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प्रस्तावना
२७
आवा ज्ञानभंडारोनी स्थापनामां भाग लेनार अथवा आवा ज्ञानभंडारो स्वयं स्थापनार राजाओ पैकी बे राजाओना - सिद्धराज अने कुमारपालना - नाम मुख्य छे. मंत्रीओमां प्राग्वाटज्ञातीय महामात्य वस्तुपाळ - तेजपाळ अने ओसवाल ज्ञातीय मंत्री पेथडशाह अग्रस्थाने छे. धनिक गृहस्थो के जेमणे ज्ञानभंडारोनी स्थापनामा के संवर्धनमां भाग लीधो छे ते अथवा जेमणे पुस्तकोनी प्रतिओ लखावी आडकरी रोते ज्ञानवृद्धिमा फाळो नोंधाव्यो छे ते धनाढ्य सज्जनो पैकी धरणाशाह, काळुशाह अने मंडलिक मुख्य छे. केटलाक श्रेष्ठीओ एवा पण हता के जेमणे एक ज ग्रन्थनी अनेक नकलो लखावी हती ज्यारे अमुक एवा पण हता के जेमणे कल्पसूत्रनी घणी घणी प्रतिओ लखाबी गामोगाम मोकली हती. आ रीते आ ज्ञानसंस्थानी उत्पत्ति अने विकासमां राजा-महाराजाओ, मंत्री - महामंत्रीओ अने धनिक श्रेष्ठीओनो न भूलाय तेवो सुंदर फाळो छे.
महेश्वरसूरि, नाणपंचमी कहा, ज्ञान, ज्ञानभंडार अने ज्ञानपंचमी व्रत वगेरे आनुषंगिक बाबतोनो विचार करी हवे आ " नाणपंचमी कहा " मां शुं आवे छे तेनुं तद्दन संक्षिप्त वर्णन नीचे प्रमाणे आपुं हुं.
कथालेखक श्रीमहेश्वरसूरिए पोते ज कथाना प्रान्तभागमां कह्युं छे तेम आ समग्र कथा ग्रन्थ बे हजार गाथामां लखायेलो छे. ग्रन्थ पद्यमां छे. एमां वापरेली भाषा जैन माहाराष्ट्री प्राकृत छे. एमां दस आख्यानो छे जेमांनुं प्रथम तथा छेल्लं पांचसो गाथाओ रोकी तथा वीजाथी नवमा सुधीना प्रत्येक आख्यान सवासो सवासो गाथाओमां समाविष्ट करी आ ग्रन्थरत्नने बराबर बे हजार गाथामां समाप्त करवामां आव्यो छे. ज्ञानपंचमीव्रतमाहात्म्यनां सूत्र वडे सर्व आख्यानमणिओने सळंग रीते परोववामां आव्या छे. दरेक आख्या - ननो हेतु पंचमीत्रतमाहात्म्यनो छे. डगले अने पगले ए व्रतनी सर्वोत्कृष्टतानी बात कहेवामां आवी छे. व्रत, नियमधारण, तपश्चर्या, वगेरे सर्व बाह्य क्रियामां पंचमीत्रतने उच्चस्थान आपवामां आव्युं छे. आगन्तुक आपत्तिने आवती रोकवा अने चालु विपत्तिमांथी सफलतापूर्वक पारगमन करवा, ज्ञानपंचमीव्रत समजण अने विधिपूर्वक करवानो एक ज राजमार्ग जे छे ते बताववामां आव्यो छे. आ संसारमां कोईने भाग्यवान् थवाना अने गणावाना कोड होय, कोईने खानदान कुटुंबना नवीरा बनवानी एकमात्र इच्छा होय, कोई मरण पर्यंत अनारोग्य न आवे एवी ज अभिलाषा सेवतो होय, कोई बंदीखानामां पडेलो जीव बंदीखानामांधी मात्र मुक्त थवानो ज एक मनोरथ पार पडेलो जोवानी प्रतीक्षा करी रह्यो होय, कोई परदेशमां गयेल जनना संयोगमां ज समस्त जीवनना साफल्यनो साक्षात्कार देखी रधुं होय, तो कोई पोतानां आंख, नाक, कान, हाथ अने पगनी खोड खांपण दूर थयेली जोवा माटे ज जाणे के जीवी रह्युं होय - इत्यादि इत्यादि ऐहिक कामनाओनी तृप्ति अने छेवट मोक्ष जेवी आमुष्मिक वांछनानी सिद्धि माटे ज्ञानपंचमीत्रतनुं यथाविधि ग्रहण, पालन अने उद्यापन एज एक अमोघ अने सद्यः प्रत्ययकारी मार्ग छे ए बातनुं प्रतिपादन समग्र ग्रन्थमां जरा पण अभिनिवेश विना बहु भारपूर्वक करवामां आव्युं छे. कोईने द्वीपांतरमां जवुं होय अने तरत ज विमान हाजर थाय, करोडो माईल दूर खजन गया होय अने आववा सुद्धांनी पण आशा न होय ए तरत ज आवी मळे, मरण ज जेनो एकमात्र उपाय छे एवं कलंक घडीना छट्टा भागमां शत्रुना कचवाट साथै क्यांय अदृश्य थई जाय, आवी आवी अनेकानेक अशक्य लागती वस्तुओ, शुभभावथी ज्ञानपंचमी व्रत करनारने माटे तद्दन शक्य छे ए श्रद्धेय सत्य तरफ लेखके ज्यां अने त्यां सफलतापूर्वक अंगुलिनिर्देश कर्यो छे. ट्रंकामां ज्ञानपंचमी व्रतनुं शास्त्रोक्त रीते ग्रहण, पालन अने उद्यापन सर्वसिद्धिप्रदायक छे एम लेखके निश्चित भावे जणाव्युं छे.
जयसेन, नंद, भद्रा, वीर, कमळा, गुणानुराग, विमल, धरण, देवी अने भविष्यदत्त एवां आ कथाना दस आख्यानोनां अनुक्रमे नाम छे.
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