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नाणपंचमीकहाओ
[ णाणपंचमी कहा अने महेश्वर सूरि ]
११ ए जातना विशाळ जैन कथासाहित्यमांनो महेश्वरसूरि नामना आचार्ये बनावेलो प्रस्तुत "णाणपंचमी कहा " पण एक सुन्दर कथाग्रन्थ छे. एमां जैन प्रक्रिया प्रमाणे ज्ञाननुं माहात्म्य बताववा तेम ज ज्ञाननुं आराधन करवाना फलं वर्णन करवानी दृष्टिये, भविष्यदत्तादिनी दश कथाओ कहेवामां आवी छे. सरस अने सुललित प्राकृत गाथाओ मां रचाएल आ उपयोगी ग्रन्थ, प्राध्यापक डॉ० अमृतलाल स. गोपाणी द्वारा सुसंपादित थई प्रथम ज वार प्रसिद्धि पामे छे.
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१२ आ ग्रन्थना रचयिता महेश्वर सूरि अने तेमनो समय; ग्रन्थनो उद्दिष्ट विषय भने ग्रन्थगत कथापरिचय; आ विषयना अन्य कथाग्रन्थो अने तेमनी साथै आनी तुलना; तेम ज आ ग्रन्थनी विशिष्ट वर्णनशैली, भाषामधुरता, सुभाषितोक्ति आदि विषयक ग्रन्थना बहिरंग अने अन्तरंग विवेचन साथै सम्बन्ध धरावता विविध विषयोनुं ऊहापोह करतुं जे विस्तृत वर्णन, प्राध्यापक गोपाणीये पोतानी प्रस्तावनामां आप्युं छे तेथी विज्ञ वाचकोने प्रन्धनुं संपूर्ण हार्द बहु ज सारी रीते अवगत थई शके तेम छे.
१३ ग्रन्थकार महेश्वर सूरिना सम्बन्धमां, विद्वान् संपादके जे ऊहापोह कर्यो छे, ते परथी जणाय छे के, प्रस्तुत ग्रन्थना अन्ते ग्रन्थकारे पोताने मात्र सज्जन उपाध्यायना शिष्य तरीकेना सुचवेला उल्लेख सिवाय बीजी कशी इकीकत तेमना विषयमां जाणवामां आवती नथी. ए समयना बीजा बीजा अनेक कथाकारोए जेम पोताना ग्रन्थोमां, स्वकीय गच्छ, गुरु, समय, स्थान आदिना विषयमां थोडो-घणो उल्लेख करेलो मळी आवे छे, तेवो कशो विशेष उल्लेख, आा महेश्वर सूरिये, पोतानी प्रस्तुत कृतिमां करेलो नथी. तेथी एमना समय अने स्थान आदिना विषयमां कशी विशेष कल्पना करवी शक्य नथी. परंतु पाटणना संघवीना भंडारमां, एक ताडपत्रीय पुस्तिका छे, जे वि. सं. ११९१ मां, सिद्धराज जयसिंहना समयमा धवलक्कक ( आधुनिक घोलका) मां लखाएली छे, तेमां एक ६४३ गाथानी 'पुप्फवइ' नामे प्राकृत गाथाबद्ध कथा लखेली छे, जे ए ज महेश्वर सूरिनी कृति होय एम कागे छे. ए कथाना प्रारंभमां कथाकारे उपोद्घातरूपे जे ३ - ४ गाथाओ लखी छे तेमां नीचे प्रमाणेनी पंक्तियो मळी आवे छे. नमिऊण अभयसूरिं भत्तीए सुयगुरुं जुगपहाणं । सेयंवरकुलतिलयं तवलच्छी-सरस्सई -निलयं ॥
सजण गुरुस्स सीसोपुप्फवईयं कहं कहइ ॥
