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नाणपंचमीकहाओ
मणवेय नामना विद्याधरे तेने शा माटे मदद करी ए बाबत भविष्ये ज्यारे ए चारण साधुओने पूछयु त्यारे तेओए निम्नोक्त वृत्तांत कही संभळाव्यो:
कांपिल्यपुरमा एक राजा राज्य करतो हतो. त्यां वासवदत्त नामे एक ब्राह्मण रहेतो हतो. तेने सुवक्र अने दुर्वक्र नामना बे पुत्रो हता. विमलमंत्रीने ए बन्नेनी ईर्ष्या थाय छे. एकदा सिंहलद्वीपना राजा पासे, ते राजाने भेट मोकलवा माणस मोकलवानी जरूर पडी. वासवदत्त ब्राह्मणे पोताना जमाईन नाम सूचव्यु जे उपरथी विमलमंत्रीने क्रोध चड्यो अने बन्ने बच्चे कजीओ थयो. दरम्यान तेने मोकली देवामां आव्यो पण पाछा फरतां तेने घणो विलंब थयो तेथी दुर्वक्र नवनाडी निरोध करी जवाब आपे छे के ते अग्निमित्र (पोताना बनेवी ) चार रोजमां पाछा आवशे. विमलमंत्रीए आवी खोटी आशाओ न आपवानी सलाह दुर्वक्रने आपी, जे उपरथी दुर्वक्रे बमणा जोरथी प्रथम कडं हतुं ते कडुं. तेथी बन्ने बच्चे कजीओ थयो अने दुर्वक्रे कयुं के जे कोई हारे तेने लोकोए शिक्षा आपवी. राजाए बन्नेने वार्या अने कोई त्रीजी प्रामाणिक व्यक्तिने ए बाबत पूछ्या कह्यु. तेथी तेओ क्षुल्लक ज्योतिषी (आ बनाव पण भ० आ० मा मात्र बहुज संक्षिप्तरीते, खरो ख्याल न आवे तेवी रीते, वर्णव्यो छे) पासे गया अने क्षुल्लके जवाब दीधो के ते माणसे भेट तरीके आपेल बधा पैसा वापरी नाख्या छे अने आजथी त्रीसमे दिवसे एक भिखारी तरीके ते अहिं पाछो आवशे. बन्नेए जइने बधी वात राजाने कही. बराबर त्रीसमे दिवसे अग्निमित्र आवी पहोच्यो. राजाए तेने केद कर्यो. समस्त कुटुंब उपर राजानी नापसंदगी उतरी हती (संधि १७).
आ अढारमी संधीमां दुर्वक्र क्षुल्लक (खुल्लय) पासे गयानुं वर्णन आवे छे. दुर्वक्र जैन बने छे अने मरीने सुधर्म स्वर्गमां जाय छे. तेनी माता सुकेशा पण जैनत्वनो अंगीकार करे छे अने मरीने इन्द्र बने छे. पछी त्यांथी मरी दुर्वक्र मणवेय तरीके अवतरे छे. अने सुकेशा पहेलां रविप्रभा तरीके अने पछी भविष्यानुरूपाना गर्भमां अवतार ले छे. सुवक्र सर्प बने छे.६ राजाने प्रार्थना करी तिवेइया पोताना धणीने छोडावे छे. बन्ने साथे मरे छे. धणी (अग्निमित्र ) मणिभद्र तरीके अवतरे छे. तिवेइया रोहिणीरूपे अने पछी भविष्यनी पुत्री तरीके अवतरशे. पछी तेओ बधा - भविष्य अने भविष्यानुरूपा- गजपुर जाय छे. मणवेय पोताने स्थळे पाछो फरे छे. अने पोताना भाईने (सुवक्रने)-सर्पने खरे रस्ते वाळे छे. भविष्यने सुप्रभ, कनकप्रभ, सूर्यप्रभ अने चंद्रराशि नामना चार पुत्रो अने तारा, सुतारा नामनी बे पुत्रीओ थाय छे. विमलबुद्धि नामना एक मुनि त्यां आवे छे. बधा वांदवा जाय छे. मुनि जीवन क्षणभंगुर छे एवो उपदेश आपे छे. भविष्यने जीवननो कंटाळो आववा लागे छे ( संधि १८).
विमलबुद्धि नामना मुनिने पोतानो पूर्वजन्मवृत्तांत तथा भविष्यमा पोते कोण थशे ते कहेवानी भविष्य विनति करे छे ते उपरथी मुनि निम्नोक्त अहेवाल कहे छे:
__ अरिपुरनो मरुत नामनो राजा हतो जेने धरा नामनी राणी अने वज्जोयर नामनो अमात्य हतो. ते अमात्यने कीर्तिसेना नामे पुत्री हती. तेनो वर जुगारी, लंपट अने चोर हतो. अमात्यपुत्री एकदा एक धनमित्र नामना वणिक्पुत्रने देखतां वेतज प्रेममां पडे छे. धनमित्रनी पत्नी अने अमात्यपुत्रीनी सखी गुणमाला धनमित्रने परणवानी अमात्यपुत्रीने संमति आपे छे. पण अमात्यपुत्री ना पाडे छे अने कहे छे के ते पोते परणेली छे ए हिसाबे पण तेणीए धनमित्रने बंधु समान ज गणवो जोईए. आ निवेदनथी गुणमाला खूब हर्षित थाय छे. अमात्य वज्जोयर धनमित्रने श्रेष्ठी बनावे छे. धनमित्र अने अमात्यपुत्री बन्ने कौशिकना भक्त
___७६ भविष्यदत्त आख्यान अने भविष्यदत्त कथा वाळी सुवक्र अने दुर्वक्रवाळी घटना सरखाववाथी, भविष्यदत्त कथामा ज्या ज्यां दुर्वक शब्द सारा माणस तरीकेना अर्थमां वपरायो छे त्या त्यां सुवक्र जोईए, एम लागशे.
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