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________________ अध्याय १ धर्मशास्त्र के विविध विषय अति प्राचीन काल से ही धर्मशास्त्र के अन्तर्गत बहुत-से विषयों की चर्चा होती रही है। गौतम, बौधायन, आपस्तम्ब एवं वसिष्ठ के धर्मसूत्रों में मुख्यतः निम्नलिखित विषयों का अधिक या कम विवेचन होता रहा है-कतिपय वर्ण (वर्ग); आश्रम, उनके विशेषाधिकार, कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व; गर्भाधान से अन्त्येष्टि तक के संस्कार; ब्रह्मचारीकर्तव्य (प्रथम आश्रम); अनध्याय (अवकाश के दिन, जब वेदाध्ययन नहीं होता था); स्नातक (जिसका प्रथम आश्रम समाप्त हो जाता था) के कर्तव्य; विवाह एवं तत्सम्बन्धी अन्य बातें; गृहस्थ-कर्तव्य (द्वितीय आश्रम); शौच; पन्च महायज्ञ; दान; मक्ष्यामध्य; शुद्धि, अन्त्येष्टि; श्राद्ध; स्त्रीधर्म; स्त्रीपुंसधर्म; क्षत्रियों एवं राजाओं के धर्म; व्यवहार (कानून-विधि, अपराध, दण्ड, साझा, बॅटवारा, दायमाग, गोद लेना, जुआ आदि); चार प्रमुख वर्ण, वर्णसंकर तथा उनके व्यवसाय ; आपद्धर्म ; प्रायश्चित्त; कर्मविपाक ; शान्ति; वानप्रस्थ-कर्त्तव्य (तृतीय आश्रम); संन्यास (चतुर्थ आश्रम)। इन विषयों की चर्चा सभी धर्मसूत्रों ने एक समान ही नहीं की है, और न सबको एक सिलसिले में रखा है; किसी में कोई विषय मध्य में है तो वही किसी में अन्त में है। धर्मशास्त्र-सम्बन्धी कुछ ग्रन्थों में व्रतों, उत्सर्गों एवं प्रतिष्ठा (जन-कल्याण के लिए मन्दिर, धर्मशाला, पुष्करिणी आदि का निर्माण), तीर्थों, काल आदि का सविस्तर वर्णन हुआ है। किन्तु धर्मसूत्रों एवं स्मृतियों ने इन पर बहुत ही हलका प्रकाश डाला है। उपर्युक्त विषयों पर दृष्टिपात करने से विदित हो जाता है कि प्राचीन काल में धर्म-सम्बन्धी धारणा बड़ी व्यापक थी और वह मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन को स्पर्श करती थी। धर्मशास्त्रकारों के मतानुसार धर्म किसी सम्प्रदाय या मत का द्योतक नहीं है, प्रत्युत यह जीवन का एक ढंग या आचरण-संहिता है, जो समाज के किसी अंग एवं व्यक्ति के रूप में मनुष्य के कर्मों एवं कृत्यों को व्यवस्थापित करता है तथा उसमें क्रमशः विकास लाता हुआ उसे मानवीय अस्तित्व के लक्ष्य तक पहुँचने के योग्य बनाता है । इसी दृष्टिकोण के आधार पर धर्म को दो भागों में बांटा गया; यथा श्रोत एवं स्मात । श्रोत धर्म में उन कृत्यों एवं संस्कारों का समावेश था, जिनका प्रमुख सम्बन्ध वैदिक संहिताओं एवं ब्राह्मणों से था; यथा तीन पवित्र अग्नियों की प्रतिष्ठा, पूर्णमासी एवं अमावास्या के यज्ञ, सोमकृत्य आदि। स्मार्त धर्म में उन विषयों का समावेश था जो विशेषतः स्मृतियों में वर्णित हैं तथा वर्णाश्रम से सम्बन्धित हैं। इस ग्रन्थ में प्रमुखतः स्मार्त धर्म का ही विवेचन उपस्थित किया जायगा। श्रौत धर्म के विषय में अनुक्रमणिका में संक्षेपतः वर्णन कर दिया जायगा। १. बाराग्निहोत्रसम्बन्धमिज्या श्रौतस्य लक्षणम् । स्मातों वर्गाश्रमाचारो यर्मश्च नियमपुतः॥ मत्स्यपुराण १1३०-३१, वायुपुराण ५९३१-३२ एवं ३९; अन्न्याधानादिपूर्वकोऽधीतप्रत्यावेदमूलो दर्शपूर्णमासादिः श्रोतः। अनुमितपरोलशालामूलः शौचाचमनादिः स्मार्तः। परा० मा० १। भाग १, पृ. ६४। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org For Private & Personal us
SR No.002789
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1992
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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