________________
धर्मशास्त्र का इतिहास की है, किन्तु वे किसी का अन्धानुकरण करते नहीं दिखाई पड़ते। पश्चिमी भारत के कानून में उनका व्यवहारमयूख प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता रहा है।
नीलकण्ठ शंकर भट्ट के कनिष्ठ पुत्र थे और शंकर भट्ट ने अपने द्वैतनिर्णय में टोडरानन्द के मतों का उल्लेख किया है और हमें टोडरानन्द की तिथि ज्ञात है। उन्होंने सन् १५७०-१५८९ ई० के बीच अपनी कृतियाँ उपस्थित की, अतः द्वैतनिर्णय १५९० ई० के पूर्व प्रणीत नहीं हो सकता। नीलकण्ठ शंकर भट्ट के कनिष्ठ पुत्र होने के नाते कमलाकर भट्ट से पहले लिखना नहीं आरम्भ कर सकते। कमलाकर ने अपना निर्णयसिन्धु सन् १६१२ ई० में लिखा। अतः नीलकण्ठ का लेखन-काल सन् १६१० ई० के उपरान्त ही आरम्भ हुआ होगा। व्यवहारतत्त्व की एक प्रतिलिपि की तिथि १६४४ ई० है। इससे स्पष्ट है कि वह ग्रन्थ इस तिथि के पूर्व ही प्रणीत हो चुका था। स्पष्ट कहा जा सकता है कि उसका रचनाकाल १६१० एवं १६४५ ई० के मध्य है।
१०८ मित्रमिश्र का वीरमित्रोदय मित्रमिश्र का वीरमित्रोदय धर्मशास्त्र के लगभग सभी विषयों पर एक बृहद् निबन्ध है। सम्भवतः हेमाद्रि के चतुर्वर्गचिन्तामणि को छोड़कर धर्मशास्त्र-सम्बन्धी कोई अन्य ग्रन्थ इतना मोटा नहीं है। वीरमित्रोदय में व्यवहार पर भी विवेचन है, अतः यह चतुर्वर्गचिन्तामणि से उपयोगिता में बाजी मार ले जाता है। यह कई प्रकाशों में विभाजित है। लक्षणप्रकाश में पुरुषों, नारियों, मानव तन के विविध अंगों, हाथियों, अश्वों, सिंहासनों, तलवारों, धनुषों के शुभ लक्षणों, रानियों, मन्त्रियों, ज्योतिषियों, वैद्यों, द्वारपालों की विशिष्टताओं, शालग्राम, शिवलिंग, रुद्राक्ष के दानों आदि का विवेचन है। इतना केवल एक प्रकाश में पाया जाता है। इसी से हम वीरमित्रोदय के आकार एवं उपयोगिता का अनुमान लगा सकते हैं।
मित्रमिश्र ने अपने सभी ग्रन्थों में सैकड़ों ग्रन्थकारों एवं ग्रन्थों के मतों का उल्लेख किया है। व्यवहार के प्रकरण में मित्रमिश्र ने अपने पूर्व के लेखकों के मतों का उद्घाटन करके अपने मत प्रकाशित किये हैं। मित्रमिश्र वाद-विवाद में नीलकण्ठ से कई श्रेणी आगे बढ़ गये हैं। हिन्दू कानून की बनारसी शाखा में वीरमित्रोदय का प्रभूत महत्त्व रहा है। मित्रमिश्र ने याज्ञवल्क्यस्मृति पर एक भाष्य भी लिखा है। इन्होंने अपना इतिहास भी दिया है, जो इनके वीरमित्रोदय के आरम्भ में उल्लिखित है। ये हंसपंडित के पौत्र एवं परशुराम पण्डित के पुत्र थे। हंसपण्डित गोपाचल (ग्वालियर) के निवासी थे। मित्रमिश्र ने वीरसिंह के आदेश से वीरमित्रोदय की रचना की थी। वीरसिंह एक बहादुर राजपूत थे। उन्होंने ओरछा एवं दतिया के प्रासादों का निर्माण कराया था। वीरसिंह ने ओरछा में सन् १६०५ से १६२७ तक राज्य किया था, अतः मित्रमिश्र का रचनाकाल १७वीं शताब्दी का प्रथम चरण था।
१०९. अनन्तदेव अनन्तदेव ने स्मृतिकौस्तुभ नामक एक निबन्ध लिखा, जिसमें संस्कार, आचार, राजधर्म, दान, उत्सर्ग, प्रतिष्ठा, तिथि एवं संवत्सर नामक सात प्रकरण हैं। संस्कार एवं राजधर्म वाले प्रकरण संस्कारकोस्तुम एवं राजधर्मकौस्तुभ कहे जाते हैं। प्रत्येक प्रकरण दीधितियों या किरणों में विभक्त है। संस्कारकौस्तुभ उनका सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ है। इसका आधुनिक न्यायालयों में पर्याप्त आदर रहा है। इसकी विषय-सूची संक्षिप्त रूप से यों हैसोलह संस्कार; गर्भाधान (प्रथम); मासिकधर्म के प्रथम आगमन पर ज्योतिष-सम्बन्धी विवेचन एवं उसके उपरान्त शमनार्थ कृत्य; गर्भाधान का उचित काल एवं तत्सम्बन्धी कतिपय कृत्य; पुण्याहवाचन, नान्दीश्राव, मातृका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org