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प्रस्तावना
ते जमानो ब्राह्मणोनी आपखुद सत्तानो हतो. तेमनो अहं जीवनना नाना मोटा दरेक प्रसंगमां जेम सुस्पष्टते तरी आवतो हतो तेम भाषाप्रयोग संबंधे पण थयुं. संस्कृत भाषा विद्वानोनी भाषा छे. एनो अर्थ प्राकृतभाषाभाषी वर्ग विद्वान नथी एम न करवो जोईए. एनो सीधो अने एक ज अर्थ ए छे के संस्कृत भाषा वापरवामां अने समजवामां स्त्री - बाल - मूर्ख अने मंदबुद्धि, माणसोने एक खास विशिष्ट प्रयत्ननी जरूर छे जे विशिष्ट प्रयत्न आर्थिक, सामाजिक के स्वाभाविक कारणे तेओ न करी शके. तो पछी समाजन आ मोटा भागने संस्कृतिथी विमुख राखवो! साक्षरतानो ईजारो संस्कृतभाषाभाषी लोकोए ज राखवो ?, आ प्रश्नो से' जे उपस्थित थाय ब्राह्मण विद्वान वर्ग पोताना अहंने एकदम त्यजी दे ए पण लगभग अशक्य जेवुं हतुं. तेथी भगवान् महावीरे अर्धमागधीमां अने भगवान् गौतमबुद्धे पालीमां, ब्राह्मणोनी आपखुद सत्ता सामेना विरोध तरीके अने पोताना धर्मोपदेशना मोजाओ आबाल - गोपाल सुधी पहोंची शके एज एक परोपकारमय शुद्ध हेतुथी पोतपोताना सिद्धांतोनी प्ररूपणा करी. आ प्रथा स्थापवामां ए बन्ने धर्मप्रवर्तकोनी निरहंता अने व्यवहारदक्षता जणाई आवे छे. ट्रंकामां, संस्कृतभाषाभाषी पुरुष साक्षर अने प्राकृतभाषाभाषी निरक्षर ए जूना वखतथी घर घाली गयेली मान्यता कोई पण जातना आधार विनानी छे ए, आ उपरथी, स्पष्ट थई जनुं जोईए.
संस्कृत पहेली अने पछी प्राकृत अर्थात् संस्कृतमांथी प्राकृत उदूभवी ए रूढ मान्यता पण एटली ज भ्रामक अने पूर्वग्रहथी भरेली छे. आ संबंधमां प्रथम ज मारे निर्विवादपणे कही देवुं जोईए के संस्कृत प्राकृतनी योनि के प्राकृत संस्कृतनी योनी र वस्तु आपणे इतिहासथी सिद्ध करी शकीए तेम नथी. बन्ने पक्षे विचारणीय दलीलो छे. आ बाबत तो आपणे मनुष्यमानसथी ज निश्चित करी शकशुं. मानसशास्त्रना अमुक मूळभूत सिद्धांतो त्रिकालाबाधित सनातन सत्य जेवा छे. एटले वर्तमान समाजमां प्रवर्तती सामान्य मनोवृत्ति तरफ जो आपणे दृष्टि करशुं तो पण आ बाबतनो खरो ख्याल आपणने मळशे. कोई पण समाज कोई पण एक काळे एकभाषाभाषी हतो ए कल्पवुं तद्दन अशक्य छे. संस्कारवाळी भाषा अने संस्कारविहोणी भाषा ए वस्तु तो सदा सर्वदा रहेवानी ज. ज्ञानना तरतमभावे आ भेद शाश्वत छे. साक्षरता - - निरक्षरताना सर्जनजूना भेद - प्रभेदो सर्व काळे विद्यमान हता अने रहेशे . एटले आटलं तो हवें स्पष्ट ज छे के संस्कृत प्रथम नहि, तेम ज संस्कृतभाषाभाषी ज विद्वान् एम नहि. संस्कृत भाषा अल्पसंख्यकनी भाषा अने प्राकृत भाषा बहुसंख्यकनी भाषा - आ एक ज सत्य निरपेक्ष सत्य छे.
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संस्कृतने दुर्जनोना हृदय जेवुं दुःखे ग्रहण करी शकाय तेवुं दाक्षिण्यचिह्न उद्योतन सूरि पोतानी वि. सं. ८३५मां रचेली मनाती प्राकृतभाषाबद्ध कुवलयमाळा कथामां कहे छे. वि. सं. ९६२मां थयेल मनाता प्रकांड पंडित सिद्धर्षि पोताना उपमितिभवप्रपंचा नामना अति विस्तीर्ण कथाग्रंथमां संस्कृत अने प्राकृत ए बने भाषाओ प्राधान्यने योग्य छे एम कहे छे अने उमेरे छे के संस्कृत ते दुर्विदग्धोना हृदयमां वास करी रही छे ज्यारे प्राकृत के जे बालकोने अने बालाओने पण सदूबोध करनारी अने कानने गमे तेवी होवा छतां पण ए पंडितप्रवरोने गमती नथी." मंदबुद्धिवाळा माणसो संस्कृत काव्यनो अर्थ जाणी
८६ पं. हरगोविंददास कृत “ पाइय सद्द - महण्णवो”, उपोद्घात पृ. १ थी १२ तथा ४८ थी ५१.
८७ कुवलयमाला कथा ( जे. भा. ता. प्र. ), पत्र ५७, ५८ ( आ कथारननुं संपादन आचार्य जिनविजयजी करी रह्या छे ).
८८ उपमितिभवप्रपंचाकथापीठ, श्लो० ५१-५३.
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