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बाबू बहादुर सिंहजी - स्मरणाञ्जलि
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परंतु तेमने पोताना जीवननी अल्पतानो आभास जाणे थई रह्यो होय तेम, बच्चे वच्चे तेओ तेवा उदूगारो पण काढ्या करता हता. ५-७ दिवस रहीने हुं मुंबई आववा नीकळ्यो त्यारे छेल्ली मुलाकात वखते तेओ वहु ज भावभरेले हृदये मने विदाय आपता बोल्या के - 'कोण जाणे हवे आपणे फरी मळीशुं के नहिं ?' हुं एमना ए दुःखद वाक्यने बहु ज दबाएला हृदये सांभळतो अने उद्वेग पामतो, एमनाथी सदाना माटे छूटो पड्यो. ते पछी तेमनी साथै मुलाकात थवानो प्रसंग जन आव्यो ५-६ महिना तेमनी तबियत सारी नरसी रह्या करी अने आखरे सन् १९४४ ना जुलाईनी ७ मी तारीखे तेओ पोताना विनश्वर देहने छोडी परलोकमां चाल्या गया. मारी साहित्योपासनानो महान् सहायक, मारी अल्पखल्प सेवानो महान् परिपोषक अने मारी कर्तव्य निष्टानो महान् प्रेरक, सहृदय सुपुरुष, आ असार संसारमां मने शून्य हृदय बनावी पोते महाशून्यमां विलीन थई गयो.
सिंघीजीनुं जो के आ रीते नाशवंत स्थूळ शरीर संसारमांधी विलुप्त थयुं छे, परंतु तेमणे स्थापली आ प्रन्थमाळा द्वारा तेमनुं यशः शरीर सेंकडो वर्षो सुधी आ संसारमां विद्यमान रही तेमनी कीर्ति अने स्मृतिनी प्रशस्तिनो प्रभावक परिचय भावी प्रजाने सतत आप्या करशे.
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सिंघी जीना सुपुत्रो नां सत्कार्यो
सिंघीजीना स्वर्गवासथी जैन साहित्य अने जैन संस्कृतिना महान् पोषक नररत्ननी जे म्होटी खोट पडी छे ते तो सहजभावे पूराय तेम नथी. परंतु मने ए जोईने हृदयमां ऊंची आशा अने आश्वासक आल्हाद थाय छे के तेमना सुपुत्रो - श्री राजेन्द्र सिंहजी, श्री नरेंद्र सिंहजी अने श्री वीरेन्द्र सिंहजी पोताना पिताना सुयोग्य सन्तानो होई पितानी प्रतिष्ठा अने प्रसिद्धिना कार्यमां अनुरूप भाग भजवी रह्या छे अने पितानी भावना अने प्रवृत्तिने उदारभावे पोषी रह्या छे.
सिंघ जीना स्वर्गवास पछी ए बंधुओए पोताना पिताना दान-पुण्य निमित्त अजीमगंज विगेरे स्थानोमा लगभग ५०-६० हजार रूपिया खर्च कर्या हता. ते पछी थोडा ज समयमां, सिंघीजीना वृद्धमातानो पण स्वर्गवास थई गयो अने तेथी पोताना ए परम पूजनीया दादीमाना पुण्यार्थं पण ए बंधुओए ७०-७५ हजार रूपियानो व्यय कर्यो. 'सिंघी जैन ग्रन्थमाळा' नो सघळो भार पण ए सिंधी बंधुओए, पिताजीए निर्धारेल विचार प्रमाणे, पूर्ण उत्साहथी उपाडी लीधों छे, अने ते उपरान्त कलकत्ताना इन्डीयन रीसर्च इन्स्टीट्यूटने बंगालीमां जैन साहित्य प्रकट करवा माटे सिंघीजीना स्मारकरूपे ५००० रूपियानी प्रारंभिक मदद आपी छे.
सिंघीजीना ज्येष्ठ चिरंजीव बाबू श्री राजेन्द्र सिंहजीये, मारी इच्छा अने प्रेरणाना प्रेमने वश थई, पोताना पुण्यश्लोक पितानी अज्ञात इच्छाने पूर्ण करवा माटे, ५० हजार रूपियानी नादर रकम भारतीय विद्याभवनने दान करी, अने तेना वडे कलकत्तानी उक्त नाहार लाईब्रेरी खरीद करीने भवनने एक अमूल्य साहित्यिक निधिरूपे भेट करी छे. भवननी ए भव्य लाईब्रेरी 'बाबू श्री बहादुर सिंहजी सिंघी लाईब्रेरी' ना नागे सदा ओळखाशे अने सिंघीजीना पुण्यार्थे ए एक मोटी ज्ञानपर नशे बाबू श्री नरेन्द्र सिंहजीये, बंगालनी सराक जातिना सामाजिक अने धार्मिक उत्थान निमित्ते पोताना पिता जे प्रवृत्ति चालु करी हती, तेने अपनावी लीधी छे अने तेना संचालननो भार प्रमुखपणे पोते उपाडी लीधो छे. सन १९४४ नवेंबर मासना कलकत्तामां दिगंबर समाज तरफथी उजवाएला 'वीरशासन जयन्ती महोत्सव 'ना प्रसंगे तेना फाळामां एमणे ५००० रूपिया आप्या हता तेम ज कलकत्तामां जैन श्वेतांबर समुदाय तरफथी बांधवा धारेला “जैन भवन" माटे ३१००० रूपिया दान करी पोतानी उदारतानी शुभ शरुआत करी छे. भविष्यमां 'सिंघी जैन ग्रन्थमाळा' नो सर्व आर्थिक भार आ बन्ने बंधुओए उत्साह पूर्वक स्वीकारी लेवानी पोतानी प्रशंसनीय मनोभावना प्रकट करीने, पोताना पिताना ए परम पुनीत यशोमन्दिरने उत्तरोत्तर उन्नत स्वरूप आपवानो शुभ संकल्प कर्यो छे. तथास्तु.
भारतीय विद्या भवन, मुंबई डीसेंबर, १९४८
नाणपं० उपो०
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- जिन विजय मुनि
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