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________________ २४ नाणपंचमीकहाओ सारू युद्धनो प्रसंग योजी भविष्यने पराक्रमी सिद्ध करे छे. आ सिवाय आ प्रसंगनो बीजो को उपयोग नथी. ए संधिओ काढी लेवामां आवे, तो पण वस्तुना प्रवाहमां जराय खलल पडती नथी. एटले मारूं एम द्रढपणे मानतुं छे के धनपाळ कविए पोतानी "भविष्यदत्त कथा" महेश्वर सूरिए रचेल "नाणपंचमी" अथवा "ज्ञानपंचमी कथा" नी अंतर्गत दसमा अने छेल्ला भविष्यदत्त आख्यान उपरथी रची छे अने तेथी ते महेश्वर सूरिनो अनुवर्ती एटले ई. स. नी अगीआरमी सदीनी छेल्ली पच्चीसीमां अथवा बारमी सदीना आरंभमां थयो होवो जोईए. मारा आ अभिप्रायना समर्थनमां पं. लालचंद भगवानदास गांधीनु आ वाक्य "साम्प्रतं प्रसिद्धा धर्कटवणिग्वंशोद्भवधनपालनिर्मिता.........अपभ्रंशा भविस्सयत्तकहा ( पञ्चमीकहा) अस्या एव प्रान्तकथायाः प्रपञ्चरूपा"" खास नों, छं. अहिंआ वापरेलो “अस्या" शब्द महेश्वर सूरि रचित "पंचमी कथा" ( अर्थात् प्रस्तुत "नाणपंचमी" ) अने "प्रान्तकथा" एटले भविष्यदत्त आख्यान समजवानुं छे. पछी तो एम बन्यु के ज्ञानपंचमी कथा के सौभाग्यपंचमी कथा पुरता श्वेतांबर आम्नायना आद्यरक्षक महेश्वर सूरि गणाया अने कनककुशल तथा क्षमाकल्याण बगेरे तेमने चीले चाल्या. अने श्रुतपंचमी कथा पुरता दिगंबर संप्रदायना अग्रिम प्रस्थापक धनपाळ गणाया ( कारण के आपणे आगळ जोयु तेम मूळ श्वेतांबरोनी आ कथामां दिगंबर अंश उमेरी एने दिगंबरी ओप आपनार प्रथम कवि धनपाळ छे) अने तेमने सिंहसेन अपरनाम रईधु, श्रीधर वगेरे पोताना "भविष्यदत्त चरिय" मां अनुसर्या. “नाणपंचमी कहा” अने तद्गत सुभाषितो जैन तेम ज जैनेतर साहित्यमां, धर्मकथा, राजकथा, समाजकथा, नीतिकथा वगेरे वगेरे जेम कथाभेदो छे तेम पर्वकथाओनो पण एक खास भेद छे. पर्वोना इतिहास जेटलो ज पर्वकथाओनो इतिहास पण प्राचीन छे. ए पर्वकथाओना मूळगत विचारमां, विकासमां अने अंतिम लक्ष्यमा पोतपोताना लाक्षणिक रंगो पूरी प्रत्येक धर्मे, संप्रदाये अने आम्नाये ए कथाओने पोतानी कथा तरीके अपनावी लीधी. एटले बन्यु एम के कथानुं मूळ खोखं घणी वखत एमर्नु एम रह्या छतां कोई संप्रदायनी अमुक पर्वकथा आपणने परिपुष्ट अने मांसल लागी त्यारे ए ज पर्वकथा बीजा संप्रदायमा बेदरकारी के एवा अन्य कोई कारणने लई तद्दन फिक्की अने निर्माल्य बनी गई. समयनी अनुकूळता-प्रतिकूळताए, सामाजिक परिवर्तनोए अने राजकीय प्रत्याघातोए पर्वकथाना साहित्यमां पण भरती अने ओट आण्यां. __ केवळ तत्त्वज्ञाननी वातो अने विवादो साक्षरोने पचे; एटले जेओ ओछां विद्वान् होय तेम ज निरक्षर होय अर्थात् सामान्य लोकसमूह माटे ज्ञान साथे बोध आपी शकाय तेवी योजनामां आपणे कथासाहित्यनां मूळ जोई शकशुं. आ हेतुथी धर्मना तहेवारो एटले के पर्वोने पसंद करवामां आव्या. अक्षय तृतीया, बोळी चोथ, गणेश चतुर्थी, नाग पांचम, रांधण छठ, शीळी सप्तमी अने जन्माष्टमी वगेरे पर्व दिवसोने अनुलक्षी जेम ब्राह्मणोए पर्वकथाओ रची तेम जैनोए पण अष्टाह्निका, पर्युषण पर्व, ज्ञानपंचमी वगेरे पर्वोने लई पर्व. कथाओ रची. तेमां कया मासमा कयुं व्रत कोणे केवी रीते ग्रहण करवं, यथाविधि पाळवं अने केवी रीते ऊजवQ अने एथी फळ शुं वगेरे बाबतो, पोतपोतानी लाक्षणिक शैलीथी, प्रसंगवैविध्य अने कळाकौशल्यपूर्वक, काव्यचमत्कृति अने अलंकारोनी जमावट साथे, पोतपोताना धार्मिक वर्तुळमां रही, कथा लेखकोए चर्ची. आमां फळनी बाबतमां कथालेखकोए पोतपोताना धर्मनी सर्वोत्कृष्टतानी विशिष्ट प्ररूपणा करी; अने एथी करी, घणी खरी बाबतोर्नु घणु खरूं साम्य होवा छतां, दरेक पर्वकथा, धार्मिक सिद्धांत पुरती, निराळी बनी गई. ७७ जुओ पादनोंध १७. . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www.
SR No.002786
Book TitleGyanpanchami Katha
Original Sutra AuthorMaheshwarsuri
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1949
Total Pages162
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size12 MB
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