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________________ १०८ धर्मशास्त्र का इतिहास भारतवर्ष के पूर्व, दक्षिण एवं पश्चिम में समुद्र एवं उत्तर में हिमालय है। विष्णुपुराण (२।३।१) में भी यही उल्लेख है। मत्स्य, वायु आदि पुराणों में भारतवर्ष कुमारी अन्तरीप से गंगा तक कहा गया है। जैमिनि के भाष्य में शबर ने कहा है कि हिमालय से लेकर कुमारी तक भाषा एवं संस्कृति में एकता है (१०।११३५ एवं ४२) । मार्कण्डेय (५३।४१), वायु (भाग १,३३१५२) तथा कुछ अन्य पुराणों के अनुसार स्वायंभुव मनु के वंश में उत्पन्न ऋषभ के पुत्र मरत के नाम पर भारतवर्ष नाम पड़ा है, किन्तु वायु के एक अन्य उल्लेखानुसार (भाग २, अ० ३७।१३०) दुष्यन्त एवं शकुन्तला के पुत्र भरत से भारतवर्ष हुआ। विष्णुपुराण ने भारतवर्ष को स्वर्ग एवं मोक्ष की प्राप्ति के लिए कर्मभूमि माना है (कर्मममिरियं स्वर्गमपवर्ग च गच्छताम) । वायपराण ने यही बात दुहरायी है। एक मनोरंजक बात यह है कि भारतवर्ष के वे प्रदेश, जो आज अपने को अति कट्टर मानते हैं, आदित्यपुराण द्वारा (स्मृतिचन्द्रिका के उद्धरण द्वारा) वास ने गये हैं, यहां तक कि वहाँ धर्मयात्रा को छोड़कर कभी भी ठहरने पर जातिच्युतता का दोष प्राप्त होता था तथा प्रायश्चित्त करना पड़ता था ! आदिपुराण (आदित्यपुराण ? ) में आया है कि आर्यावर्त के रहनेवालों को सिन्धु, कर्मदा (कर्मनाशा ? ) या करतोया को धर्मयात्रा के अतिरिक्त कभी भी नहीं पार करना चाहिए; यदि वे ऐसा करें तो उन्हें चान्द्रायण व्रत करना चाहिए। स्मृतिकारों एवं भाष्यकारों ने आर्यावर्त या भरतवर्ष या भारतवर्ष में व्यवहृत वर्णाश्रम-धर्मों तक ही अपने को सीमित रखा है। उन्होंने इतर लोगों के आचार-व्यवहार को मान्यता बहुत ही कम दी है; याज्ञवल्क्यस्मृति (२।१९२) ने कुछ छूट दी है। २०. काञ्चीकाश्यपसौराष्ट्रदेवराष्ट्रान्ध्रमत्स्यजाः। कविरी कोंकणा हूणास्ते देशा निन्दिता भृशम् ॥ पञ्चनयो......वसेत् ॥ ....सौराष्ट्रसिन्धुसौवीरमावन्त्यं दक्षिणापथम् । गत्वतान् कामतो देशान् कालिंगांश्च पतेद् द्विजः॥ स्मृतिचन्द्रिका द्वारा उद्धृत आदित्यपुराण ; आदिपुराण--आर्यावर्तसमुत्पन्नो द्विजो वा यदि वाऽद्विजः। कर्मदासिन्धुपारं च करतोयां न लंघयेत् । आर्यावर्तमतिक्रम्य विना तीर्थक्रियां द्विजः । आज्ञां चैव तथा पित्रोरेन्ववेन विशुध्यति ॥ परिभाषाप्रकाश, पृ० ५९। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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