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प्रस्तावना
उपर जणावी तेवी पर्वकथाना साहित्यनी उत्पत्ति अने विकासमां जैन लेखकोए विशाळ अने सर्वदेशीय फाळो आप्यो छे. मौन एकादशी, मेरु त्रयोदशी, होलिका पर्वकथा, रजःपर्वकथा, अष्टाह्निका पर्वकथा, पर्युषण पर्वकथा, दीपावलि पर्वकथा अने सौभाग्यपंचमी के ज्ञानपंचमी कथा-वगेरे वगेरे पर्वकथाओ जैन पर्वकथा साहित्यना आधारस्तंभो छे. एमांनी छेल्ली अने अनेक दृष्टिए अपूर्व एवी श्रीमहेश्वर सूरि रचित आ " नाणपंचमी कहा "मां आवता सुभाषितो उपर हुं खास करीने अहिं कहेबा मागुं छु.
___अत्यारसुधी अप्रकट अने अनेक दृष्टिए अलौकिक एवी अर्थगंभीर आ पर्वकथाना प्रकांड विद्वान लेखक श्रीमहेश्वरसूरि विक्रमीय संवत् ११०९ पहेलां थया होवा जोईए ए वात आगळ चर्चाई गई छे; तेओ पोताने सज्जन उपाध्यायना शिष्य तरीके ओळखावे छे. आथी विशेष कांई माहिती पोताने विषे तेओ आपता नथी, तेथी तेमना जीवन अने कवन विषे कशी चर्चा थई शके तेम नथी.
__ आ कथाग्रन्थनुं बीजं नाम 'पंचमी माहात्म्य' पण छे, कारण के एमां पंचमीमाहात्म्यनुं वर्णन प्रधानपणे करवामां आवेल छे.
मोक्षमंदिरचें मुख्य प्रवेशद्वार ज्ञान छे. ज्ञाननी आराधनाथी तीर्थकरादि महान् पुरुषो भवसमुद्र तरी गया छे अने ज्ञाननी विराधनाथी अनेक दुर्गतिमां पण पड्या छे. एटले मोक्षसिद्धि माटे ज्ञान एक सर्वोत्तम उपाय छे. ज्ञानना आवा अपूर्व माहात्म्यने जाणी- विचारी पूर्वाचार्योए ज्ञाननी उपासना माटे ज खास करीने एक दिवस नियत कर्यो; अने ते कार्तिक शुक्ल पंचमीनो. आ शुक्ल पंचमी खास करीने ज्ञानपंचमीना विशिष्ट नामथी वधारे प्रचलित छे. आ पवित्रतम दिवसे पुण्यशाली जीव मुनिनी माफक पौषधादि व्रत अंगीकार करी ज्ञानोपासना करवामां गाळे छे. तेओ भंडारमा राखेली ज्ञाननी एकमात्र उपकरण प्रतिओने बहार काढे छे. जे जे प्रतिओने शरदी, भेज, जीव, जंतु आदिनो उपद्रव थयो जाणवामां आवे ते ते प्रतिओने ते उपद्रवमाथी विमुक्त करवान विचारता अथवा तो ते ते प्रतिओना पुनरुद्धारर्नु पण नक्की करता. ते दिवसे प्रतिओनुं बहू ज यत्नपूर्वक पूजन, अर्चन, मार्जन वगेरे थतुं. चोमासमां ज्ञानभंडारो बंध होय छे. ते चोमासुं पुरूं थये वहेलामां वहेली तके खोलबाना होय छे. आ रीते बीजी पंचमीओ करतां कार्तिक शुक्ल पंचमीनु ज माहात्म्य विशेष छे. आ व्रत करवाथी सौभाग्य इच्छनारने सौभाग्य मळे, आरोग्य इच्छनारने आरोग्य मळे, कुलीन कुटुंबमा जन्म इच्छनारने तेवा कुलीन कुटुंबमा जन्म थाय, आंख गई होय तो आंख, पग गया होय तो पग अने हाथ गया होय तो हाथ पण पाछा मळे अने छेवट मोक्ष पण मळे एवो आ व्रतनो प्रभाव छे. ब्राह्मणोमां सरस्वतीशयन अने देवऊठी एकादशीनो पण कंईक आवो ज प्रभाव छे. दिगंबरोमां ज्ञानपंचमीने बदले श्रुतपंचमी शब्द वधारे प्रचलित छे.
व्रतो तो घणा छे पण आ रीते ज्ञानपंचमी व्रतनुं महत्त्व निराळु छे. सौ संप्रदायो पोतपोतानी अनोखी रीते व्रतो उजवे छे, पण जैन प्रथामां खासीयत ए छे के ऐहिक करतां पारलौकिक भावना तरफ विशेष ध्यान आपवामां आव्यु होय छे. पर्व पर्व परत्वे ए धर्मभावनामां न्यूनाधिक्य जरूर संभवे. तीर्थंकरोनां च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान अने निर्वाण ए पांच दिवसो कल्याणकना कहेवाय छे. पर्व पाळवामां निमित्त तीर्थंकरना कोईपण कल्याणकर्नु होय पण ए कारणे चालता पर्वनो केवळ एक ज उद्देश होय छे अने ते ज्ञान - चारित्र्यनी शुद्धि अने पुष्टि द्वारा आत्मसिद्धि.
एटले ज्ञाननी सर्वातिशायिता संबंधे आपणे उपर जोयुं तेम बे मत छे नहि. ज्ञान एटले प्रतिओपुस्तको; अने पुस्तको एटले ज्ञानभंडारो. आम सूक्ष्म अने स्थूल वस्तुना महत्त्व समजी शकीए तेम छीए.
नाणपं० प्र०4
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