आ पंक्तियोमां उपलब्ध थती २ जी गाथानो पाठ खंडित छे कारण के पुस्तिकानुं प्रथम पत्र जमणी बाजूए तूटी गए होवाथी तेटला अक्षरो जता रह्या छे. ए जता रहेला पाठमां कथाकारनो नामनिर्देश होवानो संभव छे. कारण के गाथाना प्रथम पादम 'सज्जन गुरुना शिष्य' ए शब्दो मळे छे अने छेला पादमां 'पुष्पवतीनी कथा कहे छे' ए वाक्य मळे छे; एटले जता रहेला बीजा-त्रीजा पादमां कथाकारनो नामनिर्देश होवानी संभावना छे. ते सज्जनगुरुना शिष्य छे एम तो उपलब्ध वाक्य स्पष्टपणे जणावे छे ज, एटले ए अनुमान करवामां असंगति नथी देखाती के एना कर्ता पण ए महेश्वर सूरि ज हशे अने जो ए संभावना बराबर होय तो महेश्वर सूरिना प्रगुरुनो नामनिर्देश पण ए पुष्पवतीकथामांथी वधारानो मळी आवे छे. ए प्रगुरुनुं नाम अभयसूरि एवं आपवामां आव्युं छे अने तेमने श्वेतांबरकुतिलक भने युगप्रधानना विशेषणथी उल्लेखवामां भाव्या छे. परंतु आ अभयसूरि कोण अने क्यारे थई गया ते प्रश्न पण पाछो विचारवानो रहे छे ज. कारण के अभयसूरि के अभयदेव नामना पण अनेक प्रसिद्ध आचार्यो थई गया छे तेथी कया अभयसूरिना शिष्य सज्जनगुरु के सज्जन उपाध्याय हता तेनो पुरावो न मेळवी शकाय त्यां सुधी महेश्वर सूरिनो निश्चित समय न जाणी शकाय.
१४ प्रस्तुत 'नागपंचमी कहानी जूनामां जूनी उपलब्ध प्रति जे जेसलमेरमां छे तेनी लख्या साल ११०९ जणाववामां आवी छे. परंतु मारी तपास दरम्यान मने जणायुं हतुं के ते मिति कोईए पाछळथी ते ऊपर लखेली हती. मूळ आखा ग्रन्थनी लिपि करतां ए पंक्तिना अक्षरो तद्दन जुदी जातना- एटले के मूळ प्रतिलिपि करनार लहियाना हस्ताक्षरो करतां तद्दन अन्य कोई व्यक्तिना लखेला अने पाछळना समयना छे. ए प्रतिना भाद्यन्त पृष्ठनी फोटो कॉपी जे मारी पासे छे तेनी प्रतिकृति भा साथे आपवामां आवी छे, ते परथी वाचको ए वस्तु प्रत्यक्षरूपे जोई शकशे. शा हेतुसर कोईये आ पंक्ति लखी हशे तेनी कल्पना थती नथी. मूळ प्रति जूनी छे एमां तो शंका नथी ज. ११०९ मां नहीं लखाई होय, तो पण एनी लिपि आदि जोतां एज सैकामां ए लखाएली छे एम मानवामां तो कशी ज भ्रांति नथी जणाती.
१५ महेश्वर सूरिये आ कथाओनुं सूचक वस्तु कोई प्राचीन ग्रन्थमांथी लीधुं छे के तेमनुं स्वतंत्र कल्पित छे ते बतावनारुं कोई विशिष्ट प्रमाण जाणवामां नथी आव्युं. एमांना छेल्ला भविष्यदत्ताख्यान सिवाय बीजां आख्यानो प्रायः तेमनां ज कल्पित होवानो विशेष संभव लागे छे, 'भविष्यदत्ताख्यान' ऊपर धनपाल विगेरे बीजा विद्वानोए पण रचनाओ करेली छे तेथी कदाच ए आख्याननी कथा जूनी पण होय. प्रारंभना उपोद्घातात्मक भागमां, ३० मी
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