व्यापार करे), (६) शूद्र-ब्राह्मण (जो लाख, नमक, कुसुम्भ के समान रंग, दूध, घी, मधु, मांस बेचता हो), (७) निषाद-ब्राह्मण (जो चोर एवं डाकू हो, चुगली करने वाला मछली एवं मांस खाने वाला हो), (८) बाह्मण (जो ब्रह्म के विषय में कुछ भी न जाने और केवल यज्ञोपवीत अथवा जनेऊ धारण करने का अहंकार करे), (९) म्लेच्छ ब्राह्मण (जो बिना किसी अनुशय के कुओं, तालाबों एवं वाटिकाओं पर अवरोध खड़ा करे या उन्हें नष्ट करे ) तथा (१०) चाण्डाल-ब्राह्मण ( जो मूर्ख है, निर्दिष्ट क्रिया -संस्कारों से शून्य एवं सभी प्रकार धर्म चारों से अछूता एवं क्रूर है। अत्रि ने परिहासपूर्ण ढंग से यह भी कहा है कि वेदविहीन लोग शास्त्र ( व्याकरण, न्याय आदि) पढ़ते हैं, शास्त्रहीन लोग पुराणों का अध्ययन करते हैं, पुराणहीन लोग कृषक होते हैं, जो इनसे भी गये बीते हैं, भागवत ( शिव, विष्णु के पुजारी या भक्त) होते हैं।" अपरार्क ने देवल की उद्धृत करते हुए ब्राह्मणों को आठ प्रकारों में बांटा है-- (१) जाति ब्राह्मण (जो केवल ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुआ हो, जिसने वेद का कोई भी अंश न पढ़ा हो, और न ब्राह्मणोचित कोई कर्तव्य करता हो), (२) ब्राह्मण (जिसने वेद का कोई अंश पढ़ लिया हो ), (३) श्रोत्रिय ( जिसने छ: अंगों के साथ किसी एक वैदिक शाखा का अध्ययन किया हो और ब्राह्मणों के छः कर्तव्य करता हो), (४) अनूचान (जिसे वेद एवं वेदांगों का अर्थ ज्ञात हो, जो पवित्र हृदय का हो और अग्निहोत्र करता हो), (५) भ्रूण ( जो अनूचान होने के अतिरिक्त यज्ञ करता हो, और यज्ञ के उपरान्त जो बचे उसे अर्थात् प्रसाद खाता हो), (६) ऋषिकल्प (जिसे सभी लौकिक ज्ञान एवं वैदिक ज्ञान प्राप्त हो गये हों, और जिसका मन संयम के भीतर हो), (७) ऋषि (जो अविवाहित हो, पवित्र जीवन वाला हो, सत्यवादी हो और वरदान या शाप देने योग्य हो), (८) मुनि (जिसके लिए मिट्टी या सोना बराबर मूल्य रखते हों, जो निवृत्त हो, आसक्ति या अनुराग से विहीन हो आदि) । " शातातप ने अब्राह्मणों (निन्दित ब्राह्मणों) के छः प्रकार बताये हैं । " अनुशासनपर्व ( ३३|११ ) ने भी कई प्रकार बताये हैं । ३२. वे विहीनाश्च पठन्ति शास्त्रं शास्त्रेण हीनाश्च पुराणपाठाः । पुराणहीनाः कृषिणो भवन्ति भ्रष्टास्ततो भागवता भवन्ति ॥ अत्रि० ३८४ ॥ ३३. देवल के श्लोक दानरत्नाकर में भी उद्धृत मिलते हैं। वैखानसगृह्य (१।१) ने इन आठ प्रकारों का संक्षिप्त विवेचन किया है-"संस्कृतायां ब्राह्मण्यां ब्राह्मणाज्जातमात्रः पुत्रमात्र: ( पुत्रः मात्रः ? ) । उपनीतः सावित्र्यध्ययनाद् ब्राह्मणः। वेवमषीत्य शारीरं पाणिग्रहणात्संस्कृतः पाकयज्ञैरपि यजन् श्रोत्रियः । स्वाध्यायपर आहिताग्निर्हविर्यज्ञरप्यनूचानः । सोमयज्ञंरपि भ्रूणः । संस्काररेतरुपेतो नियमयमाभ्यामृषिकल्पः । सांगचतुर्वेदतपोयोगादृषिः । नारायणपरायणो निर्द्वन्द्वो मुनिरिति । संस्कारविशेषात्पूर्वात्पूर्वात्परो वरीयानिति विज्ञायते ।" ३४. अब्राह्मणाश्च षट् प्रोक्ता ऋषिः शातातपोऽब्रवीत् । आद्यो राजाश्रयस्तेषां द्वितीयः क्रयविक्रयी ॥ तृतीयो बहुयाज्यः स्याच् चतुर्थो प्रामयाजकः । पञ्चमस्तु भूतस्तेषां ग्रामस्य नगरस्य च । अनागतां तु यः पूर्वा सादित्यां चैव पश्चिमाम् । नोपासीत द्विजः संध्यां स षष्ठोऽब्राह्मणः स्मृतः ॥ ऐतरेय ब्राह्मण (३1५ ) के भाष्य में सायण ने कुछ उलटफेर के साथ इसे उद्धृत किया है, यथा “चतुर्थोऽश्रौतयाजकः । पंचमो ग्रामयाजी च षष्ठो ब्रह्मबन्धुः स्मृतः ॥ " धर्म २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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