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________________ शीले राजीमती - कथा । ११ जेण, जाओ विसय- णिवन्धणाओ इत्थियाओ, ताओ महावा हीओ विव सोसिय देहाओ, जलगावलीओ far कय-संताबाओ, किंपागफल-समिद्धीओ वित्र [वि] रसाबसा [णा] ओ, माइंदजालिय चिट्ठाओ विव मुद्धजण-मोह कारियाओ, णिण्णयाओ विव णीवाणुवत्तिणीओ, मरुभूमीओ वित्र जणिय-तण्हाओ, पभाय-पईब बट्टीओ वित्र पणट्ट - नेहाओ, कलाओचिव लोह, त्तिणीओ, विणीओ वित्र परवइ-गामिणीओ, अक्ख- सारीओ वित्र पर घर-संचारिणीओ, संख-मालियाओ विव अंतो-कुडिलाओ, पंड (ड) रंग-तवस्तिमुत्तीओ विव जडाणुगयाउ ति । अवि य - किं च इय केत्तियं च भन्नउ ? समत्थ-दोसाण णिलय- भूयाओ । इत्थीओ जेण तहा परिहरियवा पयत्तेण || "अपकारफला एवं योषितः केन निर्मिताः ? | नरकागाध - कूपस्य सभाः सोपानपङ्कयः ॥" अन्नं च - देवाविण थिरा विसया | सुहं पुण सारीर माणसाणेय - दोक्ख कारणं कह वि किलेसायास -पत्तं पि करि-कन्न- चंचलं अथिरं विवाग-दारुणं विरसावसाणं ति । अवि य - Jain Education International "ईसा विसाय-भय- कोह-लोह - चत्रणाइ- दुक्ख पडहत्था । देवा विकामा अथिरा पञ्चस-दीव व || वस - रुहिर-मास-मेय-डि-मज्ज-सुकाइ- असुइ- पुण्णाण | सारीर-माणसाय - दुक्ख तवियाण पुरिसाण || असुइमसारमणेचं अथिरं वुह दियं णिरभिरामं । एवंविहं खु सोक्खं पुरिसाण हवेज जइ कह वि ॥" " उवरोह - सीलयाए पडिवना पत्थणा इमा तेण । पर-कज - साहण - परा पुरिसा कृवे वि निवति ॥ " IC ओ साहिओ कुमाराभिप्याओ ताहिं हरिणो, तेण वि दसार-चकस्स । पुणो वि जहाअवसरं बहुमाणं भणिओ दसार-चक्केण हरी- 'तहा सयं चिव भणसु कुमारं, जहा पूरे णे मणोरहे ।' तओ भणिओ तेण णेमी - 'कुमार ! उसभाइणो वि तित्थयरा काऊण दारसंग, भोत्तॄण भोगे, जणिऊण तणए, पूरिऊण पणइणे(णो), पालेऊण पुहई, सहा णिनिकाम - भोगा पच्छिम वयम्मि पवइया; तहा वि संपत्ता निवाणं । ता एस परमत्थो, काऊण दार-संगहं, पूरे समत्थ-लोग-सहियस्स दसार-चकस्स मणोरहे, विसेसेण जणणिजणयाण । अघा ! अइणेब्बंधो एयाण । मुणिय प्रभाविय - परिमाणे (णामेण य पडवन्ना सिं पत्थण ति । अवि य - 15 For Private & Personal Use Only 23 कहिओ य जिणाभिप्पाओ दसार-चक्कस्स । तओ सँजाय-पहरिसाइसएण भणिओ सवो दसारचकेण 'कुमाराणुरूवं वरेसु वालिय' गवेसेंतेण महि-मंडलं देट्ठा उग्गसेणदुहिया राम कन्नगा । जा य, णत्र- बरहि-कलाव-विन्भमेणं चिह्नर- हत्थुलएणं, पंचमि- 5 31 www.jainelibrary.org
SR No.002785
Book TitleDharmopadeshmala Vivaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1949
Total Pages296
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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